ये शहर पराया लगता है
kanupriya
दुखी रियाया शहर की, फिर भी बड़ी शरीफ ।
सह लेती सिस्कारियां, खुद अपनी तकलीफ ।
खुद अपनी तकलीफ, बड़ा बदला सा मौसम ।
वेलेंटाइन बसंत, बरसते ओले हरदम ।
हमदम जो नाराज, आज कर गया पराया ।
बिगड़े सारे साज, भीगती दुखी रियाया ।।
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गलियों के ये गैंग.
shikha varshney
लन्दन में बेखौफ हो, घूम रहे उद्दंड ।
नहीं नियंत्रण पा रही, लन्दन पुलिस प्रचंड ।
लन्दन पुलिस प्रचंड, दंड का भय नाकाफी ।
नाबालिग का क़त्ल, माँगता जबकि माफ़ी ।
क़त्ल किये सैकड़ों, करे पब्लिक अब क्रंदन ।
शान्ति-व्यवस्था भंग, देखता प्यारा लन्दन ।।
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ओ गांधारी जागो !
रेखा श्रीवास्तव
धारी आँखों पे स्वयं, मोटी पट्टी मातु ।
सौ-सुत सौंपी शकुनि को, अंधापन अहिवातु ।
अंधापन अहिवातु, सुयोधन दुर्योधन हो ।
रहा सुशासन खींच, नारि का वस्त्र हरण हो ।
कुंती सा क्यूँ नहीं, उठाई जिम्मेदारी ।
सारा रविकर दोष, उठा अंधी गांधारी ।
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आज समर्थक हो गए, पूरे एक हजार |
हम सबका आभार, हजारी का यह गौरव | हाजिर होकर रोज, करें चर्चा कर कलरव | रविकर गाफिल रूप, अरुण दिलबाग परिश्रम | राजे' दीप प्रदीप, वन्दना करते हैं हम || |
तुम हार गए बसंत!
-बब्बन पाण्डेय वेलेंटाइन को सभी, करते आज प्रोमोट | रति-अनंग की रुत नई, देह खोट के पोट | देह खोट के पोट, मोट बाजारू-पन है | यह बसंत अब छोट, घोटता अपना मन है | कोयल लेती कूक, मंजरी भी है फाइन | लेकिन भारी पड़े, मित्र यह वेलेंटाइन || |
-मीनाक्षी पंत
ताने हों या इल्तिजा, नहीं पड़ रहा फर्क । पत्थर के दिल हो चुके, सह जाता सब जर्क । सह जाता सब जर्क, नर्क बन गई जिंदगी । सुनते नहिं भगवान्, व्यर्थ में करे बंदगी । सत्ता आँखे मूंद, बनाती रही बहाने । चूस रक्त की बूंद, मार के मारे ताने ।। |
मद्धिम रविकर तेज से , हो संध्या बेचैन-
होली हमजोली हलफ, वेलेंटाइन पर्व ।
मस्त मदन मन मारता, मिल मौका गन्धर्व ।
मिल मौका गन्धर्व, नहीं कोई डे ऐसा ।
ना कोई त्यौहार, जगत में इसके जैसा ।
विजया नवमी-राम, मार राखी को गोली ।
एक अकेला पर्व, पास दिखती है होली ।। |
आज समर्थक हो गए, पूरे एक हजार |
ReplyDeleteचर्चाकारों कीजिये, उन सबका आभार |।
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अब दोहा सटीक हो गया मित्र!
-बब्बन पाण्डेय
ReplyDeleteवेलेंटाइन को सभी, करते आज प्रोमोट |
रति-अनंग की रुत नई, देह खोट के पोट |
देह खोट के पोट, मोट बाजारू-पन है |
यह बसंत अब छोट, घोटता अपना मन है |
कोयल लेती कूक, मंजरी भी है फाइन |
लेकिन भारी पड़े, मित्र यह वेलेंटाइन ||
बढ़िया तंज है .
ReplyDeleteगलियों के ये गैंग.
ReplyDeleteshikha varshney
स्पंदन SPANDAN
लन्दन में बेखौफ हो, घूम रहे उद्दंड ।
नहीं नियंत्रण पा रही, लन्दन पुलिस प्रचंड ।
लन्दन पुलिस प्रचंड, दंड का भय नाकाफी ।
नाबालिग का क़त्ल, माँगता जबकि माफ़ी ।
क़त्ल किये सैकड़ों, करे पब्लिक अब क्रंदन ।
शान्ति-व्यवस्था भंग, देखता प्यारा लन्दन ।।
व्यवस्था से ज़वाब तलब करती बेहद प्रासंगिक प्रस्तुति .
कोई सरलीकृत व्याख्या नहीं है इस पेचीला पन की .सिर्फ पीयर प्रेशर नहीं है यह .प्रदर्शन की भावना का अंश लिए एक शगल भी है थ्रिल ढूंढता बालमन अपराध की देहलीज़ पर .
ReplyDeleteगलियों के ये गैंग.
shikha varshney
स्पंदन SPANDAN
लन्दन में बेखौफ हो, घूम रहे उद्दंड ।
नहीं नियंत्रण पा रही, लन्दन पुलिस प्रचंड ।
लन्दन पुलिस प्रचंड, दंड का भय नाकाफी ।
नाबालिग का क़त्ल, माँगता जबकि माफ़ी ।
क़त्ल किये सैकड़ों, करे पब्लिक अब क्रंदन ।
शान्ति-व्यवस्था भंग, देखता प्यारा लन्दन ।
गलियों के ये गैंग.
ReplyDeleteshikha varshney
स्पंदन SPANDAN
लन्दन में बेखौफ हो, घूम रहे उद्दंड ।
नहीं नियंत्रण पा रही, लन्दन पुलिस प्रचंड ।
लन्दन पुलिस प्रचंड, दंड का भय नाकाफी ।
नाबालिग का क़त्ल, माँगता जबकि माफ़ी ।
क़त्ल किये सैकड़ों, करे पब्लिक अब क्रंदन ।
शान्ति-व्यवस्था भंग, देखता प्यारा लन्दन ।
कोई सरलीकृत व्याख्या नहीं है इस पेचीला पन की .सिर्फ पीयर प्रेशर नहीं है यह .प्रदर्शन की भावना का अंश लिए एक शगल भी है थ्रिल ढूंढता बालमन अपराध की देहलीज़ पर .
bahut hi achhe links.........
ReplyDeleteअच्छे लिंक्स -हजार पार की बधाई !
ReplyDeleteVery nice...
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