यादें !!! सुहाने लम्हों की ....
Ashok Saluja
*'आई' आये समय पर, कुदरत का आईन |
सप्त-वार के वारि में, मस्त तैरती मीन | मस्त तैरती मीन, सीन सब याद पुराने | कौन सकेगा छीन, तुम्हारे गीत-सुहाने | लम्हे लम्हें याद, यही तो है *मनुसाई | दूर रहो या पास, हृदय में "यादें" आई | आई = मौत मनुसाई = पराक्रम |
लेकिन पाकिस्तान, हिन्दु का करे कलेवा-
मेवा खा के पाक का, वाणी-कृष्णा-लाल |
ठोके कील शकील नित, वक्ता करे हलाल | वक्ता करे हलाल, कमाई की कमाल की | मनमोहन ले पाल, ढाल यह शत्रु-चाल की | लेकिन पाकिस्तान, हिन्दु का करे कलेवा | खावो कम्बल ओढ़, मियाँ सेवा का मेवा || |
हास्य-व्यंग्य दोहे
Ambarish Srivastava
बेल बेल के पत्र से, शिव की पूजा होय |
बेलन से पति-*पारवत, पारवती दे धोय || पारवत=कबूतर |
अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com)
तिनके को भी सिद्धकर, कह सकते मल-खम्भ |
तर्क-शास्त्र में दम बड़ा, भरा पड़ा है दम्भ | भरा पड़ा है दम्भ, गलतियाँ क्यूँकर मानें | आठ-आठ हो साठ, विद्वता जिद है ताने | होवे गलती सिद्ध, मगर वो ऐसे *पिनके | बके अनाप-शनाप, तोड़ जाता कुल तिनके || *क्रोधित तिनके तोडना=सम्बन्ध ख़त्म करना |
यारो चारो ओर हैं, भरे चोर मक्कार |
रहना इनके बीच है, ये ही तो सरकार | ये ही तो सरकार, *सपदि सरकस सर काटे | सिंह-शावकों बीच, नीच टुकड़े कर बाँटे | सात समंदर पार, वहाँ भी मारो मारो | बसते रिश्तेदार, प्यार से कटिए यारो || *तुरंत |
सड़क
Asha Saxena
कहाँ जा रही हे! सड़क, होवे बेडा गर्क | गड्ढे ही गड्ढे भरे, लगे जर्क पर जर्क | लगे जर्क पर जर्क, फर्क पूरा दिखता है | दिल्ली आलीशान, यही फोटो बिकता है | पर खुल जाए पोल, बाढ़ से सड़क बही है | यू पी संग बिहार, कहीं पर सही नहीं है || |
ये ख्याल अच्छा है !
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
बड़े तराशे शब्द हैं, सुन्दर भाव तलाश |
जब पलाश खिलते मिलें, हो बसंत उल्लास ||
Rajesh Kumari
कारीगरी अजीब है, तोला-मासा होय |
इंद्र-धनुष से रंग सब, आये जाय विलोय | आये जाय विलोय, कूचिका बनी बिचारी | देख विभिन्न विचार, डुबोये बारी बारी | सात रंग से श्वेत, हुई पर काली सारी | हाय हाय रे हाय, गजब रविकर चित-कारी || |
Aruna Kapoor
विधिना लिखकर सो गए, अपने अतुल विधान |
सरेआम अदना अकल, डाले नए निशान | डाले नए निशान, शान से कविता रचते | उद्वेलित हो हृदय, तहलके जमके मचते | स्वान्त: लिखूं सुखाय, जानता रविकर इतना | पुरस्कार जो पाय, आय हमको वह विधि- ना || |
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
पाता गुरु-गृह में सदा, दूजा जन्म मनुष्य |
देते विद्या बुद्धि बल, गुरुवर के गुरु *तुष्य |
गुरुवर के गुरु *तुष्य , बदल देते तिथि वासर |
पाकर नव उपहार, हार ना होती रविकर |
गुरुजन का वह स्नेह, सदा ही राह दिखाता |
कच्चा घट पक जाय, सही आकृति तब पाता ||
*शंकर
उच्चारण
कुछ बात तो है .....
संगीता स्वरुप ( गीत )
३३ ६६ ६३ ३६ तैतिस वर्षों से करे, तन-मन-जीवन तीन | ख्वाहिश-खुशियाँ-वेदना, दोनों तीन प्रवीन | दोनों तीन प्रवीन, चलो छाछठ तक दीदी | पुत्र-पुत्रियाँ-पौत्र, सूत्र से नव-उम्मीदी | रहो स्वस्थ चैतन्य, सदा तिरसठ सम हर्षो | दे जाता छत्तीस, विविधता तैंतिस वर्षों || |
सुन्दर लिंकों एव सार्थक टिप्पड़ियों के साथ बहुत ही सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteसुन्दर लिंक !!
ReplyDeleteकुण्डलियाँ बाँचकर आनन्द आ गया!
ReplyDeleteआभार रविकर जी !
ReplyDeleteआभार "रविकर" जी आपका!
ReplyDeleteबहुत अछे लिंक आभार ....
ReplyDeleteबे -सऊर सही शकील एहमद साहब इन्हें इतिहास भूगोल की समझ भले न हो थोड़ी संवेदना तो हो -१९४७ से पहले पाक का कोई अंश था जो कुछ था वह भारत था .मुशर्रफ से क्यों नहीं पूछते शकील एहमद वह भारत छोड़ के पाकिस्तान क्यों चले गए .
ReplyDelete१४ अगस्त को यौमे आज़ादी मनाने से पाक का अस्तित्व भारत से अर्वाचीन नहीं हो जाता .
अंग भंग किये गए लोग उधर के हिस्से के हिन्दुस्तान से ही इधर आये थे .आडवाणी साहब तो पहले भी भारत में थे अब भी हैं .
बे -सऊर सही शकील एहमद साहब इन्हें इतिहास भूगोल की समझ भले न हो थोड़ी संवेदना तो हो -१९४७ से पहले पाक का कोई अंश था जो कुछ था वह भारत था .मुशर्रफ से क्यों नहीं पूछते शकील एहमद वह भारत छोड़ के पाकिस्तान क्यों चले गए .
ReplyDelete१४ अगस्त को यौमे आज़ादी मनाने से पाक का अस्तित्व भारत से अर्वाचीन नहीं हो जाता .
अंग भंग किये गए लोग उधर के हिस्से के हिन्दुस्तान से ही इधर आये थे .आडवाणी साहब तो पहले भी भारत में थे अब भी हैं .
बड़े फलक की पोस्ट है आपकी .सुन्दर मनोहर .
ReplyDeleteलिंक पर आपके कमेन्ट बहुत अच्छे लगे |मैंने तो सच को अपने शब्द दिए हैं |पिचले सप्ताह ही हमारी गली की सड़क सीमेंट की बनी है |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
ReplyDeleteआशा
बहुत अच्छे सूत्रों से सजी प्रस्तुति राजनीतिक सोच :भुनाती दामिनी की मौत आप भी जाने मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ?
ReplyDeleteआभार रविकर जी
ReplyDeleteआप की लगन और मेहनत को प्रणाम !
ReplyDeleteरविकर भाई जी !
शुभकामनायें!
...सभी लिंक्स बहुत अच्छे लगे!...आभार रविकर जी!
ReplyDelete..डॉ.रूपचंद शास्त्री जी!...नमस्कार!...उच्चारण ब्लॉग लॉग ऑन नहीं हो रहा है!...इससे पहले भी यही प्रोब्लम आई थी!
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