Monday 18 February 2013

बना "सॉफ्ट-स्टेट", सॉफ्ट ना रहे "मुखर्जी"-



अरुण कु मार निगम 
कन्नी अक्सर काटते, राजनीति से मित्र |
गिन्नी जैसी किन्तु यह, चम्-चम् करे विचित्र |
चम्-चम् करे विचित्र , बड़े दीवाने इसके |
चाहे जाय चरित्र, मरे चाहे वे पिसके |
करते रहते खेल, कमीशन काट चवन्नी |
आ के पापड़ बेल, काट ना यूं ही कन्नी ||


राजनैतिक कुण्डलिया : रहे "मुखर-जी" सदा ही, नहीं रहे मन मौन

रविकर
रहे "मुखर-जी" सदा ही, नहीं रहे मन मौन ।
आतंकी फांसी चढ़े, होय दुष्टता *दौन ।
होय दुष्टता *दौन, फटाफट करे फैसले ।
तभी सकेंगे रोक, सदन पर होते हमले ।
कायरता की देन, दिखा सत्ता खुदगर्जी ।
बना "सॉफ्ट-स्टेट",  सॉफ्ट ना रहे "मुखर्जी"।।
*दमन

ZEAL - 
कानाफूसी हो शुरू, खंडित होवे *कानि |
अपना दुखड़ा रोय जो, करता अपनी हानि |
करता अपनी हानि, बुद्धि ना रहे सलामत |
जिसको देती  मान, बुलाता वो ही शामत |
पी के अपना दर्द, ख़ुशी का करो बहाना |
खड़े भेड़िया हिस्र,  छोड़ हरकत बचकाना ||


*सीख  

 

दिन हौले-हौले ढलता है,


धीरेन्द्र सिंह भदौरिया 
मद्धिम रविकर तेज से , हो संध्या बेचैन ।

शर्मा जाती लालिमा, बैन नैन पा सैन ।



बैन नैन पा सैन, पुकारे प्रियतम अपना ।

सर पर चढ़ती रैन, चूर कर देती सपना ।



खग कलरव गोधूलि, बढ़ा  देता है पश्चिम । 
है कुदरत प्रतिकूल, मेटता संध्या मद्धिम ।।  
वो एक लम्हा ...
(दिगम्बर नासवा) 
 स्वप्न मेरे...........
उधर सिधारी स्वर्ग तू, इधर बचपना टाँय |
टाँय टाँय फ़िस बचपना, हरता कौन बलाय | 


हरता कौन बलाय, भूल जाता हूँ रोना |
ना होता नाराज, नहीं बैठूं  उस कोना |


एक साथ दो मौत, बचपना सह महतारी |
करना था संकेत, जरा जब उधर सिधारी ||

shikha varshney 

लन्दन में बेखौफ हो, घूम रहे उद्दंड ।
नहीं नियंत्रण पा रही, लन्दन पुलिस प्रचंड ।
लन्दन पुलिस प्रचंड, दंड का भय नाकाफी ।
नाबालिग का क़त्ल, माँगता जबकि माफ़ी ।
क़त्ल किये सैकड़ों, करे पब्लिक अब क्रंदन ।
शान्ति-व्यवस्था भंग, देखता प्यारा लन्दन ।।



kanupriya 

 दुखी रियाया शहर की, फिर भी बड़ी शरीफ ।
सह लेती सिस्कारियां, खुद अपनी तकलीफ ।
खुद अपनी तकलीफ,  बड़ा बदला सा मौसम ।
वेलेंटाइन बसंत, बरसते ओले हरदम ।
हमदम जो नाराज, आज कर गया पराया ।
बिगड़े सारे साज, भीगती दुखी रियाया ।।  

आउटसोर्स

कमल कुमार सिंह (नारद )  
नारद
जू जू काटे काट जू, भांजे की ललकार |
चापर चॉपर चोट दे, बनता बुरा बिहार |


बनता बुरा बिहार, बड़ा लालची मीडिया |
विज्ञापन की दौड़, चढ़े क्यूँ वहां सीड़ियाँ |


रे प्रेस के अध्यक्ष, माँग के खाए काजू |
ले सत्ता का पक्ष, डराए कह के जू जू ||

 कल्पनाओं का वृक्ष

 रस्तोगी से ईर्ष्या, पर जोड़ी से नेह |
वर्षों यूँ ही बरसता, रहे प्यार का मेह |


रहे प्यार का मेह, देह दोनों की सेहत |
बनी रहे हे ईश, बरक्कत फलती मेहनत |


सुखी रहे सन्तान, युगल की जय जय होगी |
नजर नहीं लग जाय, लगा टीका रस्तोगी ||

 मेरा मन
रागी है यह मन मिरा, तिरा बिना पतवार |
इत-उत भटके सिरफिरा, देता बुद्धि नकार |



देता बुद्धि नकार, स्वार्थी सोलह आने |
करे झूठ स्वीकार, बनाए बड़े बहाने |



विरह-अग्नि दहकाय, लगन प्रियतम से लागी |
सकल देह जलजाय, अजब प्रेमी वैरागी ||

 ओ गांधारी जागो !

रेखा श्रीवास्तव 

 hindigen  


धारी आँखों पे स्वयं, मोटी पट्टी मातु ।
सौ-सुत सौंपी शकुनि को, अंधापन अहिवातु ।
अंधापन अहिवातु, सुयोधन दुर्योधन हो ।
रहा सुशासन खींच, नारि का वस्त्र हरण हो ।
कुंती सा क्यूँ नहीं, उठाई  जिम्मेदारी ।
सारा रविकर दोष, उठा अंधी गांधारी ।
 

8 comments:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (20-02-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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  2. सार्थक लिन संयोजन,टिप्पडी में काव्य का अनूठा प्रस्तुति.

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  3. वाह ... बेहतरीन प्रस्‍तुति

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  4. वाह लाजवाब चर्चा ... सभी मस्त छंद ...

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  5. रागी है यह मन मिरा, तिरा बिना पतवार |
    इत-उत भटके सिरफिरा, देता बुद्धि नकार |
    आभार ,,,रविकर जी,,,

    Recent Post दिन हौले-हौले ढलता है,

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  6. आपकी छंदबद्ध टिप्पणियों का जबाब देना आसान नहीं :).

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  7. आपका जवाब नहीं दिनेश जी .... त्वरित ... आशू कवि हैं आप ....

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