करता बंदरबांट, कटे वासेपुर अन्दर-
अंगारों पर ही बसा, है झरिया अधिकाँश |
भू-धसान हरदिन घटे, जलता जिन्दा मांस |
जलता जिन्दा मांस, जलाने वालों सुन लो |
इक बढ़िया सी मौत, स्वयं से पहले चुन लो |
खड़ी हमारी खाट, करे चालाक मिनिस्टर |
करता बंदरबांट, कटे वासेपुर अन्दर ||
भू-धसान हरदिन घटे, जलता जिन्दा मांस |
जलता जिन्दा मांस, जलाने वालों सुन लो |
इक बढ़िया सी मौत, स्वयं से पहले चुन लो |
खड़ी हमारी खाट, करे चालाक मिनिस्टर |
करता बंदरबांट, कटे वासेपुर अन्दर ||
मदन लाल जी धींगरा, सावरकर का संग |
मारें घुस के वायली, अंग्रेजी सत्ता दंग |
अंग्रेजी सत्ता दंग, देश में उनके घुसकर |
बदला लेता मार, उन्ही का आला अफसर |
बुरे यहाँ हालात, भरा अब कुल बवाल जी |
साधुवाद आभार, नमन हे मदन लाल जी ||
मारें घुस के वायली, अंग्रेजी सत्ता दंग |
अंग्रेजी सत्ता दंग, देश में उनके घुसकर |
बदला लेता मार, उन्ही का आला अफसर |
बुरे यहाँ हालात, भरा अब कुल बवाल जी |
साधुवाद आभार, नमन हे मदन लाल जी ||
सुन्दर सत्यम शिवम् सा, स्वप्न सुशील सकाळ |
नंदी सींगें मारता, नाग दिखे विकराल |
नाग दिखे विकराल, चंद्रमा साधू ढोंगी |
समझ अहिल्या चाल, भगाया जोगी भोगी |
शंकर संग त्रिशूल, भूल से हाथ लगाया |
बाघम्बर सा ब्लॉग, हमारे मन को भाया ||
केतकी
आह केतकी आह है, गजब समर्पण भाव |
दृष्टान्तों का दोष से, किया स्वयं अलगाव |
किया स्वयं अलगाव, जरा सोचा तो होता |
यही अंश का वंश, तुम्हारा वक्ष भिगोता |
अवसर देती एक, नेक यह होती घटना |
देता मैं भी साथ, खले चुपचाप निपटना ||
आत्म-चिंतन
होंठों पर सच यूँ जमा, ज्यों शिखरों पर बर्फ ।
पपड़ी परतों में जमीं, जमें सत्य के हर्फ़ ।
जमें सत्य के हर्फ़, दर्प की जली मशालें ।
रहा जलाता मर्म, फफोले जलते छाले ।
रविकर अब निश्तेज, भेज कोई रखवाला ।
कैद करे ये झूठ, लगाए मरहम आला ।
हर कोने में होय तमाशा
मानव की यह काया कैसी
ब्रह्म-पुत्र में गले बताशा ||
कावेरी में रणभेरी सुन -
ढोल नगाड़े मारू तासा |
गंगा यमुना में भी बढती-
घोर निराशा परम हताशा ||
खुद ही अपने तन को काटें-
उल्टा चलता तेज गडासा ।
आग लगाकर लोग तापते-
ऐसी ही है रक्त पिपासा ||
Hindi Bloggers Forum International (HBFI)
किया हकीकत को बयां, क्या बढ़िया अंदाज |
अंदाजा उनको नहीं, जिनके कंधे आज |
जिनके कंधे आज, रखे ढेरों बंदूकें |
दें तुमको ही दाग, अगर तुम किंचित चूके |
चुके हुवे वे लोग, चुकाते हैं क्या बदला |
बदला यह जग खूब, किन्तु बदला न अगला ||
चिदर्पिता के अर्थ को, करे सार्थक जाय |
जब भी रहती मौज में, एक प्लेट में खाय |
एक प्लेट में खाय, मगर साहस है भाई |
पहले गई अघाय, मौत ही शायद लाई |
चिन्मय का आनंद, बंद तो नहीं हुआ था |
जबकि बीते वर्ष, साध्वी नहीं छुवा था ||
किन्तु केक क्यूँ काटते, कटते अंग तमाम |
कटते अंग तमाम, ड्राइवर भी मर जाता |
ताम-झाम बेकाम, केक क्या कोई खाता |
टी वी फोटो शूट, नया करने की चाहत |
नहीं हजम हो बात, मौत पर रविकर आहत ||
नंदी सींगें मारता, नाग दिखे विकराल |
नाग दिखे विकराल, चंद्रमा साधू ढोंगी |
समझ अहिल्या चाल, भगाया जोगी भोगी |
शंकर संग त्रिशूल, भूल से हाथ लगाया |
बाघम्बर सा ब्लॉग, हमारे मन को भाया ||
केतकी
आह केतकी आह है, गजब समर्पण भाव |
दृष्टान्तों का दोष से, किया स्वयं अलगाव |
किया स्वयं अलगाव, जरा सोचा तो होता |
यही अंश का वंश, तुम्हारा वक्ष भिगोता |
अवसर देती एक, नेक यह होती घटना |
देता मैं भी साथ, खले चुपचाप निपटना ||
चिंतन ...
सदाआत्म-चिंतन
होंठों पर सच यूँ जमा, ज्यों शिखरों पर बर्फ ।
पपड़ी परतों में जमीं, जमें सत्य के हर्फ़ ।
जमें सत्य के हर्फ़, दर्प की जली मशालें ।
रहा जलाता मर्म, फफोले जलते छाले ।
रविकर अब निश्तेज, भेज कोई रखवाला ।
कैद करे ये झूठ, लगाए मरहम आला ।
यह कैसी आतंक पिपासा
धूल धूसरित जीवन आशा,हर कोने में होय तमाशा
मानव की यह काया कैसी
ब्रह्म-पुत्र में गले बताशा ||
कावेरी में रणभेरी सुन -
ढोल नगाड़े मारू तासा |
गंगा यमुना में भी बढती-
घोर निराशा परम हताशा ||
खुद ही अपने तन को काटें-
उल्टा चलता तेज गडासा ।
आग लगाकर लोग तापते-
ऐसी ही है रक्त पिपासा ||
ग़ज़लगंगा.dg: हुकूमत की चाबी.....
devendra gautamHindi Bloggers Forum International (HBFI)
किया हकीकत को बयां, क्या बढ़िया अंदाज |
अंदाजा उनको नहीं, जिनके कंधे आज |
जिनके कंधे आज, रखे ढेरों बंदूकें |
दें तुमको ही दाग, अगर तुम किंचित चूके |
चुके हुवे वे लोग, चुकाते हैं क्या बदला |
बदला यह जग खूब, किन्तु बदला न अगला ||
साध्वी फिर पहुंची बलात्कारी स्वामी के पास ...
महेन्द्र श्रीवास्तव
चिदर्पिता के अर्थ को, करे सार्थक जाय |
जब भी रहती मौज में, एक प्लेट में खाय |
एक प्लेट में खाय, मगर साहस है भाई |
पहले गई अघाय, मौत ही शायद लाई |
चिन्मय का आनंद, बंद तो नहीं हुआ था |
जबकि बीते वर्ष, साध्वी नहीं छुवा था ||
बेटे की अंतिम इच्छा के लिए पिता ने श्मशान में काटा केक
चारो बच्चे गुजरते, दुर्घटना परिणाम |किन्तु केक क्यूँ काटते, कटते अंग तमाम |
कटते अंग तमाम, ड्राइवर भी मर जाता |
ताम-झाम बेकाम, केक क्या कोई खाता |
टी वी फोटो शूट, नया करने की चाहत |
नहीं हजम हो बात, मौत पर रविकर आहत ||
अमन की अपील !
संतोष त्रिवेदी
बैसवारी baiswari
मरें प्रतिष्ठा के लिए, जिन्दा झूठी शान |
पूंछ पकड़कर कर रहे, मरती बछिया दान |
मरती बछिया दान, सुअर मस्जिद में घुसता |
राक्षस नहीं अघान, जला घर लेता सुस्ता |
होय घात प्रतिघात, रात दिन होता खेला |
सत्ता की शय-मात, लगा लाशों का मेला ||
नकारात्मक है विपक्ष, रटे एक ही बात |
पुन: रपट पैदा करे, कुछ मुश्किल हालात |
कुछ मुश्किल हालात, लात सत्ता को मारूं |
है जी का जंजाल, समय तुझको धिक्कारूं |
सर पर रक्खा हाथ, झटक दूँ कैसे भैया |
है मैया जो साथ, डुबाऊँ कैसे नैया ||
मरें प्रतिष्ठा के लिए, जिन्दा झूठी शान |
पूंछ पकड़कर कर रहे, मरती बछिया दान |
मरती बछिया दान, सुअर मस्जिद में घुसता |
राक्षस नहीं अघान, जला घर लेता सुस्ता |
होय घात प्रतिघात, रात दिन होता खेला |
सत्ता की शय-मात, लगा लाशों का मेला ||
प्रधानमंत्री का इस्तीफा ???.... सो बोरिंग !!!
नकारात्मक है विपक्ष, रटे एक ही बात |
पुन: रपट पैदा करे, कुछ मुश्किल हालात |
कुछ मुश्किल हालात, लात सत्ता को मारूं |
है जी का जंजाल, समय तुझको धिक्कारूं |
सर पर रक्खा हाथ, झटक दूँ कैसे भैया |
है मैया जो साथ, डुबाऊँ कैसे नैया ||
बहुत बढ़िया..
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (19-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बस 'वाह' ही निकलता है मुँह से !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बेहतरीन प्रस्तुति
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