बुराई और भलाई
मानसून मनभर बरस, हरसाये इस बरस |
कांटे सड़ते टूटते, रही लताएँ हरस |
कांटे सड़ते टूटते, रही लताएँ हरस |
रही लताएँ हरस, सरस उर्वरा धरा ने |
कर के अंकुर परस, लगी नित उसे बढाने |
होय बुराई पस्त, ढकी फूलों से झाड़ी |
लता बढ़ी मदमस्त, हारती बुरी खिलाड़ी ||
स्वतंत्रता दिवस और हमारी ग़ुलामी की जंजीरें ---
दादा ताऊ को नमन, चाचाओं परनाम |
है दराल उपनाम प्रति, श्रद्धा भरी तमाम |
श्रद्धा भरी तमाम, आज का युवा भुलक्कड़ |
ताक झाँक में मस्त, खड़ा दिनभर उस नुक्कड़ |
सेना की नौकरी, मात्र नौकरी नहीं है |
पूजा है यह दोस्त, भारती देख रही है |
बम चिक बम चिक बम फटे, लटे चकाचक बोल |
अन्तर्मन की न सही, देते कलई खोल |
देते कलई खोल , ढोल पीते हैं जाते |
किलो जलेबी तौल, ढेर सी घर भिजवाते |
करे प्रभात से फेर, थके सब छात्र छात्रा |
मचा हुआ अंधेर, भूलते रोज मात्रा |
सेना की नौकरी, मात्र नौकरी नहीं है |
पूजा है यह दोस्त, भारती देख रही है |
पंद्रह अगस्त पर चकाचक की चकाचक आवाज
Fazal Imam Mallick
नुक्कड़
नुक्कड़
बम चिक बम चिक बम फटे, लटे चकाचक बोल |
अन्तर्मन की न सही, देते कलई खोल |
देते कलई खोल , ढोल पीते हैं जाते |
किलो जलेबी तौल, ढेर सी घर भिजवाते |
करे प्रभात से फेर, थके सब छात्र छात्रा |
मचा हुआ अंधेर, भूलते रोज मात्रा |
जय हो !
ReplyDeleteत्वरित टिप्पणी... अच्छे लिंक्स...
ReplyDeleteसादर आभार।
बहुत सुन्दर...
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