Neha
सत्यवान था राज-सुत, हुआ किन्तु कंगाल |
एक वर्ष की जिन्दगी, होती मृत्यु अकाल |
होती मृत्यु अकाल, कौन गुण भाया बेटी |
पति ऐसा सुविचार, कहाँ से आया बेटी |
जोश बड़ी है चीज, मगर जब व्यर्थ रोष हो |
करे भला न खीज, चाहती क्यूँ सदोष हो ||
सती स्वत: स्वाहा हुई, बड़ी जिंदगी टेढ़ |
सावित्री कितनी यहाँ, चरा रही हैं भेड़ |
चरा रही हैं भेड़, रहो आजाद हमेशा |
लम्पट ढोंगी दुष्ट, चाहते हरदम ऐसा |
एकल रहती नार, नहीं प्रतिबन्ध यहाँ है |
अच्छे भले विचार, पालिए रोक कहाँ है ||
एक वर्ष की जिन्दगी, होती मृत्यु अकाल |
होती मृत्यु अकाल, कौन गुण भाया बेटी |
पति ऐसा सुविचार, कहाँ से आया बेटी |
जोश बड़ी है चीज, मगर जब व्यर्थ रोष हो |
करे भला न खीज, चाहती क्यूँ सदोष हो ||
सती स्वत: स्वाहा हुई, बड़ी जिंदगी टेढ़ |
सावित्री कितनी यहाँ, चरा रही हैं भेड़ |
चरा रही हैं भेड़, रहो आजाद हमेशा |
लम्पट ढोंगी दुष्ट, चाहते हरदम ऐसा |
एकल रहती नार, नहीं प्रतिबन्ध यहाँ है |
अच्छे भले विचार, पालिए रोक कहाँ है ||
कवितायेँ आजकल " वाद" की ड्योढ़ी पर ठिठकी हैं
वाणी गीतगीत मेरे ........
बिन कांटे की मत्स्य यह, जीवन-रस से खींच |
मछुवारे वारे चतुर, बुद्धि विलासी भींच |
बुद्धि विलासी भींच, सींचता संस्कार से |
हल्दी नमक लगाय, रोचता है विचार से |
उलट पुलट दे भूंज, किन्तु बदबू फैलाये |
जय हो कविता मत्स्य, रखो फ्रिज में सड़ जाए ||
असीम कृपा उसकी
Asha Saxena
Akanksha
Akanksha
तर्क तरीके व्यर्थ हों, अटक भटक इंसान |
अटक भटक इंसान, लोटता नापे धरती |
व्यर्थ जाप हठ योग, तपस्या कुछ ना करती |
सत्तावना प्रकार, पका के रख मन बरतन |
भावों का पकवान, परोसो छोडो छप्पन ||
मैंने हार अभी न मानी
Kailash Sharma
Kashish - My Poetry
Kashish - My Poetry
घड़ा पाप का भर चुका, ईंधन संचित ढेर ।
देर नहीं अंधेर है, इक चिंगारी हेर ।
इक चिंगारी हेर, ढेर कर घट मंसूबे ।
होवे तभी सवेर, अभी तक क्यूँ न ऊबे ।
बची गर्भ में किन्तु, इरादा गलत बाप का ।
डुबा दूध में मार, रहा भर घड़ा पाप का ।।
बहू लायेंगे इंग्लैंड से
neel pardeepAll India Bloggers' Associationऑल इंडिया ब्लॉगर्स एसोसियेशन
बहू कहाँ से आयगी, बेमानी हैं बात |
मूल प्रश्न है बेटियां, दर्द भरे हालात |
दर्द भरे हालात, मर्द यूँ ही जी लेगा |
भूला रिश्ते नात, भला विज्ञान करेगा |
है उन्नत विज्ञान, जात मानव ना नाशे |
पुत्र पाल निज गर्भ, जरुरी बहू कहाँ से ??
रंग बिरंगी एकता
मौत
अहम् आंकड़े हैं भरत, दंगा सूखा बाढ़ |तड़ित गिरे बादल फटे, दे धरती को फाड़ |
दे धरती को फाड़, रोड पर झन्झट भारी |
रेल बम्ब विस्फोट, भुखमरी सी बीमारी |
कह रविकर कविराय, विवाहित छड़े हड़-बड़े |
लिविन रिलेशन ढेर, देखिये अहम् आंकड़े ||
रुको मुझे बहस करना है !
तेरे कंधे पर रखी, है जब से बन्दूक |
डुबकी यमुना में लगे, मोहन मन मुख मूक |
मोहन मन मुख मूक , चूक पर चूक करे है |
बैठ कालिया नाग, ग्वाल जन धेनु डरे है |
करे बहस की बात, बिहस घनघोर अँधेरे |
सह रावण की लात, बुरे दिन बाकी तेरे ||
मिल जाए कुछ ...
Amrita TanmayAmrita Tanmay
चट्टानें भी दरकती, सर्द गर्म एहसास |
ढोंग दिखावा किन्तु है, रखें मुखौटा पास |
रखें मुखौटा पास, शब्द में ताकत भारी |
महायुद्ध कुछ ख़ास, मची है मारामारी |
भाव शून्य संसार, सत्य रविकर क्यूँ माने |
शब्द करे तन गील, सील जाएँ चट्टानें ||
अमल अमर-पद अमन मन, "अमर" *अबन बन अक्ष-; चर्चा मंच 981
टिप्पण-कर्ता का करूँ, अभिनन्दन आभार |चर्चा का होता नहीं, बिन टिप्पण उद्धार |
बिन टिप्पण उद्धार, रार भी हो जाती है |
लेकिन यह तकरार, सदा मुंह की खाती है |
मिले पाठकों प्यार, आप ही कर्ता धर्ता |
यह चर्चा संसार, बुलाता टिप्पण कर्ता ||
अच्छी है यह रचना भी !
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन ।
ReplyDeleteकर्म करे निस्वार्थ भाव से,अच्छे रखे विचार
ReplyDeleteईश्वर की असीम कृपा से, भर जाए भण्डार,,,,,
बेहतरीन कुंडलियों के लिए बधाई,,,,
मिलते है ,,,,,लखनऊ में,,,,
कर्म करे निस्वार्थ भाव से,अच्छे रखे विचार
ReplyDeleteईश्वर की असीम कृपा से, भर जाए भण्डार,,,,,
बेहतरीन कुंडलियों के बधाई ,,,,
लखनऊ में मिलते है,,,,
ReplyDeleteकुंडलियाँ यहाँ भी है-
http://www.facebook.com/groups/359984537404527/
गृधसी नाड़ी और टांगों का दर्द (Sciatica & Leg Pain)
ReplyDeleteसुष्मना ,पिंगला और इड़ा हमारे शरीर की तीन प्रधान नाड़ियाँ है लेकिन नसों का एक पूरा नेटवर्क है हमारी काया में इनमें से सबसे लम्बी नस को हम नाड़ी कहने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहें हैं .यही सबसे लम्बी और बड़ी (दीर्घतमा ) नस (नाड़ी )है :गृधसी या सियाटिका .हमारी कमर के निचले भाग में पांच छोटी छोटी नसों के संधि स्थल से इसका आगाज़ होता है और इसका अंजाम पैर के अगूंठों पर जाके होता है .यानी नितम्ब के,हिप्स के , जहां जोड़ हैं वहां से चलती है यह और वाया हमारे श्रोणी क्षेत्र (Pelvis),जांघ (जंघा ) के पिछले हिस्से ,से होते हुए घुटनों पिंडलियों से होती अगूंठों तक जाती है यह अकेली नस ,तंत्रिका या नाड़ी(माफ़ कीजिए इसे नाड़ी कहने की छूट आपसे ले चुका हूँ ).
क्या है गृधसी की रोगात्मक स्थिति ?
What Is Siatica ?
इस दीर्घतमा नाड़ी की सोजिश एक ऐसी रोगात्मक स्थिति पैदा करती है जिसका हश्र होता है बेहद की असह पीड़ा में .दर्द की लहर नाड़ी के शुरु से आखिरी छोर तक लपलपाती आगे तक जाती .लेकिन यह लहर कमर की तरफ भी ऐसे ही जा सकती है .आयुर्वेद के हिसाब से यह "वात नाड़ी" है जो "वात तत्व" के बढ़ जाने पर सूज कर सक्रीय हो जाती है .शरीर में वात बढ़ने से गृधसी रोग होता है .योग चूडामणि में भी दस बड़ी नाड़ियों का ज़िक्र है .७२,००० छोटी छोटी रेखाओं सी फैली नसों का भी ज़िक्र है .जिनमें दस बड़ी नाड़ी यहाँ बतलाई गईं हैं .
इस असह पीड़ा के अलावा सुइयों की चुभन ,जलन और शरीर के इन हिस्सों की चमड़ी में एक चुभन के अलावा झुनझुनी भी चढ़ सकती है कील की चुभन भी पैदा होती है .लग सकता है इन हिस्सों में कीड़े मकोड़े रेंग रहें हैं ,छूने पर दर्द कर सकता है ये हिस्सा ,एक दम से संवेदनशील हो जाता है .इसके ठीक विपरीत टांग सुन्न भी हो सकती है .सुन्ना सा लग सकता है टांग में (पिंडलियों और एडी के बीच का हिस्सा सुन्न भी पड़ सकता है ).
मामला तब और भी जटिल हो जाता है और इस मर्ज़ के लक्षण कुछ और उग्र जब कुछ लोगों में यह दर्द टांगों के अगले भाग को या पार्श्व को भी अपनी चपेट में लेने लगता है ,नितम्बों में भी होने लगता है जबकि अकसर यह टांगों या जंघा के पिछले हिस्से तक ही सीमित रहता है .
कुछ में यह दर्द दोनों टांगों में आजाता है इसे तब कहतें हैं -दुतरफा गृधसी(bilateral sciatica).
Like A Knife
बेशक तीर क्या तलवार की माफिक काटता है यह पैन .लेकिन इसकी किस्म सर्वथा यकसां नहीं रहती .लपलपाता स्पन्द सा होने के बाद यह शमित भी हो जाता है .घंटों क्या दिनों नहीं लौटेगा .और कभी चाक़ू की नोंक सा काटेगा असरग्रस्त हिस्से को . बहुत ही कष्ट प्रद और गंभीर ,उग्र अवस्था में इसमें प्रतिवर्ती क्रिया (रिफ्लेक्सिज़ ) भी क्षीण होने लगती है ,ऐसा होने पर आप एकाएक हरकत में नहीं आ पाते .
पिंडली की पेशियों का भी अप विकास हो सकता है .कमज़ोर पड़ सकती है यह पेशी .अच्छी नींद सियाटिका से ग्रस्त लोगों में एक खाब बनके रह जाती है .
चलना फिरना ,झुकना मुड़ना दिक्कत का काम हो जाता है बैठना ,उठना भी मुहाल हो जाता है .सबसे ज्यादा अक्षमता का एहसास उन लोगों को होता है जो कमर के निचले दर्द के साथ सियाटिका से भी परेशान रहतें हैं .सब दर्दों का दादा होता है यह दर्द .
गृदधी समस्या की वजूहातें (Causes Of Sciatica):-
अनेक वजूहातें होती हैं इस समस्या की .
(१)रीढ़ का सही सलामत न होना अस्वाभाविक रोग पैदा करने वाली स्थिति में होना ,साथ में डिस्क का बहि:सरण बाहर की ओर निकलने की कोशिश करता होना ,यही बहि :सरण इस सबसे बड़ी नाड़ी के लिए दाह उत्पादक साबित होता है प्रदाह कारक और विक्षोभ पैदा करता है ,उत्तेजित कर देता है सियाटिका को .बस लपलपाने लगती है सियाटिका .
(२)दुर्घटना और चोटील होने पर यहाँ तक, प्रसव भी इसके उत्तेजन और इर्रिटेशन की वजह बन जाता है .कारण होता है रीढ़ के संरेखण में बिखराव आना ,मिसएलाइनमेंट आजाना रीढ़ में .
(३) मधुमेह के बहुत आगे बढ़ चुके मामलों में भी यहाँ तक की आर्थ -राइटिस ,कब्जी और ट्यूमर्स भी इसकी वजह बनते देखे गएँ हैं .
(४ )कुछ विटामिनों की कमीबेशी भी .
(ज़ारी ...)
भाई साहब आपकी और शालिनी मेडम की पेशकश पर यह पूरा लेख हिंदी में भी आरहा है फिलाल इसका शुरूआती अंश पढ़िए .आहिस्ता आहिस्ता चलिए ,बहुत अच्छे सेतु और उन पर काव्यात्मक व्यंजना प्रस्तुत की है आपने .बधाई .
ReplyDelete.nice presentation.संघ भाजपा -मुस्लिम हितैषी :विचित्र किन्तु सत्य
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति...
ReplyDeleteटिप्पणी लिखने पर अगर टैक्स लगने लगेगा ?
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