कहते अपने पक्ष की, पंडित मुल्ला शेख |
लोटपोट होते रहे, शगुन अपशगुन देख |
शगुन अपशगुन देख, बुराई करते खंडित |
अच्छाई इक पाय, करे हैं महिमा मंडित |
अपना अपना धर्म, मर्म में लेकर रहते |
करते किन्तु कुकर्म, पक्ष एकल ही कहते ||
जन्म-कथा
सृंगी जन्मकथा
रिस्य विविन्डक कर रहे, शोध कार्य संपन्न ।
लोटपोट होते रहे, शगुन अपशगुन देख |
शगुन अपशगुन देख, बुराई करते खंडित |
अच्छाई इक पाय, करे हैं महिमा मंडित |
अपना अपना धर्म, मर्म में लेकर रहते |
करते किन्तु कुकर्म, पक्ष एकल ही कहते ||
अजीज़ जौनपुरी : वीज़ा संग बोफोर्स भी लाई हूँ
Aziz Jaunpuri
खेली खाई खासगी, खाला खालू खान ।
गालू-ग्वाला तोपची, चॉपर गगन निशान ।
चॉपर गगन निशान, कोयला तेल खदाने ।
घुटा घुटा ले शीश, किन्तु ना घपला माने ।
मारे बम विस्फोट, व्यवस्था पब्लिक डेली ।
अपनी चाची मस्त, खून की होली खेली ॥
खासगी=निजी, अपना
गालू=गाल बजाने वाला
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प्लेसमेंट तो फिक्स, क्लास को गोली मारो-
(दोपहर में एक स्टूडेंट की आवाज पड़ी कान में -चलो यार ढाल पर पप्पियाँ झप्पियाँ मारते हैं-)
मारो झप्पी ढाल पर, लूटो पप्पी एक ।
मारो झप्पी ढाल पर, लूटो पप्पी एक ।
लाइफ़ सेट हो जायगी, हो जाए बी टेक ।
हो जाए बी टेक, कहीं री-टेक एक दो ।
बन्दे कैसी फ़िक्र, बड़े ब्रिलिएंट आप हो ।
खुद को ऐसा ढाल, ढाल पर साल गुजारो ।
प्लेसमेंट तो फिक्स, क्लास को गोली मारो ॥
खंड्पूरी खंडरा ख़तम, खखरा खेले फाग-
खोया खील खमीर खस, खंडसारी खटराग |
खंड्पूरी खंडरा ख़तम, खखरा खेले फाग | (चन्द्र-विन्दु हैं) खखरा खेले फाग, खटा-खट राग रागनी |
घर घर *रागविवाद, रंग में भंग चाशनी |
*झगडा
खुद का सारोकार, पर्व त्यौहार विलोया ||
ठगे गए हम लोग, देख अपनापन खोया..|| खोया = दूध से तैयार मावा खील = भुना हुआ धान / लावा खमीर = मिठाई बनाने में प्रयुक्त होता है-खट्टा पदार्थ खस= सुगंधिंत जड़ खंडसारी = देशी चीनी खटराग =व्यर्थ की वस्तुवें / सामग्री खंड्पूरी = मेवा और शक्कर भरी पूरी खंडरा = बेसन से बना तेल में छाना हुआ पकवान खखरा = चावल बनाने का बड़ा पात्र / छिद्रमय नोट: "खट राग" दो बार आया है-
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मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -10
सर्ग-2
भाग-4
सृंगी जन्मकथा
रिस्य विविन्डक कर रहे, शोध कार्य संपन्न ।
विषय परा-विज्ञान मन, औषधि प्रजनन अन्न ।
विकट तपस्या त्याग तप, इन्द्रासन हिल जाय ।
तभी उर्वशी अप्सरा, ऋषि सम्मुख मुस्काय ।
वहा...!
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति!
बहुत ही उम्दा प्रस्तुति,मान्यवर.
ReplyDeleteNice lines.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गुरवर | आपके लिंक्स तो छा गए | अत्यंत विचारणीय और रोचक | आभार
ReplyDeleteघुटा घुटा ले शीश, किन्तु ना घपला माने-
ReplyDeleteकहते अपने पक्ष की, पंडित मुल्ला शेख |
लोटपोट होते रहे, शगुन अपशगुन देख |
शगुन अपशगुन देख, बुराई करते खंडित |
अच्छाई इक पाय, करे हैं महिमा मंडित |
अपना अपना धर्म, मर्म में लेकर रहते |
करते किन्तु कुकर्म, पक्ष एकल ही कहते ||
बा रहा पढने वांचने योग्य अनुकरणीय भाव .विस्तृत कलेवर लिए है पोस्ट .