वेब-पत्रिकाओं और ब्लॉग से चोरी हो रही हैं रचनाएँ : मुंबई से प्रकाशित 'संस्कार' पत्रिका का कारनामा
संस्कार यह राक्षसी, पर नारी को छीन |
अंत:पुर में कैदकर, करे जुल्म संगीन |
अंत:पुर में कैदकर, करे जुल्म संगीन |
करे जुल्म संगीन, कहो कमलेस कहानी |
सजा स्वयं तज्बीज, दर्ज कर फर्द बयानी |
करता लेख हरण, नाम अपने छपवाते |
आओ रविकर शरण, आज ही पाठ पढ़ाते ||
अब पोते को पालती...डॉ. श्याम गुप्त
डा. श्याम गुप्त
ज़िंदा है माँ जानता, इसका मिला सुबूत ।
आज पौत्र को पालती, पहले पाली पूत ।
पहले पाली पूत, हड्डियां घिसती जाएँ ।
करे काम निष्काम, जगत की सारी माएं ।
किन्तु अनोखेलाल, कभी तो हो शर्मिन्दा ।
दे दे कुछ आराम, मान कर मैया ज़िंदा ।।
मैंने कब किसी को कहा ब्लागरा या ब्लॉग वालियां!?
(Arvind Mishra)
क्वचिदन्यतोSपि..
"अब खुश न" का अर्थ क्या, ख़तम हो गया दर्प |
प्राकृत है फुफकारना, सदा सर्पिणी - सर्प |
"अब खुश न" का अर्थ क्या, ख़तम हो गया दर्प |
प्राकृत है फुफकारना, सदा सर्पिणी - सर्प |
सदा सर्पिणी - सर्प, हर्प पर झंझट कर लो |
डसने को तैयार, सामने से ही टर लो |
बिना द्वेष बिन प्यार, करेंगे गुरु ब्लॉगरी |
गरियाये घनघोर, लगा के चले हाजिरी ||
Bibhas Munshi ने Hope India का चित्र साझा किया
भ्रष्टासुर रावण सरिस, बीस भुजा दस माथ |
सदियों से पैदा खलिश, किन्तु लगे न हाथ |
सदियों से पैदा खलिश, किन्तु लगे न हाथ |
किन्तु लगे न हाथ, करे खुद पूर तमन्ना |
मिलीभगत मिल साथ, करे क्या बाबा अन्ना |
रहे स्वार्थ में डूब, आम जनता है पापी |
जाति धर्म पर वोट, असुर यह बड़ा प्रतापी ||
अलिप्त
पावन साक्षी भाव से, आत्म दीप का तेज |
राजकर्म कर चाव से, ज्योति रखूं सहेज |
ज्योति रखूं सहेज, कार्य पूरा करना है |
लोभ हर्ष उपभोग, मोह में न पड़ना है |
नियत कार्य कर पूर्ण, मानता कर ली पूजा |
वाह अलिप्त विदेह, यहाँ तुम सम न दूजा ||
बांछे खिलना
बाँझिन को हो पुत्र रत्न, बने बांगड़ू बीर |
मिले हूर लंगूर को, जीत जाय तकरीर |
जीत जाय तकरीर, तभी तो बांछे खिलती |
विकसित होती कली, चीज मनचाही मिलती |
अभिलाषा इक अर्थ, फूल कर कुप्पा होना |
कुप्पी का क्या काम, नीद गहरी फिर सोना ||
लुटते औंधे मुंह पड़े, समय माल कंगाल |
समय माल कंगाल, गुजरती बदहाली में |
ऊँचे ऊँचे ख़्वाब, बहे गन्दी नाली में |
पहले लो मुंह धोय, और औकात आँक लो |
तदनुसार हों ख़्वाब, उछलकर ऊँच झाँक लो ||
मिले हूर लंगूर को, जीत जाय तकरीर |
जीत जाय तकरीर, तभी तो बांछे खिलती |
विकसित होती कली, चीज मनचाही मिलती |
अभिलाषा इक अर्थ, फूल कर कुप्पा होना |
कुप्पी का क्या काम, नीद गहरी फिर सोना ||
ख़्वाब देखना
अनलिमिटेड सपने दिखा, ठगे गुरू घंटाल |लुटते औंधे मुंह पड़े, समय माल कंगाल |
समय माल कंगाल, गुजरती बदहाली में |
ऊँचे ऊँचे ख़्वाब, बहे गन्दी नाली में |
पहले लो मुंह धोय, और औकात आँक लो |
तदनुसार हों ख़्वाब, उछलकर ऊँच झाँक लो ||
हौसला कभी कम न हो
ReplyDeleteकभी बेकार ग़म न हो
दुआ हमारी यही है
कविता अच्छी लगी.
ईद मुबारक .
http://mushayera.blogspot.in/2012/08/nice-hindi-poem.html
क्या अदा
ReplyDeleteक्या जलवे
इसके आगे
तेरे पारो
नहीं कहते हैं
हम तो बस
आपके लिखे
हुऎ के चहेते हैं !
nice presentation.aabhar जनपद न्यायाधीश शामली :कैराना उपयुक्त स्थान
ReplyDelete"chaury britti ab badh rahi,sab have gambhir,barana es vimari khul jayegi takdir" dat kar virodh karna hoga
ReplyDelete