Monday, 4 February 2013

आठ-आठ हो साठ, विद्वता जिद है ताने -

हास्य-व्यंग्य दोहे

Ambarish Srivastava 

बेल बेल के पत्र से, शिव की पूजा होय |
बेलन से पति-*पारवत, पारवती दे धोय ||
पारवत=कबूतर


अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) 

 तिनके को भी सिद्धकर, कह सकते मल-खम्भ |
तर्क-शास्त्र में दम बड़ा, भरा पड़ा है दम्भ |

भरा पड़ा है दम्भ, गलतियाँ क्यूँकर मानें |
आठ-आठ हो साठ, विद्वता जिद है ताने |

होवे गलती सिद्ध, मगर वो ऐसे *पिनके |
बके अनाप-शनाप, तोड़ जाता कुल तिनके ||

*क्रोधित
तिनके तोडना=सम्बन्ध ख़त्म करना

 विधिना लिखकर सो गए, अपने अतुल विधान |
सरेआम अदना अकल, डाले नए निशान |
डाले नए निशान, शान से कविता रचते |
उद्वेलित हो हृदय, तहलके जमके मचते |
स्वान्त: लिखूं सुखाय, जानता रविकर इतना |
पुरस्कार जो पाय, आय हमको वह विधि- ना ||

वर्षा

तुषार राज रस्तोगी

 तमाशा-ए-जिंदगी


बैर सैर हित गैर घर, तैर तैर के प्राण |
गम-वर्षा में बचा के, कर जाती कल्याण ||



सड़क

Asha Saxena 


कहाँ जा रही हे! सड़क, होवे बेडा गर्क |
गड्ढे ही गड्ढे भरे, लगे जर्क पर जर्क |
लगे जर्क पर जर्क, फर्क पूरा दिखता है |
दिल्ली आलीशान, यही फोटो बिकता है |
पर खुल जाए पोल, बाढ़ से सड़क बही है |
यू पी संग बिहार, कहीं पर सही नहीं है ||

कुछ बात तो है .....


संगीता स्वरुप ( गीत ) 

३३
६६
६३
३६
तैतिस वर्षों से करे, तन-मन-जीवन तीन |
ख्वाहिश-खुशियाँ-वेदना, दोनों तीन प्रवीन |
दोनों तीन प्रवीन, चलो छाछठ तक दीदी |
पुत्र-पुत्रियाँ-पौत्र, सूत्र से नव-उम्मीदी |
रहो स्वस्थ चैतन्य, सदा तिरसठ सम हर्षो |
दे जाता छत्तीस, विविधता तैंतिस वर्षों ||


हंत! व्यथित है चित्रकारी (क्षणिका)


Rajesh Kumari 
कारीगरी अजीब है, तोला-मासा होय |
इंद्र-धनुष से रंग सब, आये जाय विलोय |
आये जाय विलोय, कूचिका बनी बिचारी |
देख विभिन्न विचार, डुबोये बारी बारी |
सात रंग से श्वेत, हुई पर काली सारी |
हाय हाय रे हाय, गजब रविकर चित-कारी ||


महाकुंभ में इन दिनों एक पत्थर पूरे मेलें में सुर्खियां बटोर रहा है। इस अद्भुत पत्थर पर प्रभु राम का नाम भी लिखा गया है।


 पत्थर पानी में पड़ा, करे तैर अवगाह |
राम-सेतु का अंश सुन, खफा हो रहे शाह |

खफा हो रहे शाह, करे पड़ताल मर्म की |
बढ़े अंध-विश्वास, हुई है हँसी धर्म की |

किन्तु कभी तो अक्ल, दूर दिल से रख रविकर |
देख कठौती गंग, लिंग-शिव प्युमिस पत्थर  ||

खरी-खरी खोटी-खरी, खरबर खबर खँगाल-

खरी-खरी खोटी-खरी, खरबर खबर खँगाल ।

फरी-फरी फ़रियाँय फिर, घरी-घरी घंटाल ।


घरी-घरी घंटाल, मीडिया माथा-पच्ची ।

सिद्ध होय गर स्वार्थ, दबा दे ख़बरें सच्ची ।


परमारथ का ढोंग, बे-हया देखे खबरी ।

करें शुद्ध व्यवसाय,  आपदा क्यूँकर अखरी ??

मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता-4


भाग-4


रावण, कौशल्या और दशरथ

दशरथ-युग में ही हुआ, रावण विकट महान |
पंडित ज्ञानी साहसी, कुल-पुलस्त्य का मान ||1|

 शिव-चरणों में दे चढ़ा, दसों शीश को काट  |
 फिर भी रावण ना सका, ध्यान कहीं से बाँट । |

युक्ति दूसरी कर रहा, मुखड़ों पर मुस्कान ।
छेड़ी  वीणा  से  मधुर, सामवेद  की  तान ||


3 comments:

  1. बहुत ही अच्‍छे लिंक्‍स संयोजित किये हैं आपने ...
    आभार

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  2. लिंक लिक्खाड़ के मैदान में,
    'लिक्खाड़' जम-कर खेल रहे क्रिकेट!
    चौके छक्के मार रहे कलम से..
    रविकर की अम्पायरी भी है परफेक्ट!
    ...बहुत सुन्दर है सभी लिंक्स!

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  3. आपकी कुण्डलियाँ (टिप्पणियाँ) लेखकों का उत्साहवर्धन करती हैं!

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