सूखे फूल
फूलों से नफ़रत करे, करते शूल पसंद ।
लेखक हैं नवगीत के, कवि रचते ना छंद ।
कवि रचते ना छंद, मग्न मतिमंद रहा हैं ।
*भा बहार नहिं रंग, बाग़ में कवि तन्हा हैं ।
प्रभा
सूख सरोवर नीर, मनुज कटता मूलों से ।
नीति-नियम कुल भूल, करे नफ़रत फूलों से ॥
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बीमार का हाल अच्छा है!(Arvind Mishra)
क्वचिदन्यतोSपि...
हड्डी की इस हूक का, कितना सरल इलाज | स्नेहिल-जन छू ले अगर, छूमंतर हो आज | छूमंतर हो आज, राज की बात बताते | बुड्ढा तेरा बाप, इशारा कर ही जाते | नुस्खा लें अजमाय, खेलते गुरू कबड्डी | उलटा पैदा पूत, लात से छू ले हड्डी || |
अजमाते हैं हर विधा, मन में ना संतोष | प्रस्तुतियां लगभग मिली, सच सटीक निर्दोष | सच सटीक निर्दोष, शेर सब जबरदस्त हैं | चीर फाड़ में व्यस्त, भाव खा रहे मस्त हैं | रविकर को है गर्व, मित्र सच्चा जो पाते | समय काल आपात, मित्र को हैं अजमाते || |
काटे कागद कोर ने, कवि के कितने अंग । कविता कर कर कवि भरे, कोरे कागज़ रंग । कोरे कागज़ रंग, रोज ही लगे खरोंचे । दिल दिमाग बदहाल, याद बामांगी नोचे । रविकर दायाँ हाथ, एक दिन गम जब बांटे । जीवन रेखा छोट, कोर कागज़ की काटे ।। |
...जय हो !
ReplyDeleteहड्डी की इस हूक का, कितना सरल इलाज |
ReplyDeleteस्नेहिल-जन छू ले अगर, छूमंतर हो आज |
छूमंतर हो आज, राज की बात बताते |
बुड्ढा तेरा बाप, इशारा कर ही जाते |
नुस्खा लें अजमाय, खेलते गुरू कबड्डी |
उलटा पैदा पूत, लात से छू ले हड्डी ||
बहुत सटीक रविकर जी .
श्रीमती वन्दना गुप्ता जी आज कुछ व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (23-02-2013) के चर्चा मंच-1164 (आम आदमी कि व्यथा) पर भी होगी!
सूचनार्थ!