औरत के रूप -आमिर दुबई
नारी का पुत्री जनम, सहज सरलतम सोझ |
सज्जन रक्षे भ्रूण को, दुर्जन मारे खोज ||
नारी बहना बने जो, हो दूजी संतान
होवे दुल्हन जब मिटे, दाहिज का व्यवधान ||
नारी का है श्रेष्ठतम, ममतामय अहसास |
बच्चा पोसे गर्भ में, काया महक सुबास ||
ब्रह्मचर्य व्रत की प्रतिज्ञा -मनोज कुमार
गांधी जी का ब्रह्मचर्य, यौनेच्छा का त्याग |
इससे भी बढ़कर रहा, पत्नी का सहभाग |
पत्नी का सहभाग, क्रोध घृणा मद छोड़ा |
भाषण कर्म विचार, धर्म उन्मुख हो मोड़ा |
इन्द्रियों पर अधिकार, जितेन्द्रिय हो जाते हैं |
सेवा व्रत सम्पूर्ण, बड़ा आदर पाते हैं ||
कविता और गीत -डॉ. जे.पी.तिवारी
दृष्टि-भेद से उपजते, अपने अपने राम |
सत्य एक शाश्वत सही, वो ही हैं सुखधाम |
वो ही हैं सुखधाम, नजरिया एक कीजिये |
शान्ति का पैगाम, देश-हित काम कीजिये |
पञ्च-भूत ये वर्ण, वन्दना इनकी ईश्वर |
धर्म कर्म का मर्म, समझता जाए रविकर ||
मित्र की एक परिभाषा -सुनील कुमार
फ्रेंड बड़ा सा शिप लिए, रहे सुरक्षित खेय |
चलें नहीं पर शीप सा, यही ट्रेंड है गेय |
यही ट्रेंड है गेय, बिलासी बुद्धि नाखुश |
गलत राह पर जाय, लगाए रविकर अंकुश |
दुःख सुख का नित साथ, संयमित स्नेही भाषा |
एक जान दो देह, यही है फ्रेंड-पिपासा ||
टाँय-टाँय फिस फ्रेड शिप, टैटेनिक दो टूक |
अहम्-शिला से बर्फ की, टकराए हो चूक |
टकराए हो चूक, हूक हिरदय में उठती |
रह जाये गर मूक, सदा मन ही मन कुढती |
इसीलिए हों रोज, सभी विषयों पर चर्चे |
गलती अपनी खोज, गाँठ पड़ जाय अगरचे ||
मित्र सेक्स विपरीत गर, रखो हमेशा ख्याल |
बनों भेड़िया न कभी, नहीं बनो वह व्याल |
नहीं बनो वह व्याल, जहर-जीवन का पी लो |
हो अटूट विश्वास, मित्र बन जीवन जी लो |
एक घरी का स्वार्थ, घरौंदा नहीं उजाड़ो |
बृहन्नला बन पार्थ, वहां मौका मत ताड़ो ||
चलें नहीं पर शीप सा, यही ट्रेंड है गेय |
यही ट्रेंड है गेय, बिलासी बुद्धि नाखुश |
गलत राह पर जाय, लगाए रविकर अंकुश |
दुःख सुख का नित साथ, संयमित स्नेही भाषा |
एक जान दो देह, यही है फ्रेंड-पिपासा ||
टाँय-टाँय फिस फ्रेड शिप, टैटेनिक दो टूक |
अहम्-शिला से बर्फ की, टकराए हो चूक |
टकराए हो चूक, हूक हिरदय में उठती |
रह जाये गर मूक, सदा मन ही मन कुढती |
इसीलिए हों रोज, सभी विषयों पर चर्चे |
गलती अपनी खोज, गाँठ पड़ जाय अगरचे ||
मित्र सेक्स विपरीत गर, रखो हमेशा ख्याल |
बनों भेड़िया न कभी, नहीं बनो वह व्याल |
नहीं बनो वह व्याल, जहर-जीवन का पी लो |
हो अटूट विश्वास, मित्र बन जीवन जी लो |
एक घरी का स्वार्थ, घरौंदा नहीं उजाड़ो |
बृहन्नला बन पार्थ, वहां मौका मत ताड़ो ||
एक से जबर एक !
ReplyDeleteसब के सब एक से बढ कर एक। आभार।
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ७/८/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है |
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