सेहतनामा
Virendra Kumar Sharma
गठिया लो यह बात सब, हितकारी संगीत |
संधि-योग सा कम करे, दर्द उग्रता मीत | दर्द उग्रता मीत , पहाड़ो पर बस जाओ | बदन छरहरा आप, वहाँ सचमुच में पाओ | पौष्टिक भोजन खाय, गर्भ को स्वयं संभालो | गठिया में व्यायाम, बात यह भी गठिया लो || |
जिनकी चाकरी नहीं पक्की -
ठीका पर बहाल करते हैं।
गाँधी को निहाल करते हैं ।।
मनरेगा-हाथ में ठेंगा
करते ठीक-ठाक आमदनी -
मिहनत बेमिसाल करते हैं ।।
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शौक से दुनिया दलाली खा रही-
पाप का भर के घडा ले हाथ पर,
पार्टी निश्चय टिकट दे हाथ पर।।
शौक से दुनिया दलाली खा रही-
हाथ धर कर बैठ मत यूं हाथ पर । ।
जब धरा पे है बची बंजर जमीं--
बीज सरसों का उगा ले हाथ पर ।।
हाथ पत्थर के तले जो दब गया,
हाथ जोड़ो पैर हाथों हाथ पर
गमन अनुगमन मन सुमन, मनसाता मनसेधु |
सुम-सुमनामुख सुमिरते, मिले पुन्य मकु मेधु || |
ताऊ और ताई का वेलेंटाईन डे....
सेना भी पीछे हटे, डटे डेट पर जान |
ताऊ ताई जान इक, ताई बड़ी महान |
ताई बड़ी महान, पकड़ती हैं चिमटे से |
करती छटपट जान, देह दो भाग बटे से |
लेकिन ताऊ ठान, रहे दे उनको ठेना |
ठना-ठनी घनघोर, पिटे सीधे सक्सेना ||
सेना भी पीछे हटे, डटे डेट पर जान |
ताऊ ताई जान इक, ताई बड़ी महान |
ताई बड़ी महान, पकड़ती हैं चिमटे से |
करती छटपट जान, देह दो भाग बटे से |
लेकिन ताऊ ठान, रहे दे उनको ठेना |
ठना-ठनी घनघोर, पिटे सीधे सक्सेना ||
SADA
आती बास लिबास से, अथवा खुश्बू तेज । रखती नहीं लगाव यह, क्यूँकर रखे सहेज । क्यूँकर रखे सहेज, भेजिए लानत तन पर । काम क्रोध मद मोह, रहा ढो कब से रविकर । समझे रूह दुरूह, दिया-बाती बुझ जाती । दिया लिया सब शून्य, बदल के कपड़े आती ।। |
महामहिम का भी नाम हेलीकाप्टर घोटाले में आया
रणधीर सिंह सुमन
निगरानी कोई नहीं, सोई सी सरकार ।
कर्म छिनाला हो रहा, इक दलाल दरकार ।
इक दलाल दरकार, करोड़ों हैं गरीब पर ।
कर करोड़पति डील, रोज ही करें कलम सर ।
रही हाथ में खेल, खिला जिंदल अम्बानी ।
लेते माल बटोर, घूर की हो निगरानी ।।
मेवा खा के पाक का, वाणी-कृष्णा-लाल |
ठोके कील शकील नित, वक्ता करे हलाल | वक्ता करे हलाल, कमाई की कमाल की | मनमोहन ले पाल, ढाल यह शत्रु-चाल की | लेकिन पाकिस्तान, हिन्दु का करे कलेवा | खावो कम्बल ओढ़, मियाँ सेवा का मेवा || |
बेलेन्टाइन पर हुआ, बेलन बेला छूछ |
डाक्टर साहब ऐंठते, अपनी छूछी मूँछ |
अपनी छूछी मूँछ, आज मैडम ना ऐंठी |
रोज रोज की बात, प्रतीक्षा करती बैठी |
लेकिन मित्र दराल, कृष्ण नहिं अस्त्र उठाये |
ऊँच नीच गर होय, वहीँ चिमटा ले धाये ||
Rajendra Kumar
मिटटी डालो भूल पर, मेहनत हुई वसूल ।
हाथों पर सरसों जमे, खिलें धूल के फूल ।
खिलें धूल के फूल, मूल में प्यार निहित है ।
रविकर सत्य उसूल, जगत को सर्वविदित है ।
नजर नहीं लग जाय, करो स्वारथ की छुट्टी ।
सुआरथ हो ही जाय, बदन की अपनी मिटटी ।।
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कविता
दिलबाग विर्क
म्हारा हरियाणा
तड़पाती तकलीफ तो, तड़-पड़ पाती चैन |
दिल बाग़ बाग़ है पर इधर, तड़प तड़प कुल रैन |
तड़प तड़प कुल रैन, मान लो मिल ही जाती |
लड़ा लड़ा दो नैन, रैन यह देह थकाती |
हट जाता फिर ख्याल, याद भी आ ना पाती |
इसीलिए खुशहाल, रहूँ जब तू तडपाती ||
तड़पाती तकलीफ तो, तड़-पड़ पाती चैन |
दिल बाग़ बाग़ है पर इधर, तड़प तड़प कुल रैन |
तड़प तड़प कुल रैन, मान लो मिल ही जाती |
लड़ा लड़ा दो नैन, रैन यह देह थकाती |
हट जाता फिर ख्याल, याद भी आ ना पाती |
इसीलिए खुशहाल, रहूँ जब तू तडपाती ||
नारी खड़ी बाज़ार में -बेच रही है देह !
शालिनी कौशिक
नेह देह प्रोडक्ट को, कांस्टेंट इक मान ।
नेह घटे घटती रहे, बड़े देह धन-मान ।
बड़े देह धन-मान, कहाँ कल्पना हमारी ।
पूनम का वह चाँद, ग्रहण से होती हारी ।
लेकिन अघ-व्यापार, जरूरत विज्ञापन की ।
गिरते नैतिक मूल्य, मांग बढ जाए तन की । |
बढ़िया लिंक्स रविकर जी | पढ़कर आनंद आ रहा है |
ReplyDeletegreat comments !
ReplyDeleteबढ़िया लिंक्स रविकर जी |
ReplyDelete.सुन्दर लिनक्स संजोये हैं आपने.मेरी पोस्ट को ये सम्मान देने के लिए आभार नारी खड़ी बाज़ार में -बेच रही है देह ! संवैधानिक मर्यादा का पालन करें कैग
ReplyDeleteबढ़िया कुंडलियाँ |
ReplyDeleteरविकर के निराले अंदाज का आनंद ही कुछ और है !
ReplyDeleteबहुत खूब सूरत ,मुख्तलिफ अंदाज़ .शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .
ReplyDeleteबढ़िया कुंडलियाँ और लाजवाब लिंक्स | आभार | आको बसंत पंचमी की हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteवाह ...रविकर जी ..मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ..और मेरे रचना को स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार ....
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