25 मार्च की दोपहर से 26 मार्च की दोपहर तक जयपुर राजस्थान में हूँ- सूत्र : 08521396185
ब्लॉगर मित्रों से मिलना चाहता हूँ-रविकर
Ankur Jain
नहीं प्रतारक प्रेम सा, नहीं प्रताड़क अन्य |
पर्जन्या दे देह पर, नयनों में पर्जन्य | नयनों में पर्जन्य, काटता रहा पतंगें | बुरा सदा अंजाम, करे मानव-मन नंगे | कुछ घड़ियों की मौज, प्रेम दारुण संहारक | बिना शस्त्र मर जाय, मौत पर हँसे प्रतारक || प्रतारक=ठग प्रताड़क=कष्ट देने वाला पर्जन्या=दारुहल्दी पर्जन्य=बादल |
अरुण कु मार निगम
कन्नी अक्सर काटते, राजनीति से मित्र |
गिन्नी जैसी किन्तु यह, चम्-चम् करे विचित्र | चम्-चम् करे विचित्र , बड़े दीवाने इसके | चाहे जाय चरित्र, मरे चाहे वे पिसके | करते रहते खेल, कमीशन काट चवन्नी | आ के पापड़ बेल, काट ना यूं ही कन्नी || |
ZEAL -
कानाफूसी हो शुरू, खंडित होवे *कानि |
अपना दुखड़ा रोय जो, करता अपनी हानि | करता अपनी हानि, बुद्धि ना रहे सलामत | जिसको देती मान, बुलाता वो ही शामत | पी के अपना दर्द, ख़ुशी का करो बहाना | खड़े भेड़िया हिस्र, छोड़ हरकत बचकाना || *सीख |
(दिगम्बर नासवा)
स्वप्न मेरे...........
उधर सिधारी स्वर्ग तू, इधर बचपना टाँय | टाँय टाँय फ़िस बचपना, हरता कौन बलाय | हरता कौन बलाय, भूल जाता हूँ रोना | ना होता नाराज, नहीं बैठूं उस कोना | एक साथ दो मौत, बचपना सह महतारी | करना था संकेत, जरा जब उधर सिधारी || |
नहीं छुपाने को बचा, कुछ भी मौनी पास ।
बेमतलब हुडदंग है, चॉपर उड़ आकाश ।
चॉपर उड़ आकाश, पोल सारी ही खोले ।
सारा अखराजात, जांच एजेंसी ढोले ।
हैं मामे बदजात, लगे हैं बहुत सताने ।
इटली का व्यापार, लगा अब नहीं छुपाने । |
सर्ग-2
भाग-3
भाग-3
कन्या का नामकरण
कौशल्या दशरथ कहें, रुको और महराज | अंगराज रानी सहित, ज्यों चलते रथ साज || राज काज का हो रहा, मित्र बड़ा नुक्सान | चलने की आज्ञा मिले, राजन हमें विहान || सुबह सुबह दो पालकी, दशरथ की तैयार | अंगराज रथ पर हुए, मय परिवार सवार || दशरथ विनती कर कहें, देते एक सुझाव | सरयू में तैयार है, बड़ी राजसी नाव || |
" हलवा है क्या ..........."
Amit Srivastava
हलवाई रविकर बना, व्यंजन कई प्रकार | चखे चखाए मित्र को, आजा तो इक बार | आजा तो इक बार, बड़ी वासंतिक रुत है | खा मीठा नमकीन, अगर हड़बड़ी बहुत है | सूजी घी में भून, सुगर मेवा दूँ डलवा | संग चाय नमकीन, पौष्टिक खा लो हलवा || |
राजनैतिक कुण्डलिया : रहे "मुखर-जी" सदा ही, नहीं रहे मन मौन
रविकर
रहे "मुखर-जी" सदा ही, नहीं रहे मन मौन ।
आतंकी फांसी चढ़े, होय दुष्टता *दौन ।
होय दुष्टता *दौन, फटाफट करे फैसले ।
तभी सकेंगे रोक, सदन पर होते हमले ।
कायरता की देन, दिखा सत्ता खुदगर्जी ।
बना "सॉफ्ट-स्टेट", सॉफ्ट ना रहे "मुखर्जी"।।
*दमन
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बहुत सराहनीय प्रस्तुति.
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