रविकर
आज पूरे प्यार से साजन सजा दो ।
उस सुनहरे ख़्वाब का पूरा पता दो ।।
रात-दिन छलती रही कोरी किताबें -
चिट्ठियां उनपर सटा के तो मजा दो ।।
तंत्र रक्षा का गया अब तेल लेने -
हर घुटाले में विपक्षी को फँसा दो ।।
लालटेनों की ख़तम बाती हुई तो
काट नारे को फटाफट लो जला दो ।।
रोज उम्मीदे लगा कर लेट जाते
मिल रहा मौका जरा बाजा बजा दो । । |
गढ़े शुभाशुभ जीव, महारथि क्लीब बनाए-
चक्र-चलैया चाकचक, चैली-चाक-कुम्हार |
मातृ मातृका मातृवत, नभ जल गगन बयार |
नभ जल गगन बयार, सार संसार बसाये ।
गढ़े शुभाशुभ जीव, महारथि क्लीब बनाए ।
सिर काटे शिशु पाल, सु-भद्रे सुत मरवैया ।
व्यर्थ बजावत गाल, नियामक चक्र-चलैया ॥
चाकचक=दृढ़ चैली=लकड़ी क्लीब = नपुंसक
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सभ्यता शासन क़ानून व्यवस्था दंड प्रक्रिया 4Er. Shilpa Mehta : शिल्पा मेहता
रेत के महल
क्षत्रिय रक्षा तंत्र से, दुष्टों प्रति अभियान | दुष्टों प्रति अभियान, वस्तु जीवन-उपयोगी | करे वनिक व्यापार, चाहते योगी भोगी | पर चौथे के पास, शक्ति के केंद्र नदारद | बदल परिस्थिति किन्तु, बने विद्वान विशारद || |
काटे कागद कोर ने, कवि के कितने अंग । कविता कर कर कवि भरे, कोरे कागज़ रंग । कोरे कागज़ रंग, रोज ही लगे खरोंचे । दिल दिमाग बदहाल, याद बामांगी नोचे । रविकर दायाँ हाथ, एक दिन गम जब बांटे । जीवन रेखा छोट, कोर कागज़ की काटे ।। |
बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार
बढ़िया
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.....
सादर
अनु
चक्र-चलैया चाकचक, चैली-चाक-कुम्हार |
ReplyDeleteमातृ मातृका मातृवत, नभ जल गगन बयार |
नभ जल गगन बयार, सार संसार बसाये ।
गढ़े शुभाशुभ जीव, महारथि क्लीब बनाए ।
सिर काटे शिशु पाल, सु-भद्रे सुत मरवैया ।
व्यर्थ बजावत गाल, नियामक चक्र-चलैया ॥
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