(प्रवीण पाण्डेय)
न दैन्यं न पलायनम्
न दैन्यं न पलायनम्
क्या प्रवाह क्या भाव अनोखे, क्या शब्दों का मेला है |
करूँ कहे मन, दिल न माने, सचमुच बड़ा झमेला है |
बूंद लम्बवत चली तरंगे, रिमझिम रिमझिम रेला है |
चले जिन्दगी इसी तरह से, रविकर ठेलिम-ठेला है ||
करूँ कहे मन, दिल न माने, सचमुच बड़ा झमेला है |
बूंद लम्बवत चली तरंगे, रिमझिम रिमझिम रेला है |
चले जिन्दगी इसी तरह से, रविकर ठेलिम-ठेला है ||
न्यायकारी की भेद दृष्टिप्रतुल वशिष्ठदर्शन-प्राशन (1)
सदा सर्वदा वन्दना, ईश्वर को मत कोस |
महिमामंडित प्रभु नए, इन पर कर अफ़सोस | इन पर कर अफ़सोस, बना धंधा जादूगर | धर्म-दंड का जोर, चमत्कारों का आदर | रहे ऐश्वर्य भोग, लोक-हित नहीं सूझता | ये आकर्षक ढोंग, भक्त क्यूँ नहीं बूझता ??
(2)
वर्षा होती एक सी, उर्वर लेती सोख |
ऊसर सर सर दे बहा, रहती बंजर कोख | रहती बंजर कोख, कर्म कुछ अच्छे कर ले | बड़ा हृदय-विस्तार, गढ़न गढ़ करके भर ले | कोमल-आर्द्र स्वभाव, उगेंगे अंकुर प्यारे | मत चल हरदम दांव, सही कर रखो किनारे || |
दोस्त के इन शब्दों में .....
सदा
SADA मुश्किल में, दिल में मिले, बढ़े आत्म-विश्वास | कंटक-पथ पर बढ़ चले, साथ मिले जो ख़ास | साथ मिले जो ख़ास, रास हरदम आता है | मात्र साथ एहसास, हमें रविकर भाता है | जीवन इक संघर्ष, हमेशा विजय कामना | बढ़ता मित्र सहर्ष, हाथ तू "सदा" थामना || |
फ़ुरसत में ... चिठियाना-टिपियाना चैटमनोज कुमारमनोज क ख ग से कर गजब, पूरा पाठ पढाय | चिठियाना-टिपिया दिए, नहीं अलाय-बलाय | नहीं अलाय-बलाय, बड़े लेखक चालू हैं | चार जगह पर चुस्त, शेष पर बस टालू हैं| रविकर का अंदाज, यहाँ आधे से ज्यादा | करते हैं व्यापार, टिप्पणी की मर या दा || |
ये मुक्ति का नया गीत है ...दारू के साथ .आज इनके माता-पिता गर्व से भर उठे होंगे और कहेंगी हमारी बच्चियां भी पुरुषों से पीछे नहीं है. हम भी प्रोग्रेसिव हैं. अरे, क्या लडके ही खुले आम दारू पीयेंगे? लडकिया बेचारी इस शौक से क्यों वंचित रहें? ये भारत नहीं, नए इंडिया की लडकियां है. इस दृश्य का जश्न मानना ही चाहिए...ये लडकियां मुक्ति-दूत हैं इनका सम्मान करो भाई. शर्मसार होने की ज़रुरत नहीं. ऐसा करके हम अपने को पिछड़ा, गंवार साबित करेंगे.
कोल्ड-ड्रिक्स सा पी रहे, मत यूँ आँखें फाड़ |
ब्वायज हैविंग आल फ़न, दें हम खेला भाड़ | दें हम खेला भाड़, करेंगे सब मन चाहा | झूमें अब दिन-रात, वाह क्या मस्ती आहा | ऐ रविकर नादान, नहीं हम कद्दू चाक़ू | जाए चक्कू टूट, सुनो अस्मत के डाकू || |
सदा की तरह लाजवाब!
ReplyDeleteरविकर का अंदाज, यहाँ आधे से ज्यादा |
ReplyDeleteकरते हैं व्यापार, टिप्पणी की मर यादा ||
बेहतरीन टिप्पणियों की प्रस्तुति,,,,
bahut sundar likha hai ravikar ji...aabhaar.
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