कल रांची प्रवास पर था-
मसले होते हिंस्र, जाय ना खटमल मसले-
मसले सुलझाने चला, आतंकी घुसपैठ ।
खटमल स्लीपर-सेल बना, रेकी रेका ऐंठ ।
(सेल = २ मात्रा उच्चारण की दृष्टि से )
रेकी रेका ऐंठ, मुहैया असल असलहा ।
विकट सीरियल ब्लास्ट, लाश पर लगे कहकहा ।
सत्ता है असहाय, बढ़ें नित बर्बर नस्लें ।
मसले होते हिंस्र, जाय ना खटमल मसले ।
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मासूमों के खून से, लिखते नई किताब |
पड़े लोथड़े माँस के, खाते पका कबाब |
खाते पका कबाब, पाक की कारस्तानी |
जब तक हाफिज साब, कहेंगे हिन्दुस्तानी |
तब तक सहना जुल्म, मरेंगे यूं ही भोले |
सत्ता तो है मस्त, घुटाले कर कर डोले |||
पड़े लोथड़े माँस के, खाते पका कबाब |
खाते पका कबाब, पाक की कारस्तानी |
जब तक हाफिज साब, कहेंगे हिन्दुस्तानी |
तब तक सहना जुल्म, मरेंगे यूं ही भोले |
सत्ता तो है मस्त, घुटाले कर कर डोले |||
जवानी धर्म से भटके, हुआ वह शर्तिया "भटकल"-
कल गुरू को मूँदा था, आज चेलों ने रूँदा है-
छी बड़ा बेहूदा है । । मर रही पब्लिक तो क्या - आँख दोनों मूँदा है ॥ जा कफ़न ले आ पुरकस इक फिदाइन कूदा है । कल गुरू को मूँदा था आज चेलों ने रूँदा है ॥ पाक में करता अनशन- मुल्क भेजा फालूदा है ॥ |
बम फटे हैं बेशक - एलर्ट करते तो हों -
लोग मरते तो हैं ।
जख्म भरते तो हैं ॥
बम फटे हैं बेशक -
एलर्ट करते तो हों ।
पब्लिक परेशां लगती
कष्ट हरते तो हैं ॥
देते गीदड़ भभकी
दुश्मन डरते तो हैं ।
दोषी पायेंगे सजा
हम अकड़ते तो हैं ।
बघनखे शिवा पहने -
गले मिलते तो हैं ॥
कंधे मजबूत हैं रविकर-
लाश धरते तो हैं ।
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खून में लटपटाय
चहुँ-ओर हाय-हाय, हाथ-पैर खोय-खाय
खून में लटपटाय, मरा या बेहोश है | नहीं काहू से डरत, बम-विस्फोट करत, बेकसूर ही मरत, करे जय-घोष है | टका-टका बिकाय के, ब्रेन-वाश कराय के, आका बरगलाय के, रहा उसे पोस है | पब्लिक पूरी पस्त है, सत्ता अस्त-व्यस्त है सरपरस्त मस्त है, मौत का आगोश है || |
चुप क्यूँ हो पापियों, कहाँ चरती है अक्कल-
आई मौनी अमाँ है, तमा तमीचर तीर |
नारी मरती सड़क पर, सीमा पर बलवीर | सीमा पर बलवीर, देश में अफरा तफरी | सत्ता की तफरीह, जेब लोगों की कतरी | बेलगाम है लूट, समंदर पार कमाई | ढूँढ़ दूज का चाँद, अमाँ यह लम्बी आई || |
सार्थक लिंक संयोजन,लगभग सभी मार्मिक लिंक्स,आभार.
ReplyDeleteआतंकवाद पर सबको एकजुट होने की ज़रूरत है। राजनीतिबाज़ों के शिकार होने की ज़रूरत नहीं है। आतंकवाद की मार जनता पर ही पड़ती है। चाहे उसका धर्म कुछ भी हो।
ReplyDeleteबेहतरीन लिंक्स संयोजन ...
ReplyDeleteआभार
बहुत खूब गुरुदेव श्री जब जब आपके ब्लॉग पर आता हूँ और कुण्डलिया पढ़ता हूँ आत्मा तृप्त हो जाती है. लाजवाब प्रस्तुति हार्दिक बधाई
ReplyDeleteगुरूजी बहुत सुन्दर लिंक्स | अद्भुत प्रस्तुति हुज़ूर | बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteसुन्दर, अति सुन्दर संयोजन
ReplyDeleteलोग मरते तो हैं ।
ReplyDeleteजख्म भरते तो हैं ॥
बम फटे हैं बेशक -
एलर्ट करते तो हों ।
वाह!बहुत सुन्दर.
बेहतरीन लिंक्स के लिए आभार.