| बस में : एक
राजेश उत्साही  गुलमोहर 
 महिला सीटों पर जमे, मुस्टंडे दुष्ट लबार | इसीलिए कर न सके, नारी कुछ प्रतिकार | नारी कुछ प्रतिकार, ज़माना वो आयेगा | जाय जमाना भूल, नहीं पछता पायेगा | रविकर हक़ लो छीन, साथ है मेरा पहिला | बढ़ो करो इन्साफ, अकेली अब न महिला || | 
| Purchase Rs.20 Lakh Car from taxpayers Money UP CM Akhilesh Yadav tells to 403 MLAs
SM at From Politics To Fashion माल हमारे बाप का, तेरा क्या है बोल ? वाहन-चोरी का खतम, हुआ पुराना रोल | हुआ पुराना रोल, समय पब्लिक की सेवा | सेवा कर दिल खोल, तभी तो खाए मेवा | पोलिटिक्स की ट्रिक्स, नहीं समझो बे मारे | चाचा ताऊ सकल, मुलायम बाप हमारे | | | 
| महंगाई की तपिश और मॉनसून के नखरेखेती कर मैदान में, रोटी कठिन जुहात | इक कपडा इक कोठरी, कृषक देश कहलात | कृषक देश कहलात, मार मंहगाई डारे | इसीलिए तो आज, युवा क्रिकेट पर वारे | लाखों का मैदान, कराता वारे न्यारे | युवा वर्ग मस्तान, जाय क्यूँ खेत किनारे || | 
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haresh Kumar at information2media    
लोटो चरणों में सखे, अर्पित तन मन प्राण । 
प फ ब भ म किया, माता ने कल्याण । 
माता ने कल्याण, वित्त-मंत्रालय पाओ । 
संकट-मोचन काम, गड़े धन को निपटाओ । 
मेमोरी ये रोम, सजा लो दिल में फोटो । 
निकलेगी इक रोज, लाटरी भैया लोटो ।। | 
| "पहचान कौन"
Sushil  "उल्लूक टाईम्स " 
  भूसा भरा दिमाग में, छोटी मोटी बात । 
शर्म दिखा के छुप गई, आज हमें औकात । 
आज हमें औकात, कटी पॉकेट शरमाये । 
लेकिन पॉकेट-मार, ठहाके बड़े लगाए । 
हुआ  रेप मर गई,  बिचारी  शरमा करके । 
हँसे खड़ा रेपिस्ट,  चौक पर दारु ढरके ।। | 
| -:चाय:-
dheerendra    
चाय वाय करवा रही, चांय-चांय हर रोज | सुबह सुबह तो ठीक है, दिन में बारह डोज | दिन में बारह डोज, खोज अब दूजी लीजै | यह मित्रों की फौज, नवाजी बाहर कीजै | हुई एक दिन शाम, मिले व्यवहारी आला | इंतजाम छ: जाम, हुआ अंजाम निराला || | 
| जीने-मरने में क्या पड़ा है, पर कहने-सुनने...
यादें....ashok saluja .  यादें...   
यात्रा का मंचन सदा, किया करे बंगाल । मौत-जिंदगी हास्य-व्यंग, क्रमश: साँझ- विकाल । क्रमश: साँझ- विकाल, मस्त होकर सब झूमें। देते व्यथा निकाल, दोस्त सब हर्षित घूमें । पर्दा गिरता अंत, बिछ्ड़ते पात्र-पात्रा । पर चलती निर्बाध, मनोरंजक शुभ यात्रा ।। | 
| प्यार का नाम लेना , अब अच्छा नहीं लगता ...
छीके अब मुंह खोल के, कै मीठे-पकवान ।  जगह-जगह खाता रहा, कम्बल ओढ़ उतान। कम्बल ओढ़ उतान, तपन की आदत डाले । रहा बहुत मस्तान, आज मधुमेह सँभाले । उच्च दाब पकवान, करे अब Point फ़ीके । बदल गया इंसान, खोल में बैठा छींके ।। | 
 
 
 
  
  
 










