शैतानों तानों नहीं, कामी-कलुषित देह ।
तानों से भी डर मुए, कर नफरत ना नेह ।
कर नफरत ना नेह, नहीं संदेह बकाया ।
बहुत बकाया देश, किन्तु बिल लेकर आया ।
छेड़-छाड़ अपमान, रेप हत्या मर-दानों ।
सजा हुई है फिक्स, मिले फांसी शैतानों ।।
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लाठी हत्या कर चुकी, चुकी छुरे की धार |
कट्टा-पिस्टल गन धरो, बम भी हैं बेकार |
बम भी हैं बेकार, नया एक अस्त्र जोड़िये |
सरेआम कर क़त्ल, देह निर्वस्त्र छोड़िए |
नाबालिग ले ढूँढ़, होय बढ़िया कद-काठी |
मरवा दे कुल साँप, नहीं टूटेगी लाठी ||
कट्टा-पिस्टल गन धरो, बम भी हैं बेकार |
बम भी हैं बेकार, नया एक अस्त्र जोड़िये |
सरेआम कर क़त्ल, देह निर्वस्त्र छोड़िए |
नाबालिग ले ढूँढ़, होय बढ़िया कद-काठी |
मरवा दे कुल साँप, नहीं टूटेगी लाठी ||
छेड़-छाड़ अपमान, रेप हत्या मर-दानों -
नाबालिग की पार्टी, मने वहाँ पर जश्न ।
जमा जन्म-तिथि देखकर, फँसने का क्या प्रश्न ।
फँसने का क्या प्रश्न, चलो मस्ती करते हैं ।
है सरकारी छूट, नपुंसक ही डरते हैं ।
पड़ो एकश: टूट, फटाफट हो जा फारिग ।
चार दिनों के बाद, रहें ना हम नाबालिग ।।
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बाजारू माहौल है, सड़ा-गला सब बेंच |
बेन्च-मार्क होवे अगर, फिर काहे का पेंच | फिर काहे का पेंच, दुकाने ऊँची ऊँची | काट खटाखट पेस्ट, मिले ना कहीं समूची | बेचारा इन्सान, कहाँ पर करे तकाजा | नाम हिन्दु इस्लाम, बजाये मारू बाजा || करे पिता दो साल कम, लिखवाते जब नाम । छोटे की दादागिरी, करता खोटे काम । करता खोटे काम, पिताजी बुढ्ढे होते । पचपन में सीनियर, सिटीजन टिक्कस ढोते । उम्र होय जब साठ, पुत्र सत्तर बतलाता । अस्सी में जब मरें, वही सौ पार कराता ।। |
बालिग़ जब तक हो नहीं, चन्दा-तारे तोड़ ।
मनचाहा कर कृत्य कुल, बाहें रोज मरोड़ ।
बाहें रोज मरोड़, मार काजी को जूता ।
अब बाहर भी मूत, मोहल्ले-घर में मूता ।
चढ़े वासना ज्वार, फटाफट हो जा फारिग ।
फिर चाहे तो मार, अभी तो तू नाबालिग ।।
अंधी देवी न्याय की, चालें डंडी-मार |
पलड़े में सौ छेद हैं, डोरी से व्यभिचार |
पलड़े में सौ छेद हैं, डोरी से व्यभिचार |
डोरी से व्यभिचार, तराजू बबली-बंटी |
देता जुल्म नकार, बजे खतरे की घंटी |
अमरीका इंग्लैण्ड, जुर्म का करें आकलन |
कड़ी सजा दें देश, जेल हो उसे आमरण ||
बत्तीसी सचमुच गली, इडली डोसा खाय |
गली गली में आ-ग-ले, बेंचे बड़े बनाय | बेंचे बड़े बनाय, नमक मिर्ची भी डालो | हथ-गोले सी शक्ल, चलो आसमाँ उठा लो | पकड़ो पूरी प्लेट, स्वाद लो रत्ती-रत्ती | मरे धूर्त कै-मरा, हुई गुल थियेटर बत्ती || |
वाह: बहुत बढ़िया..आभार..
ReplyDeleteछेड़-छाड़ अपमान, रेप हत्या मर-दानों -
ReplyDeleteनाबालिग की पार्टी, मने वहाँ पर जश्न ।
जमा जन्म-तिथि देखकर, फँसने का क्या प्रश्न ।
फँसने का क्या प्रश्न, चलो मस्ती करते हैं ।
है सरकारी छूट, नपुंसक ही डरते हैं ।
पड़ो एकश: टूट, फटाफट हो जा फारिग ।
चार दिनों के बाद, रहें ना हम नाबालिग ।।
अब किशोर कसाब आयेंगे इस देश पे हमला करके -हम उस देश के वासी हैं जहां किशोरअपराधी रहतें हैं .
छेड़-छाड़ अपमान, रेप हत्या मर-दानों ।
ReplyDeleteसजा हुई है फिक्स, मिले फांसी शैतानों ।।
बढ़िया भाषिक प्रयोग .
अंधी देवी न्याय की, चालें डंडी-मार |
ReplyDeleteपलड़े में सौ छेद हैं, डोरी से व्यभिचार |
डोरी से व्यभिचार, तराजू बबली-बंटी |
देता जुल्म नकार, बजे खतरे की घंटी |
अमरीका इंग्लैण्ड, जुर्म का करें आकलन |
कड़ी सजा दें देश, जेल हो उसे आमरण ||
अपना मोलड़ चुप रहता है राष्ट्रीय मसलों पर ,युवा प्रिंस कहलाय .
नानी मरती इसकी वारदाता जब हो जाय .
ReplyDeleteबहुत खूब !!
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ReplyDeleteबालिग़ जब तक हो नहीं, चन्दा-तारे तोड़ ।
मनचाहा कर कृत्य कुल, बाहें रोज मरोड़ ।
बाहें रोज मरोड़, मार काजी को जूता ।
अब बाहर भी मूत, मोहल्ले-घर में मूता ।
चढ़े वासना ज्वार, फटाफट हो जा फारिग ।
फिर चाहे तो मार, अभी तो तू नाबालिग ।।
सटीक शानदार प्रस्तुति ,,,,बधाई रविकर जी,,,,
RECENT POST शहीदों की याद में,
बढिया लिंक्स
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteसारा जग चालाक हैं, रखे पूत का ख्याल |
ReplyDeleteपहली कक्षा में दिया, चुरा लिया दो साल |
चुरा लिया दो साल, बहुत आगे की सोंचे |
बीस साल तक छूट, कहीं यदि रेप-खरोंचे |
बचे सजा से साफ़, कदाचित हो हत्यारा |
लास्ट लाउडली लॉफ़, न्याय अन्धा संसारा ||
विचार और भाव का सशक्त सम्प्रेषण .एक दम से प्रासंगिक व्यंग्य रचना .
करे पिता दो साल कम, लिखवाते जब नाम ।
ReplyDeleteछोटे की दादागिरी, करता खोटे काम ।
करता खोटे काम, पिताजी बुढ्ढे होते ।
पचपन में सीनियर, सिटीजन टिक्कस ढोते ।
उम्र होय जब साठ, पुत्र सत्तर बतलाता ।
अस्सी में जब मरें, वही सौ पार कराता ।।
विचार और भाव का सशक्त सम्प्रेषण .एक दम से प्रासंगिक व्यंग्य रचना .