Friday 8 February 2013

रानी *नहला जैक, कसे हर रोज शिकंजा-

 

पुत्र-वधु परिवार की कुलवधु या केवल पुत्र की पत्‍नी?

smt. Ajit Gupta 

 शादी की सारी ख़ुशी, हो जाती काफूर ।
मिलन मात्र दो देह का, रिश्ते नाते दूर ।

रिश्ते नाते दूर, क्रूर यह दुनिया वाले ।
भीड़ नहीं मंजूर, हुवे प्रिय साली साले ।

 इक दूजे से काम, बैठिये अम्मा दादी ।
अलग-थलग परिवार, हुई देहों की शादी ।।

''कुछ मीठा हो जाए.............''


सरिता भाटिया 

चाक समय का चल रहा, किन्तु आलसी लेट |
लसा-लसी का वक्त है, मिस कर जाता डेट |
मिस कर जाता डेट, भेंट मिस से नहिं होती |
कंधे से आखेट, रखे सिर रोती - धोती |
बाकी हैं दिन पाँच, घूमती बेगम मयका |
मन मयूर ले नाच, घूमता चाक समय का ||

समय बिताने के लिये पढिये कुछ उपयोगी लिंक्स


vandana gupta  

 
फुरसत ऐसे ना मिले, हरदिन कोना एक |
करते मिलकर फिक्स हम, करें काम यह नेक |

करें काम यह नेक, चुने हर दिन दो रचना |
करें मंच पर पोस्ट, नहीं गुरुवर को बचना |

सुबह सुबह दें जोड़, यही रविकर की हसरत |
चर्चा को दें मोड़, नहीं मिलनी है फ़ुरसत ||
 HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR
दादी दीदा में नमी, जमी गमी की बूँद |
देख कहानी मार्मिक, लेती आँखें मूँद |
लेती आँखें मूँद, व्यस्त दुनिया यह सारी |
कभी रही थी धूम, आज दिखती लाचारी |
लेकिन जलती ज्योति, ग़मों की हुई मुनादी |
लेता चेयर थाम, प्यार से बोले दादी ||

"ग़ज़ल-खो चुके सब कुछ" (डॉ,रूपचन्द्र सास्त्री 'मयंक')


डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) 

इस धरा में क्या धरा, कुछ सोच ऊंची कीजिये-
आसमाँ में आज उड़िए, स्वागता है स्वागता है ।
 
 पाप धोने की जरुरत, आज रविकर क्या पड़ी ।
पाप का यह घड़ा आखिर, सार्थक है योग्यता है ।
 Kehna Padta Hai/कहना पड़ता है
सीधा साधा अर्थ है, दोनों पर है दाब ।
दोनों को देना पड़े, अंत: बाह्य जवाब ।

 अंत: बाह्य जवाब, एक को समय बांधता ।
नियम होय ना भंग, समय से *साँध सांधता ।
*लक्ष्य 
अस्त-व्यस्त दूसरा, दूसरों में ही बीधा ।
डांट-डपट ले खाय, हमेशा सीधा सीधा ।।
 
 क्या नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री होंगे ?

रणधीर सिंह सुमन 

हिन्दु बोट पर चढ़ चले, सागर-सत्ता पार |
शिल्पी नहिं नल-नील से, बटी लटी सी धार |

बटी लटी सी धार, कौन पूरे मन्सूबे |
हिन्दु शब्दश: भार,
बीच सागर में डूबे  |

अपनी ढपली राग, नजर है बड़ी खोट पर |
 है धिक्कार हजार, हिन्दु पर हिन्दु बोट पर ||

सॉफ्ट स्टेट हम नहीं सुप्रीम कोर्ट है ?

Virendra Kumar Sharma 

जिन्दे की लागत बढ़ी, हिन्दू से घबराय |
खान पान के खर्च को, अब ये रहे घटाय |
अब ये रहे घटाय, सिद्ध अपराधी था जब |
लगा साल क्यूँ सात, हुआ क्यूँ अब तक अब-तब |
वाह वाह कर रहे, तिवारी दिग्गी शिंदे |
लेकिन यह तो कहे, रखे क्यूँ अब तक जिन्दे ||


सत्तावन "जो-कर" रहे,  जोड़ा बावन ताश ।
महल बनाया दनादन, "सदन" दहलता ख़ास । 


*सिंह इज किंग
सदन दहलता ख़ास, *किंग को दहला पंजा।
रानी *नहला जैक, कसें तिग्गियाँ शिकंजा ।  

*ताजपोशी के लिए

इक्का-दुक्की झड़प, हिला नहिं पाया-पत्ता ।
खड़ा ताश का महल, दिखे बलशाली सत्ता ।।




File:Bicycle-playing-cards.jpg 


 
Playing cards - seven — Stock Vector #6675212

8 comments:

  1. आभार रविकर जी!
    आपकी टिप्पणियाँ और सुढाव अच्छे हैं!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार रविकर जी!
      आपकी टिप्पणियाँ और सुझाव अच्छे हैं!

      Delete
  2. अजित गुप्‍ता का कोना

    शादी की सारी ख़ुशी, हो जाती काफूर ।
    मिलन मात्र दो देह का, रिश्ते नाते दूर ।

    रिश्ते नाते दूर, क्रूर यह दुनिया वाले ।
    भीड़ नहीं मंजूर, हुवे प्रिय साली साले ।

    इक दूजे से काम, बैठिये अम्मा दादी ।
    अलग-थलग परिवार, हुई देहों की शादी ।।

    नित्य कर्म सा ज़रूरी हो गया है रविकर जी के यहाँ आना .फ्रेश होक जाना .

    ReplyDelete
  3. अच्छे लिंक्स सर!
    ~सादर!!!

    ReplyDelete
  4. एक से बढ़कर एक लिनक्स --बहुत बढ़िया
    सादर

    ReplyDelete
  5. रविकर साहब , इतनी सुन्दर पंक्तियों से नवाज़ने के लिए बहुत बहुत आभार ।

    ReplyDelete