dheerendra
काव्यान्जलि ...
काव्यान्जलि ...
दया याद में हैं नहीं, करूँ नहीं फ़रियाद |
वादा का दावा किया, छोड़ वाद परिवाद |
छोड़ वाद परिवाद , सही निष्ठुरता तेरी |
दूँ जख्मों को दाद, रात यह सर्द घनेरी |
रविकर जागा खूब, दर्द के गजब स्वाद में |
रहा नहीं अब ऊब, भेज मत दया याद में ||
वादा का दावा किया, छोड़ वाद परिवाद |
छोड़ वाद परिवाद , सही निष्ठुरता तेरी |
दूँ जख्मों को दाद, रात यह सर्द घनेरी |
रविकर जागा खूब, दर्द के गजब स्वाद में |
रहा नहीं अब ऊब, भेज मत दया याद में ||
हम बोले तो ......
आशा जोगळेकरस्व प्न रं जि ता
बड़ बोलों की वाह है, मम बोली बड़बोल |
यही दोगलापन चले, झेलूँ नित भू-डोल |
झेलूँ नित भू-डोल , खोल दूँ पोल सभी की |
मंहगाई से त्रस्त, शिकायत नहीं कभी की |
रविकर अब अभ्यस्त, किन्तु मोहन मुंह खोलो |
सत्ता कित्ता मस्त, तनिक बोलो बड़-बोलों ||
यही दोगलापन चले, झेलूँ नित भू-डोल |
झेलूँ नित भू-डोल , खोल दूँ पोल सभी की |
मंहगाई से त्रस्त, शिकायत नहीं कभी की |
रविकर अब अभ्यस्त, किन्तु मोहन मुंह खोलो |
सत्ता कित्ता मस्त, तनिक बोलो बड़-बोलों ||
झण्डा ऊँचा रहे हमारा
(प्रवीण पाण्डेय)
न दैन्यं न पलायनम्
दिखी पलायन दीनता, मन का भय आतंक |
आश्रय धंधा छीनता, अफवाहों का डंक |
अफवाहों का डंक, रहे जन गन मन नायक |
जले शंक की लंक, मिले अधिकारी लायक |
कठिनाई में धैर्य, जिताए बड़े युद्ध को |
साधुवाद हे वीर, दुआ दूँ चित्त शुद्ध को |
आश्रय धंधा छीनता, अफवाहों का डंक |
अफवाहों का डंक, रहे जन गन मन नायक |
जले शंक की लंक, मिले अधिकारी लायक |
कठिनाई में धैर्य, जिताए बड़े युद्ध को |
साधुवाद हे वीर, दुआ दूँ चित्त शुद्ध को |
अफवाह ने की है नींद हराम.....
Suman
"सुरभित सुमन"
काना फूसी से रहा, कानपूर हलकान |
विगत वर्ष फैली यहाँ, इक अफवाह समान |
इक अफवाह समान, अवध पूरा थर्राया |
शुभ चिन्तक की काल, काल से दिल घबराया |
जागे सारी रात, रपट चोरी ना थाना |
सोया घोड़ा बेच, पाय ना चोर ठिकाना ||
रैपर टाफ़ी का दिखा, दीखे छिलके सेब |
भारत सुन्दर सा लिखा, कचड़े में न ऐब |
कचड़े में न ऐब, कतरने टुकड़े बीने |
पड़ा कबाड़ा ढेर, कबाड़ी बचपन छीने |
कड़े नियम कानून, लिखाते संसद पेपर |
खाँय करिंदे माल, बटोरें बच्चे रैपर ||
काना फूसी से रहा, कानपूर हलकान |
विगत वर्ष फैली यहाँ, इक अफवाह समान |
इक अफवाह समान, अवध पूरा थर्राया |
शुभ चिन्तक की काल, काल से दिल घबराया |
जागे सारी रात, रपट चोरी ना थाना |
सोया घोड़ा बेच, पाय ना चोर ठिकाना ||
"हमें फुर्सत नहीं मिलती" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
भारत सुन्दर सा लिखा, कचड़े में न ऐब |
कचड़े में न ऐब, कतरने टुकड़े बीने |
पड़ा कबाड़ा ढेर, कबाड़ी बचपन छीने |
कड़े नियम कानून, लिखाते संसद पेपर |
खाँय करिंदे माल, बटोरें बच्चे रैपर ||
गूगल पेज रैंकिंग में कौन कहाँ पर .............
लिखना रविकर काम है, ब्लॉग लिंक-लिक्खाड़ |
काव्यमयी हैं टिप्पणी, करूँ पोस्ट कुल ताड़ |
करूँ पोस्ट कुल ताड़, कुंडली रचूँ मनोहर |
लिंक सहित दूँ छाप, महज मिनटों के अन्दर |
करूँ टिप्पणी जाय, किन्तु उनका ना दिखना |
उत्साह घटाए सत्य, मगर जारी है लिखना ||
काव्यमयी हैं टिप्पणी, करूँ पोस्ट कुल ताड़ |
करूँ पोस्ट कुल ताड़, कुंडली रचूँ मनोहर |
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करूँ टिप्पणी जाय, किन्तु उनका ना दिखना |
उत्साह घटाए सत्य, मगर जारी है लिखना ||
पैर जमीन से उठा बड़ा आदमी हो जा
सुशील
बायाँ पैर उठा सकते हो, दायाँ साथ उठाना सीखो ।
धरती से ऊपर उठ करके, काया तनिक उड़ाना सीखो ।
करो हवा से बात तभी तो, बड़े आदमी कहलाओगे ।
एक टिकट ले वायुयान का , गगन हाथ में भर सकते हो ।
अगर नहीं यह हो पता है, एक साइकिल ही ले आओ ।
चैन मिले दोनों पैरों से, खूब हवा में चलो उडाओ ।।
धरती से ऊपर उठ करके, काया तनिक उड़ाना सीखो ।
करो हवा से बात तभी तो, बड़े आदमी कहलाओगे ।
एक टिकट ले वायुयान का , गगन हाथ में भर सकते हो ।
अगर नहीं यह हो पता है, एक साइकिल ही ले आओ ।
चैन मिले दोनों पैरों से, खूब हवा में चलो उडाओ ।।
बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (26-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
राजा को लाकर दिखाना
ReplyDeleteउसको कहीं नहीं है जाना
रानी को लाकर दिखाना
उसको भी कहीं नहीं है जाना
तुम तो हो ही पक्के
कच्चे टिप्प्णीकार हम भी हो गये
करते रहें आना जाना ।
बेहतरीन खूबसूरत रचना
ReplyDeletebadhiya
ReplyDeletebahut sundar ....aabhar !
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