"दर्द का, मरहम लगा लिया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मांसाहारी निगलते, तला कलेजा रान ।
कुक्कुर जैसा नोचते, तान तान हैरान ।
तान तान हैरान, दर्द का डाल मसाला ।
बना रहे स्वादिष्ट, आप क्यूँ गैर निवाला ?
रहिये फक्कड़ मस्त, रखो दुनिया ठेंगे पर ।
हो जाएँ अभ्यस्त, मार्ग दिखलायें गुरुवर ।।
भरी शरारत है विकट, नटखट बंड सरीर ।
शब्द बुद्धि से हीन गर, मुर्दा समझ शरीर।
मुर्दा समझ शरीर, समझदारी बस इतनी ।
ज्यों माथे की मौत, देर में दिल से जितनी ।
सत्यम शिवम् विचार, नाम से न आते हैं ।
सुन्दरता क्या ख़ाक, व्यर्थ पगला जाते हैं ।।
आज बनी निरपेक्षता, सत्ता के सापेक्ष |
आड़ धर्म का ले चतुर, लगा रहे आक्षेप |
लगा रहे आक्षेप, करे निज उल्लू सीधा |
चल नीतीश के तीर, अगर बीधा तो बीधा |
एक तीर से आज, शिकारी करे अनोखा |
देखे दिल्ली राज, बना ऊपर से चोखा ||
आड़ धर्म का ले चतुर, लगा रहे आक्षेप |
लगा रहे आक्षेप, करे निज उल्लू सीधा |
चल नीतीश के तीर, अगर बीधा तो बीधा |
एक तीर से आज, शिकारी करे अनोखा |
देखे दिल्ली राज, बना ऊपर से चोखा ||
इफ्तारी कर पार्टी, बदहजमी हो जाए |
इसीलिए वह बाद में, गोली भी भिजवाये |
गोली भी भिजवाये, बड़ा उपकारी पाकी |
गोली गाली गाय, गजब है उसकी माँ की |
अगर इधर हथियार, उठे तो ऐसी तैसी |
पर दिल्ली भरतार, हाय पानी में भैंसी ||
नहीं बकाया जा रहा, कमला जी आभार |
यही हकीकत है सखी, है ग़ुरबत की मार |
है ग़ुरबत की मार, गरीबी हम को खाई |
चौड़ी खाई होय, विकट सत्ता अधमाई |
पैदा होते रोय, रोय फिर सारा जीवन |
मरता खपता सोय, आज भी भूखा जन जन ||
महिमा गायें पंथ सब, सभी सिखाते दान |
बांटो अपना खास कुछ, करो जगत उत्थान |
करो जगत उत्थान, फर्ज है समझदार का |
मानवता का कर्ज, उतारो हर प्रकार का |
जो निर्बल मोहताज, करे कुछ गहमी गहमा |
होय मुबारक ईद, दान की हरदम महिमा ||
हहर हहर हहराय तलैया, नदी काट तटबंध |
बड़ी बाढ़ की आफत भैया, जलधारा हो अंध |
जलधारा हो अंध, बहाए सकल सम्पदा |
फैली फिर दुर्गन्ध, बड़ी भारी थी विपदा |
पीकर सागर शांत, भूमि का गरल समेटा |
रही धरा हरियाय, नया जीवन फिर भेंटा ||
स्वास्थ्य
आसन योगा से हटे, अत्याचारी लोग |
जिनके जीवन हैं लटे, नहीं करेंगे योग |
नहीं करेंगे योग, बढ़ेगी चुस्ती फुरती |
सद-बुद्धि सहयोग, उठेगी खिल यह धरती |
रहते वे तो खुश, पडोसी क्यूँ खुश होवे ?
इसीलिए बिन योग, जिंदगी बोझा ढोवे ||
इसीलिए वह बाद में, गोली भी भिजवाये |
गोली भी भिजवाये, बड़ा उपकारी पाकी |
गोली गाली गाय, गजब है उसकी माँ की |
अगर इधर हथियार, उठे तो ऐसी तैसी |
पर दिल्ली भरतार, हाय पानी में भैंसी ||
क्यों - कमला बक़ाया (कविता)
चंदन कुमार मिश्र
भारत के भावी प्रधानमंत्री की जबानी
भारत के भावी प्रधानमंत्री की जबानी
नहीं बकाया जा रहा, कमला जी आभार |
यही हकीकत है सखी, है ग़ुरबत की मार |
है ग़ुरबत की मार, गरीबी हम को खाई |
चौड़ी खाई होय, विकट सत्ता अधमाई |
पैदा होते रोय, रोय फिर सारा जीवन |
मरता खपता सोय, आज भी भूखा जन जन ||
दान-पर्व है ईद-उल-फितर Eid 2012
DR. ANWER JAMALमहिमा गायें पंथ सब, सभी सिखाते दान |
बांटो अपना खास कुछ, करो जगत उत्थान |
करो जगत उत्थान, फर्ज है समझदार का |
मानवता का कर्ज, उतारो हर प्रकार का |
जो निर्बल मोहताज, करे कुछ गहमी गहमा |
होय मुबारक ईद, दान की हरदम महिमा ||
उपहार प्रकृति के
Asha Saxenaहहर हहर हहराय तलैया, नदी काट तटबंध |
बड़ी बाढ़ की आफत भैया, जलधारा हो अंध |
जलधारा हो अंध, बहाए सकल सम्पदा |
फैली फिर दुर्गन्ध, बड़ी भारी थी विपदा |
पीकर सागर शांत, भूमि का गरल समेटा |
रही धरा हरियाय, नया जीवन फिर भेंटा ||
हाइपर-एसिडिटी में उपयोगी है धनुरासन
कुमार राधारमणस्वास्थ्य
आसन योगा से हटे, अत्याचारी लोग |
जिनके जीवन हैं लटे, नहीं करेंगे योग |
नहीं करेंगे योग, बढ़ेगी चुस्ती फुरती |
सद-बुद्धि सहयोग, उठेगी खिल यह धरती |
रहते वे तो खुश, पडोसी क्यूँ खुश होवे ?
इसीलिए बिन योग, जिंदगी बोझा ढोवे ||
जाके पाँव न फटे बिवाई
कमल कुमार सिंह (नारद )
नारद
दक्खिन में भी है शुरू, पूरब का संग्राम |
मारकाट कसके मचा, होता चक्का जाम |
होता चक्का जाम, असम से गए भगाए |
हिंदीभाषी कई, भूलते नहीं भुलाए |
आज असम के लोग, वही वापस पाते हैं |
किये कर्म ले भोग, बिरादर हम आते हैं ||
सियासती सहमति तनिक, प्रथम नागरिक जीत |
जदयू शिवसेना मिले, सपा बासपा मीत |
सपा बासपा मीत, नहीं क्या मोलभाव था |
दिखा गजब अनुराग, पोल में बड़ा चाव था |
कर खुदरा व्यापार, वैश्विक मंदी भागे |
काट करोड़ों हाथ, भीख दुनिया में मांगे ||
बिटिया की ड्राइंग .....
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDyi7HaF-4zAyZzuYaO4xnmk4rJ4LVz2vJB3HptsxlkYBkem1-0AOXsMzeept1vtidrXxWpCTsXBZLEtTYyFNXgOpKDgsCQ7BdKfS9pU8ziKhAX_gOENH_R2oTmQaXi2PF7IgknPn8D5-8/s400/2012-08-17+07.30.25.jpg)
लाइफ तेरी नाव पर, चली गाँव की ओर |
चिड़ियाँ की चीं चीं चहक, भाए कलरव रोर |
भाए कलरव रोर, गौर मछली पर करना |
दर्शन कर ले सखी, सुरक्षित गाँव उतरना |
यमुना तेज बहाव, पहुँचते संगम तीरे |
तीस मील पर गाँव, चलो गंगा में धीरे ||
बैठे शिक्षक कक्ष में, छका रहे उस्ताद |
बिद्यालय में घटी क्या, छात्रों की तादाद |
छात्रों की तादाद, कवायद करते जानी |
हर कविता पर दाद, क्लास में कर मनमानी |
बोर हुवे सब छात्र, भाग जाते सहकर्मी |
सुनिए रविकर भ्रात, रखो कविता में नरमी ||
सुन्दर सत्यम शिवम् सा, स्वप्न सुशील सकाळ |
नंदी सींगें मारता, नाग दिखे विकराल |
नाग दिखे विकराल, चंद्रमा साधू ढोंगी |
समझ अहिल्या चाल, भगाया जोगी भोगी |
शंकर संग त्रिशूल, भूल से हाथ लगाया |
बाघम्बर सा ब्लॉग, हमारे मन को भाया ||
दक्खिन में भी है शुरू, पूरब का संग्राम |
मारकाट कसके मचा, होता चक्का जाम |
होता चक्का जाम, असम से गए भगाए |
हिंदीभाषी कई, भूलते नहीं भुलाए |
आज असम के लोग, वही वापस पाते हैं |
किये कर्म ले भोग, बिरादर हम आते हैं ||
मैं तो प्रधानमंत्री हूँ.
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjXfYUgCMGY97VF-GJJhFg7u1nnNXNb9EOoNPX6296WQWhcmfas6cADgxJn6lSEe1PVYL0YDCav1i3egdMPL0FyISpyhbc4hHUmwVAFqZl1SHTDjA4-W4ddmi063uYi1hHRFIE3cyclEfs/s400/000000.jpg)
सियासती सहमति तनिक, प्रथम नागरिक जीत |
जदयू शिवसेना मिले, सपा बासपा मीत |
सपा बासपा मीत, नहीं क्या मोलभाव था |
दिखा गजब अनुराग, पोल में बड़ा चाव था |
कर खुदरा व्यापार, वैश्विक मंदी भागे |
काट करोड़ों हाथ, भीख दुनिया में मांगे ||
ज़िंदगी ऐसी भी !
संतोष त्रिवेदी at मैं चित्रकार हूँ !![]() |
आस्था त्रिवेदी -XI |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDyi7HaF-4zAyZzuYaO4xnmk4rJ4LVz2vJB3HptsxlkYBkem1-0AOXsMzeept1vtidrXxWpCTsXBZLEtTYyFNXgOpKDgsCQ7BdKfS9pU8ziKhAX_gOENH_R2oTmQaXi2PF7IgknPn8D5-8/s400/2012-08-17+07.30.25.jpg)
लाइफ तेरी नाव पर, चली गाँव की ओर |
चिड़ियाँ की चीं चीं चहक, भाए कलरव रोर |
भाए कलरव रोर, गौर मछली पर करना |
दर्शन कर ले सखी, सुरक्षित गाँव उतरना |
यमुना तेज बहाव, पहुँचते संगम तीरे |
तीस मील पर गाँव, चलो गंगा में धीरे ||
बैठे शिक्षक कक्ष में, छका रहे उस्ताद |
बिद्यालय में घटी क्या, छात्रों की तादाद |
छात्रों की तादाद, कवायद करते जानी |
हर कविता पर दाद, क्लास में कर मनमानी |
बोर हुवे सब छात्र, भाग जाते सहकर्मी |
सुनिए रविकर भ्रात, रखो कविता में नरमी ||
ब्लाग है या बाघ है
सुशील at उल्लूक टाईम्ससुन्दर सत्यम शिवम् सा, स्वप्न सुशील सकाळ |
नंदी सींगें मारता, नाग दिखे विकराल |
नाग दिखे विकराल, चंद्रमा साधू ढोंगी |
समझ अहिल्या चाल, भगाया जोगी भोगी |
शंकर संग त्रिशूल, भूल से हाथ लगाया |
बाघम्बर सा ब्लॉग, हमारे मन को भाया ||
...पानी में ही भैंस को सबसे ज़्यादा सुकून मिलता है.इसमें आपको कोई आपत्ति ...?
ReplyDeletebahut badhiya links
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (18-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
मेरे से हाथ मिलाने से किसी के हाथ काले हो जाएँ ,तो मैं क्या कर सकता हूँ .लाचार हूँ .(कोयले की दलाली का कैग ने उदघाटन कर दिया है ).
ReplyDeleteमैं तो प्रधानमंत्री हूँ.
Cartoon, Hindi Cartoon, Indian Cartoon, Cartoon on Indian Politcs: BAMULAHIJA
रविकर भाई चेक करो मेरी बहुत सी टिप्पणियाँ स्पैम बोक्स में जा रहीं हैं .
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!...
ReplyDeleteभैंस गयी क्या पानी में?
ReplyDeleteमैने नही संतोष ने की बात भैंस की !!