इंतज़ार धूमिल आँखों का
Kailash Sharma
Kashish - My Poetry
Kashish - My Poetry
नौ महिने माता ढोई थी,
इर्द गिर्द तेरे जीवन था
सोई न गोदी में लेकर ,
सोई न गोदी में लेकर ,
न रोई न कभी थकी थी |
पिता बना घोडा गदहा नित,
तेरा बोझ उठाये टहला-
मात-पिता पर तोहमत रविकर,
मात-पिता पर तोहमत रविकर,
दो मिनटों के सुख से पैदा -
इसीलिए क्या आज भेजता,
वृद्धाश्रम बदला लेने को-
पत्नी के संग ऐश करेगा,
पत्नी के संग ऐश करेगा,
पीढ़ी दर पीढ़ी यह होगा -
दबा रखो आक्रोश को, इतना अधिक अधीर |
मिर्ची खाकर दे रहे, किसके मुंह को पीर |
किसके मुंह को पीर, दफ़न कर दुश्मन मन को |
चल यमुना के तीर, साँस दे दे भक्तन को |
यह कटाक्ष यह तीर, चीर देंगे वह छाती |
मत मारो हे मीर, सहन अब न कर पाती ||
पीले पत्ते नीचे गिरते -
घाव आज भी हरे भरे हैं |
परदे में क्या शक्ल धरे वे-
बदकिस्मत हम मरे मरे हैं |
हरियाली जो तनिक दिखी तो
रविकर पशुता चरे धरे है |
ख़्वाब बाँध लेंगे अगर, करें ख़्वाब न सैर |
जीवन दुखमय भोगते, बिना ख़्वाब के गैर |
बिना ख़्वाब के गैर, पैर पर चले कुल्हाड़ी |
परिवर्तन अंधेर, बोर हो जाय अनाड़ी |
खिलंदड़ा अंदाज, नहीं कुछ भी तुम बांधो |
तरह तरह से साज, साज के सरगम साधो ||
SADA
अच्छी भली सलाह पर, साधुवाद आभार |
गाँठ बाँध कर राखिये, शुभ आचार-विचार ||
आलोचनाएं अपने गले में डाल लो !
संतोष त्रिवेदी at बैसवारी baiswariदबा रखो आक्रोश को, इतना अधिक अधीर |
मिर्ची खाकर दे रहे, किसके मुंह को पीर |
किसके मुंह को पीर, दफ़न कर दुश्मन मन को |
चल यमुना के तीर, साँस दे दे भक्तन को |
यह कटाक्ष यह तीर, चीर देंगे वह छाती |
मत मारो हे मीर, सहन अब न कर पाती ||
सुख दुःख से जब परे हुए हो ...
noreply@blogger.com (दिगम्बर नासवा) at स्वप्न मेरे................पीले पत्ते नीचे गिरते -
घाव आज भी हरे भरे हैं |
परदे में क्या शक्ल धरे वे-
बदकिस्मत हम मरे मरे हैं |
हरियाली जो तनिक दिखी तो
रविकर पशुता चरे धरे है |
ख़्वाबों का आना और जाना....
ख़्वाब बाँध लेंगे अगर, करें ख़्वाब न सैर |
जीवन दुखमय भोगते, बिना ख़्वाब के गैर |
बिना ख़्वाब के गैर, पैर पर चले कुल्हाड़ी |
परिवर्तन अंधेर, बोर हो जाय अनाड़ी |
खिलंदड़ा अंदाज, नहीं कुछ भी तुम बांधो |
तरह तरह से साज, साज के सरगम साधो ||
नज़रे चुरा मत लेना कभी ....
सदाSADA
अच्छी भली सलाह पर, साधुवाद आभार |
गाँठ बाँध कर राखिये, शुभ आचार-विचार ||
सीनाजोरी कर सके, वही असल है चोर
शालिनी कौशिक
प्रोन्नति-पैमाना बने, पिछला कौशल-कार्य |
इसमें आरक्षण गलत, नहीं हमें स्वीकार्य || |
Asha Saxena
इधर गहनतम तम दिखा, तमतमाय उत लोग |
तमसो मा ज्योतिर इधर, करें लोग उद्योग | करें लोग उद्योग, उधर बस चांदी काटें | रिश्वत चोरी छूट, लूट कर हिस्सा बाटें | रविकर कुंठित बुद्धि, नहीं कोशिश कर जीते | बेढब सत्तासीन, लगाते इधर पलीते || |
(Arvind Mishra)
सीनाजोरी कर सके, वही असल है चोर |
माफ़ी मांगे फंसे जो, कहते उसे छिछोर || |
चाँद , उमर के साथ दिखाये , प्राणप्रियेहरदम आकर धूम मचाये मनमौजी | चमचे से ही हलुवा खाए मनमौजी | तिरछे चितवन की चोरी न पकड़ी जाये- चुपके से झट दायें बाएं मनमौजी | चंदा सारी रात ताकता निश्चर हरकत - चंदा मोटा हिस्सा पाए मनमौजी | फिजा गई सड़ गल कर छोड़ी यह दुनिया- चाँद आज भी मौज मनाये मनमौजी || |
Untitled
कविता विकास
काव्य वाटिका बिखरी बिखरी तितर-बितर सब, एक दिशा में कित मोडूं | रविकर मन की गहन व्यथा में, अक्श तुम्हारे क्यूँ छोडूं- यादें तेरी दिव्य अमानत, यादों की लय न तोडूं || |
संस्कारित शान्ति
मुहाजिरों की बसी बस्तियां, और सरायें बनवाना |
मियांमार के मियां बुलाओ, कैम्प असम में लगवाना |
आते जाते खाते जाते, संसाधन सीमित अपने-
मनमोहन की दृष्टि मोहनी, फिर से अपनी राय बताना ||
कमल कुमार सिंह (नारद )
मियांमार के मियां बुलाओ, कैम्प असम में लगवाना |
आते जाते खाते जाते, संसाधन सीमित अपने-
मनमोहन की दृष्टि मोहनी, फिर से अपनी राय बताना ||
एक से बढ़कर एक !
ReplyDeleteअहंकार मिट जाएगा,घड़ा भरेगा जिस दिन |
ReplyDeleteअपने भी खो जायेंगे,बियाबान में उस दिन ||
बहुत अच्छा संयोजन .........
ReplyDeletebahut sundar v sarthak sangrah .aabhar..तिरंगा शान है अपनी ,फ़लक पर आज फहराए ,
ReplyDeleteजितनी अच्छी रचना उतनी ही उपयुक्त तस्वीरें।
ReplyDeleteमुहाजिरों की बसी बस्तियां, और सरायें बनवाना |
ReplyDeleteमियांमार के मियां बुलाओ, कैम्प असम में लगवाना |
आते जाते खाते जाते, संसाधन सीमित अपने-
मनमोहन की दृष्टि मोहनी, फिर से अपनी राय बताना ||
"मौन सिंह "को फिर चुन लाना ram ram bhai
मंगलवार, 14 अगस्त 2012
क्या है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा की बुनियाद ?
http://veerubhai1947.blogspot.com/