स्वतंत्रता दिवस और हमारी ग़ुलामी की जंजीरें ---
दादा ताऊ को नमन, चाचाओं परनाम |
है दराल उपनाम प्रति, श्रद्धा भरी तमाम |
श्रद्धा भरी तमाम, आज का युवा भुलक्कड़ |
ताक झाँक में मस्त, खड़ा दिनभर उस नुक्कड़ |
सेना की नौकरी, मात्र नौकरी नहीं है |
पूजा है यह दोस्त, भारती देख रही है |
सेना की नौकरी, मात्र नौकरी नहीं है |
पूजा है यह दोस्त, भारती देख रही है |
उषा मेहता का खुफिया कांग्रेस रेडियो
बुरा भला
संचार माध्यम से हुआ, मानव जीवन धन्य |असरदार यह खोज है, पीछे छोड़ी अन्य |
पीछे छोड़ी अन्य, समझ लो डी एन ए सम |
कान्ग्रेस रेडिओ, बजाई ऊषा भर दम |
आजादी की जंग, रेडिओ क्रान्ति कर गया |
गांधी की आवाज, जोश से गगन भर गया ||
आजादी
सुशील
उल्लूक टाईम्स
उल्लूक टाईम्स
आजादी का आजकल, मतलब निकले ढेर |
चीर मेमने को धरे, मिसरा झूठे शेर |
मिसरा झूठे शेर, फेर में गर पड़ जाएँ |
छट्ठी का माँ कसम, याद हम दूध कराएँ |
आजादी का अर्थ, नहीं है ऐसा प्यारे |
घुसो उठाये सींग, किसी का पेट विदारे ||
बम चिक बम चिक बम फटे, लटे चकाचक बोल |
अन्तर्मन की न सही, देते कलई खोल |
देते कलई खोल , ढोल पीते हैं जाते |
किलो जलेबी तौल, ढेर सी घर भिजवाते |
करे प्रभात से फेर, थके सब छात्र छात्रा |
मचा हुआ अंधेर, भूलते रोज मात्रा |
चीर मेमने को धरे, मिसरा झूठे शेर |
मिसरा झूठे शेर, फेर में गर पड़ जाएँ |
छट्ठी का माँ कसम, याद हम दूध कराएँ |
आजादी का अर्थ, नहीं है ऐसा प्यारे |
घुसो उठाये सींग, किसी का पेट विदारे ||
पंद्रह अगस्त पर चकाचक की चकाचक आवाज
Fazal Imam Mallick
नुक्कड़
नुक्कड़
बम चिक बम चिक बम फटे, लटे चकाचक बोल |
अन्तर्मन की न सही, देते कलई खोल |
देते कलई खोल , ढोल पीते हैं जाते |
किलो जलेबी तौल, ढेर सी घर भिजवाते |
करे प्रभात से फेर, थके सब छात्र छात्रा |
मचा हुआ अंधेर, भूलते रोज मात्रा |
fact n figure: बांसुरी नई तो सुर पुराना क्यों!
devendra gautam
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टेर लुटेरे न सुनें, प्रणव नाद न दुष्ट |
हुन्कारेंगें जब सभी, तब होंगे संतुष्ट |
तब होंगे संतुष्ट, पुष्ट ये धन दौलत से |
चोरी की लत-कुष्ट, सफेदी झलके पट से |
तन पे खद्दर डाल, लूटते हैं गांधी भी |
सारे खड़े बवाल, हिले इनकी न जीभी ||
कमर कमानी सी लगे, हाथ लगे दो तीर |
पैसठ सालों ने किया, इनको बहुत अधीर |
इनको बहुत अधीर, चुरा राशन का पैसा |
शिक्षा स्वास्थ्य चुराय, खाय वे बकरा भैंसा |
इनको मिले न अन्न, सन्न ताकें छत गायब |
बाकी लोग प्रसन्न, कहें जय जय हे साहब ||
टेर लुटेरे न सुनें, प्रणव नाद न दुष्ट |
हुन्कारेंगें जब सभी, तब होंगे संतुष्ट |
तब होंगे संतुष्ट, पुष्ट ये धन दौलत से |
चोरी की लत-कुष्ट, सफेदी झलके पट से |
तन पे खद्दर डाल, लूटते हैं गांधी भी |
सारे खड़े बवाल, हिले इनकी न जीभी ||
इसको तो पता ही नहीं चला !!
कमर कमानी सी लगे, हाथ लगे दो तीर |
पैसठ सालों ने किया, इनको बहुत अधीर |
इनको बहुत अधीर, चुरा राशन का पैसा |
शिक्षा स्वास्थ्य चुराय, खाय वे बकरा भैंसा |
इनको मिले न अन्न, सन्न ताकें छत गायब |
बाकी लोग प्रसन्न, कहें जय जय हे साहब ||
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें :चर्चा मंच
नीलकंठ के विष बुझे, निकले वाणी वाण |
खोल तीसरा नेत्र वे, यहाँ वसूलें दांड़ |
यहाँ वसूलें दांड़, सांढ़ सा सबको थूरें |
तेज सर्प-फुफकार, लपेटे भस्म अधूरे |
सर पर चंदा शांत, किन्तु मन बड़ा सशंकित |
होकर के वे क्लांत, करे हम सब को टंकित ||
बुरा भला सब कुछ सुनें, आँगन कुटी छवाय |
पाठक गण के ध्यान में, जाती गलती आय |
जाती गलती आय, ब्लॉग पर भी जाना है |
पाठक उनके छीन, छान कर न लाना है |
गुस्सा दीजै थूक, चूक अक्सर हो जाती |
होगा वही सलूक, रूल बुक जो समझाती ||
यह बिरला सन्देश यूँ, नहीं सुनाओ नाथ |
बिना आप की पोस्ट के, कैसे पाऊं पाथ |
कैसे पाऊं पाथ, माह में तीन पोस्ट लीं |
ठीक ठाक टिप्पणी, चार छ: बड़ी बड़ी की |
देते यूँ आभार, आपकी रीति सही है |
बड़े बड़ों का प्यार, गीतिका मरी नहीं है ||
पाठक गण के ध्यान में, जाती गलती आय |
जाती गलती आय, ब्लॉग पर भी जाना है |
पाठक उनके छीन, छान कर न लाना है |
गुस्सा दीजै थूक, चूक अक्सर हो जाती |
होगा वही सलूक, रूल बुक जो समझाती ||
यह बिरला सन्देश यूँ, नहीं सुनाओ नाथ |
बिना आप की पोस्ट के, कैसे पाऊं पाथ |
कैसे पाऊं पाथ, माह में तीन पोस्ट लीं |
ठीक ठाक टिप्पणी, चार छ: बड़ी बड़ी की |
देते यूँ आभार, आपकी रीति सही है |
बड़े बड़ों का प्यार, गीतिका मरी नहीं है ||
अरुण निगम को जन्मदिन की बधाई
देने पर पर मेरी मिठाई
प्रोफाइल को ठीक से, देखो प्यारे मित्र |
नीचे मिष्टी है रखी, ऊपर मेरा चित्र |
ऊपर मेरा चित्र, बनाने की विधि सारी |
छपी वहां क्रमवार, करूँ जैसी तैयारी |
आओ खा लो आज, मगर न करो बहाना |
दो के बदले चार, गिफ्ट पर बढ़िया लाना ||
नीचे मिष्टी है रखी, ऊपर मेरा चित्र |
ऊपर मेरा चित्र, बनाने की विधि सारी |
छपी वहां क्रमवार, करूँ जैसी तैयारी |
आओ खा लो आज, मगर न करो बहाना |
दो के बदले चार, गिफ्ट पर बढ़िया लाना ||
प्रोफाइल गीत
वर्णों का आंटा गूँथ-गूँथ, शब्दों की टिकिया गढ़ता हूँ|
समय-अग्नि में दहकाकर, मद्धिम-मद्धिम तलता हूँ||
चढ़ा चासनी भावों की, ये शब्द डुबाता जाता हूँ |
गरी-चिरोंजी अलंकार से, फिर क्रम वार सजाता हूँ ||
समय-अग्नि में दहकाकर, मद्धिम-मद्धिम तलता हूँ||
चढ़ा चासनी भावों की, ये शब्द डुबाता जाता हूँ |
गरी-चिरोंजी अलंकार से, फिर क्रम वार सजाता हूँ ||
ReplyDeleteआयुर्वेद से लेकर होमियोपैथ
ना जाने क्या हो जाता है
हर मर्ज की दवा की पुड़िया
पता नहीं कहाँ से ले आता है ?
Great comments Ravikar ji. Loving it.
ReplyDeleteवर्णों का आंटा गूँथ-गूँथ, शब्दों की टिकिया गढ़ता हूँ|
ReplyDeleteसमय-अग्नि में दहकाकर, मद्धिम-मद्धिम तलता हूँ||
चढ़ा चासनी भावों की, ये शब्द डुबाता जाता हूँ |
गरी-चिरोंजी अलंकार से, फिर क्रम वार सजाता हूँ |
waah waah waah ...Laajawaab !
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteस्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!