Wednesday, 15 August 2012

होय बुराई पस्त, ढकी फूलों से झाड़ी

बुराई और भलाई


मानसून मनभर बरस, हरसाये इस बरस |
कांटे सड़ते टूटते, रही लताएँ हरस |

रही लताएँ हरस, सरस उर्वरा धरा ने |
कर के अंकुर परस, लगी नित उसे बढाने |

होय बुराई पस्त, ढकी फूलों से झाड़ी |
लता बढ़ी मदमस्त,  हारती बुरी खिलाड़ी ||

स्वतंत्रता दिवस और हमारी ग़ुलामी की जंजीरें ---

डॉ टी एस दराल
 दादा ताऊ को नमन, चाचाओं परनाम |
है दराल उपनाम प्रति, श्रद्धा भरी तमाम |

श्रद्धा भरी तमाम, आज का युवा भुलक्कड़ |
ताक झाँक में मस्त, खड़ा दिनभर उस नुक्कड़ |
 
सेना की नौकरी, मात्र नौकरी नहीं है |
पूजा है यह दोस्त, भारती देख रही है |

पंद्रह अगस्त पर चकाचक की चकाचक आवाज

Fazal Imam Mallick
नुक्कड़  

 बम चिक बम चिक बम फटे, लटे चकाचक बोल |
अन्तर्मन की न सही, देते  कलई खोल |



देते  कलई खोल , ढोल पीते हैं जाते |
किलो जलेबी तौल, ढेर सी घर भिजवाते |



करे प्रभात से फेर, थके सब छात्र छात्रा |
मचा हुआ अंधेर,  भूलते रोज मात्रा |

 

3 comments: