शालिनी कौशिक
प्रोन्नति-पैमाना बने, पिछला कौशल-कार्य |
इसमें आरक्षण गलत, नहीं हमें स्वीकार्य || |
Asha Saxena
इधर गहनतम तम दिखा, तमतमाय उत लोग |
तमसो मा ज्योतिर इधर, करें लोग उद्योग | करें लोग उद्योग, उधर बस चांदी काटें | रिश्वत चोरी छूट, लूट कर हिस्सा बाटें | रविकर कुंठित बुद्धि, नहीं कोशिश कर जीते | बेढब सत्तासीन, लगाते इधर पलीते || |
(Arvind Mishra)
सीनाजोरी कर सके, वही असल है चोर |
माफ़ी मांगे फंसे जो, कहते उसे छिछोर || |
चाँद , उमर के साथ दिखाये , प्राणप्रियेहरदम आकर धूम मचाये मनमौजी | चमचे से ही हलुवा खाए मनमौजी | तिरछे चितवन की चोरी न पकड़ी जाये- चुपके से झट दायें बाएं मनमौजी | चंदा सारी रात ताकता निश्चर हरकत - चंदा मोटा हिस्सा पाए मनमौजी | फिजा गई सड़ गल कर छोड़ी यह दुनिया- चाँद आज भी मौज मनाये मनमौजी || |
Untitled
कविता विकास
काव्य वाटिका बिखरी बिखरी तितर-बितर सब, एक दिशा में कित मोडूं | रविकर मन की गहन व्यथा में, अक्श तुम्हारे क्यूँ छोडूं- यादें तेरी दिव्य अमानत, यादों की लय न तोडूं || |
संस्कारित शान्ति
कमल कुमार सिंह (नारद )
मियांमार के मियां बुलाओ, कैम्प असम में लगवाना | आते जाते खाते जाते, संसाधन सीमित अपने- मनमोहन की दृष्टि मोहनी, फिर से अपनी राय बताना || |
बहुत बढि़या..
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपके अंदाज़ की हलचल ... लाजवाब ..
ReplyDeleteNice .
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार १४/८/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आपका स्वागत है|
ReplyDeleteबहुत बढिया
ReplyDeleteअति सुंदर !
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