भानमती की बात - राष्ट्रीय गाली .
प्रतिभा सक्सेना
गा ली अपनी भानमति, अपनी मति अनुसार |
गाली देकर पुरुष पर, करता पुरुष प्रहार | करता पुरुष प्रहार, अगर माँ बहन करे है | नहीं पुरुष जग माहिं, कहाँ चुप सहन करे हैं | मारे या मर जाय, जिंदगी क्या है साली | इज्जत पर कुर्बान, दूसरा पहलू गाली || |
चॉपर अब तो तोपें कल, पश्चिम से होती हलचल
पश्चिम से होती हलचल ।
ताप गिरे दिन-रात का, ठंडी बहे बयार ।
ओले पत्थर गिर रहे, बारिस देती मार ।।
सागर के मस्तक पर बल ।
पश्चिम में होती हलचल ।।
शीत-युद्ध सीमांतरी, हो जाता है गर्म ।
चलते गोले गोलियां, शत्रु छेदता मर्म ।।
काटे सर करके वह छल ।
पश्चिम में होती हलचल ।।
उड़न खटोला चाहिए, सत्ता मद में चूर ।
बटे दलाली खौफ बिन, खरीदार मगरूर ।
चॉपर अब तो तोपें कल ।
पश्चिम से होती हलचल ।। |
ताऊ की कर बन्दगी, चाची चरणस्पर्श |
गुरुओं की पूजा करा, कई वर्ष दर वर्ष | कई वर्ष दर वर्ष, हर्ष के दिन आयेंगे | फोलोवर सैकड़ों, टिप्पणी दे जायेंगे | घूम-घाम कर देख, रविकर बड़ा पकाऊ | राम राम श्रीमान, ढूँढ़ लो चाची ताऊ || जो फ़ोल्लोवेर मिल जाएँ Tushar Raj Rastogi
तमाशा-ए-जिंदगी
खेमेबाजी चरम पर, तगड़ा तम्बू खोज । रविकर से दूरी बना, आ जाता है रोज । आ जाता है रोज, नहीं दस टिप्पण पाता । कर नौ सौ अनुसरण, समर्थक सौ पहुँचाता । या तो चिंता छोड़, रचे रविकर ज्यों रचना । स्वान्त: रचो सुखाय, लालसा से तू बचना ।। |
(rohitash kumar)
वेलेंटाइन मस्त है, सात दिनों में पस्त ।
खोज रोज चाफ़ी वचन, हग कर काम प्रशस्त ।
हग कर काम प्रशस्त , किन्तु वासंतिक बेला ।
चलता दो दो माह, करे बेमतलब खेला ।
जोड़ो खाय पकाय, चिकेन तंदूरी वाइन ।
फेंक फाक फुरसतें, हो गया वेलेंटाइन ।।
यादों की डिबिया में ...
Dr (Miss) Sharad Singh
डिबिया में सिंदूर सम, रखते पावन भाव | बड़े चाव से मन करे, अपना नित्य अघाव | अपना नित्य अघाव, प्रेम ही मूल-मन्त्र है | सब बंधन से परे, हमेशा ही स्वतंत्र है | शब्द लिखे उन्नीस, भाव पर बीस दिखा है | जीने का अंदाज, पुन: तू गई सिखा है || |
(विष्णु बैरागी)
एकोऽहम्
पैनापन विश्वास पर, सुन्दरतम सामीप्य । जीवन रूपी दाल में, पत्नी छौंका *दीप्य । *जीरा / अजवाइन पत्नी छौंका *दीप्य, बढे जीवन रूमानी । पुत्र पुत्रियाँ पौत्र, तोतली मनहर वाणी । शुभकामना असीम, लड़ाओ वर्षों नैना । पर नंदी ले देख, हाथ में उनके ----।। अब आप ही पूरी कर दें यह पंक्ति- |
अरुण कुमार निगम
अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ) -
कीली ढीली हो गई, गोली गोल गुलेल | बाज बाज आता नहीं, करे इसी से खेल | करे इसी से खेल, चूर मद हो जाएगा | है सिद्धांत अपेल, बड़ा कोई आयेगा | बढ़ जाता जब जुल्म, मौत तब निश्चय लीली | फिर आये ना काम , बाज की चोंच नुकीली || |
मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -8
सर्ग-2
भाग-2
सम गोत्रीय विवाह पीड़ा बेहद जाय बढ़, अंतर-मन अकुलाय । जख्मों की तब नीलिमा, कागद पर छा जाय ।। उद्यम करता आदमी, हरदम लागे नीक | पूजा ही यह कर्म है, बाकी लगे अलीक || |
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteअभी कई बॉक्स खाली हैं!
रविकर जी!
ReplyDeleteमयंक के कोना में में 2 पोस्ट और लगाई हैं।
सूचना दे देना प्लीज!
आभार!
शब्द आपके न रहें कभी भी उन्नीस,
ReplyDeleteउन्नत काव्य रचना रहे हमेशा बीस.
बहुत ही सार्थक लिंकों की सुन्दर प्रस्तुति.
छोड़ने को दिल नहीं चाहता है पर क्या करें ? समय की पावंदी साथ है |
ReplyDeleteबहुत सुनकर लिंक चयन | मेरी रचना शामिल करने हेतु आभार गुरूजी | प्रणाम |
ReplyDeleteआदरणीय गुरुदेव श्री बेहद शानदार एवं धारदार प्रस्तुति हार्दिक बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteमेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत- बहुत आभार ...आपने बहुत ही सुन्दर दोहे रचे है परिंदा के लिए .............
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