Saturday 16 February 2013

गाली देकर पुरुष पर, करता पुरुष प्रहार-



भानमती की बात - राष्ट्रीय गाली .

प्रतिभा सक्सेना 

 गा ली अपनी भानमति, अपनी मति अनुसार |
गाली देकर पुरुष पर, करता पुरुष प्रहार |

करता पुरुष प्रहार, अगर माँ बहन करे है |
नहीं पुरुष जग माहिं,  कहाँ चुप
सहन करे हैं  |

मारे या मर जाय, जिंदगी क्या है साली |
इज्जत पर कुर्बान, दूसरा पहलू गाली ||



चॉपर अब तो तोपें कल, पश्चिम से होती हलचल


पश्चिम से होती हलचल ।

ताप गिरे दिन-रात का, ठंडी बहे बयार ।

ओले पत्थर गिर रहे, बारिस देती मार ।।

सागर के मस्तक पर बल ।

पश्चिम में होती हलचल ।।



शीत-युद्ध सीमांतरी, हो जाता है गर्म ।

चलते गोले गोलियां, शत्रु छेदता मर्म ।।

 काटे सर करके वह छल ।
पश्चिम में होती हलचल ।।



उड़न खटोला चाहिए, सत्ता मद में चूर ।

बटे दलाली खौफ बिन, खरीदार मगरूर ।

चॉपर अब तो तोपें कल ।
पश्चिम से होती हलचल ।।

 ताऊ की कर बन्दगी, चाची चरणस्पर्श |
गुरुओं की पूजा करा, कई वर्ष दर वर्ष |


कई वर्ष दर वर्ष, हर्ष के दिन आयेंगे  |
फोलोवर सैकड़ों, टिप्पणी दे जायेंगे |


घूम-घाम कर देख, रविकर बड़ा  पकाऊ |
राम राम श्रीमान, ढूँढ़ लो  चाची ताऊ ||

 जो फ़ोल्लोवेर मिल जाएँ
Tushar Raj Rastogi 

 तमाशा-ए-जिंदगी 

खेमेबाजी चरम पर, तगड़ा तम्बू खोज ।
 रविकर से दूरी बना, आ जाता है रोज ।

आ जाता है रोज, नहीं दस टिप्पण पाता ।
कर नौ सौ अनुसरण, समर्थक सौ पहुँचाता ।

या तो चिंता छोड़, रचे रविकर ज्यों रचना ।

स्वान्त: रचो सुखाय, लालसा से तू बचना ।।

(rohitash kumar) 
  वेलेंटाइन मस्त है, सात दिनों में पस्त ।
खोज रोज चाफ़ी वचन, हग कर काम प्रशस्त ।
हग कर काम प्रशस्त , किन्तु वासंतिक बेला ।
चलता दो दो माह, करे बेमतलब खेला ।
जोड़ो खाय पकाय, चिकेन तंदूरी वाइन ।
फेंक फाक फुरसतें, हो गया वेलेंटाइन ।। 

यादों की डिबिया में ...


Dr (Miss) Sharad Singh 


डिबिया में  सिंदूर सम, रखते  पावन भाव |
बड़े चाव से मन करे, अपना नित्य अघाव |


अपना नित्य अघाव, प्रेम ही मूल-मन्त्र है |
सब बंधन से परे, हमेशा ही स्वतंत्र है |


शब्द लिखे उन्नीस, भाव पर बीस दिखा है |
जीने का अंदाज, पुन: तू गई सिखा है ||


 (विष्णु बैरागी) 
 एकोऽहम्
पैनापन विश्वास पर, सुन्दरतम सामीप्य ।
जीवन रूपी दाल में, पत्नी छौंका *दीप्य ।
*जीरा / अजवाइन 
पत्नी छौंका *दीप्य, बढे जीवन रूमानी ।
पुत्र पुत्रियाँ पौत्र, तोतली मनहर वाणी ।

शुभकामना असीम, लड़ाओ वर्षों नैना ।
पर नंदी ले देख, हाथ में उनके ----।।
अब आप ही पूरी  कर दें यह पंक्ति-

अरुण कुमार निगम  
 अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ) -
    कीली ढीली हो गई, गोली गोल गुलेल |
बाज बाज आता नहीं, करे इसी से खेल |

करे इसी से खेल, चूर मद हो जाएगा |
है सिद्धांत अपेल, बड़ा कोई आयेगा |

बढ़ जाता जब जुल्म, मौत तब निश्चय लीली |
फिर आये ना काम , बाज की चोंच नुकीली ||

मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सगी बहन : भगवती शांता -8



सर्ग-2 
भाग-2

सम गोत्रीय विवाह

पीड़ा बेहद जाय बढ़, अंतर-मन अकुलाय ।
जख्मों की तब नीलिमा, कागद पर छा जाय ।।

 उद्यम करता आदमी, हरदम लागे नीक |
पूजा ही यह कर्म है, बाकी लगे अलीक ||


बसंत 


Dr. sandhya tiwari 

मस्त परिंदा हो गया, पर निंदा से दूर |
चोंच चोंच में चुलबुला, सारे दूर फितूर |
सारे दूर फितूर, मगन है वह बसंत में |
सारी खुशियाँ ढूंढ़, रही प्रियतमा कंत में |
रति-अनंग शिव आज, करें धरती पर ज़िंदा |
साधुवाद री सखी, जिए यह ब्लॉग परिंदा ||



7 comments:

  1. बहुत सुन्दर!
    अभी कई बॉक्स खाली हैं!

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  2. रविकर जी!
    मयंक के कोना में में 2 पोस्ट और लगाई हैं।
    सूचना दे देना प्लीज!
    आभार!

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  3. शब्द आपके न रहें कभी भी उन्नीस,
    उन्नत काव्य रचना रहे हमेशा बीस.

    बहुत ही सार्थक लिंकों की सुन्दर प्रस्तुति.

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  4. छोड़ने को दिल नहीं चाहता है पर क्या करें ? समय की पावंदी साथ है |

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  5. बहुत सुनकर लिंक चयन | मेरी रचना शामिल करने हेतु आभार गुरूजी | प्रणाम |

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  6. आदरणीय गुरुदेव श्री बेहद शानदार एवं धारदार प्रस्तुति हार्दिक बधाई स्वीकारें

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  7. मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत- बहुत आभार ...आपने बहुत ही सुन्दर दोहे रचे है परिंदा के लिए .............

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