-- करण समस्तीपुरी
(1)
भीषण गर्मी में सरस, बरसाए मधु मेह |
काट चिकोटी जाँचता, सपने का संदेह |
काट चिकोटी जाँचता, सपने का संदेह |
सपने का संदेह, गेह ढूँढा दस घंटे |
चूर चूर थक देह, भोग पंडों के टंटे |
वह आया था कौन, मौन मन माना मंतर |
ठौर कौर रथ-वाह, करण को मिले निरंतर |
(2)
वह आया था कौन ठग, भटके को भटकाय |
भूखे को रोटी खिला, बिना कहे कुछ जाय |
भूखे को रोटी खिला, बिना कहे कुछ जाय |
बिना कहे कुछ जाय, सही मंजिल पहुँचाता |
जब जब मन घबराय, निदर्शन देकर जाता |
भिन्न भिन्न धर रूप, मनुज सा परमेश्वर है |
फैलाए यश धूप, करण-मन से बेहतर है ||
उद्देश्य रहित जीवन की भी आवश्यकता है
smt. Ajit Gupta
अजित गुप्ता का कोना
सत्ता का संघर्ष ही, दिखता कारक मूल |
संस्था को गति दे रहे, अपने अपने रूल |
अपने अपने रूल, दिशा गर सबकी साझी |
रहे संतुलित वेग, कहीं कुछ भी न बाझी |
अगर दिशा विपरीत, खाय बेढब हिचकोले |
बुद्धिमान जो होय, किनारे खुद से हो ले ||
ram ram bhai
महत्त्वपूर्ण सबसे अधिक, गुर्री गुर्री रीढ़ |
गर खिसकेगी एक भी, होय भयंकर पीड़ |
होय भयंकर पीड़, नशें दबने न पावें |
हृदय रोग संभाव्य, जीव बहरा हो जावे |
यह काया कंकाल, जाल में फंस न जाए |
इसीलिए अब जांच, आप नियमित करवाएं ||
सत्ता का संघर्ष ही, दिखता कारक मूल |
संस्था को गति दे रहे, अपने अपने रूल |
अपने अपने रूल, दिशा गर सबकी साझी |
रहे संतुलित वेग, कहीं कुछ भी न बाझी |
अगर दिशा विपरीत, खाय बेढब हिचकोले |
बुद्धिमान जो होय, किनारे खुद से हो ले ||
What Is A Subluxation ?
veerubhairam ram bhai
महत्त्वपूर्ण सबसे अधिक, गुर्री गुर्री रीढ़ |
गर खिसकेगी एक भी, होय भयंकर पीड़ |
होय भयंकर पीड़, नशें दबने न पावें |
हृदय रोग संभाव्य, जीव बहरा हो जावे |
यह काया कंकाल, जाल में फंस न जाए |
इसीलिए अब जांच, आप नियमित करवाएं ||
हालातों के बीच अपनी जिंदादिली ...
सदा
SADA
डेवी का यह लैम्प है, सेफ्टी पिन के साथ |
इनट्रिंकसिक्ली सेफ है, रखें सुरक्षित हाथ |
रखें सुरक्षित हाथ, नहीं तूफानों का डर |
भरी पड़ी मीथेन, इसी से कांपे रविकर |
भर जीवन संघर्ष, माइनिंग करते जाएँ |
अक्षय उर्जा भण्डार, सदा उपलब्ध कराएँ ||
बारिश में रिसिया गया, खिसियाया मनमीत |
सर्दी खांसी फ्लू से, कौन सका है जीत |
कौन सका है जीत, रीत श्रृंगारिक कैसी |
दिखलाया यूँ प्रीत, गई पानी में भैंसी |
सुबह सुबह का दृश्य, डाक्टर शरद दवा दें |
डबल डोज खा जाँय, मस्त सी फिजा गवाँ दें ||
डेवी का यह लैम्प है, सेफ्टी पिन के साथ |
इनट्रिंकसिक्ली सेफ है, रखें सुरक्षित हाथ |
रखें सुरक्षित हाथ, नहीं तूफानों का डर |
भरी पड़ी मीथेन, इसी से कांपे रविकर |
भर जीवन संघर्ष, माइनिंग करते जाएँ |
अक्षय उर्जा भण्डार, सदा उपलब्ध कराएँ ||
नाच उठा मन ....
बारिश में रिसिया गया, खिसियाया मनमीत |
सर्दी खांसी फ्लू से, कौन सका है जीत |
कौन सका है जीत, रीत श्रृंगारिक कैसी |
दिखलाया यूँ प्रीत, गई पानी में भैंसी |
सुबह सुबह का दृश्य, डाक्टर शरद दवा दें |
डबल डोज खा जाँय, मस्त सी फिजा गवाँ दें ||
बढ़िया अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबढिया...जन्म अष्टमी पर शुभकामनाएं |
ReplyDeleteकौन सका है जीत, रीत श्रैंगारिक कैसी |
ReplyDeleteदिखलाया यूँ प्रीत, गई पानी में भैंसी |
कौन सका है जीत, रीत श्रैंगारिक कैसी |
दिखलाया यूँ प्रीत, गई पानी में भैंसी |श्रृंगारिक कर लें भाई साहब ,श्रृंगार में "इक"प्रत्यय लगाय .टिप्पणियाँ सारी सार तत्व समेटें हैं मूल पोस्ट का .शुक्रिया .
सारे लिंक कविताओं की तरह की रोचक हैं।
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