खाकी के प्रति नजरिया, सकते बदल अशोक |
शोक हरें निर्बलों का, दें दुष्टों को ठोक |
शोक हरें निर्बलों का, दें दुष्टों को ठोक |
दें दुष्टों को ठोक, नोक पर इक चाक़ू के |
हरें शील, धन, स्वर्ण, हमेशा खाकी चूके |
सज्जन में भय व्याप्त, बढे दुर्जन की ताकत |
पुलिस जाय गर सुधर, ख़तम हो आधी आफत |।
पता न था वक्त ऐसे बदल जाएगा
Maheshwari kaneri
वक्त वक्त की बात है, बढ़िया था वह दौर |
समय बदलता जा रहा, कुछ बदलेगा और |
कुछ बदलेगा और, आग से राख हुई जो |
पानी धूप बयार, प्यार से तनिक छुई जो |
मिट जायेगा दर्द, सर्द सी सिसकारी में |
ढक जाएगा गर्द, पुन: तन लाचारी में |
रिक्शे पर एक अमर प्रेम
रंजीत
रिक्शा खींचे मर्द यह, बचा रहा बीमार |
बचा रहा बीमार, साथ रहने की जिद है |
मिटने को तैयार, प्यार रविकर बेहद है |
शुभ-कामना असीम, पुरुष हों जाएँ आदी |
है पति का कर्तव्य, निभाये भरसक शादी ||
बहुत ही बढिया प्रस्तुति।
ReplyDeleteकुछ बदलेगा और, आग से राख हुई जो |
ReplyDeleteपानी धूप बयार, प्यार से तनिक छुई जो |
कुछ बदलेगा और, आग से राख हुई जो |
पानी धूप बयार, प्यार से तनिक छुई जो | कोमल मानवीय अपेक्षाओं से संसिक्त रचना .नारी बचाओ ....कन्या बचाओ ..
गुप्ता जी सुन्दर लिंक और आप की टिपण्णी
ReplyDeleteपुलिस ही नहीं
ReplyDeleteइस देश में तो
पता नहीं किस
किस को सुधारना है?
सटीक विवेचन।
ReplyDeleteनेता सुधर जाएं तो पुलिस भी सुधरेगी !
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