Sunday, 15 July 2012

विवाहेत्तर कोढ़, समझ में किसके आई ??

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

हर शाखा पर उल्लू बैठे, कैसे झूला डाल सकेंगे ।
हरियाली सावन की लेकिन , उल्लू नहीं हकाल सकेंगे ।
हुआ असर यह मँहगाई का, गाई गई महज मँहगाई -
पानी पर ही तले पकौड़े, पैबन्दों से  लाज ढकेंगे ।।

उल्लूक टाइम -सुशील
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पल्ला खुलते घरों के, पल्ला नारि हटाय ।
ताक -झाँक सयनन  कहें,  बिन बोले बतलाय ।
बिन बोले बतलाय, खबर मुनिया है लाई ।
खबर सही अखबार, छपी उम्दा कविताई ।
हल्ला लेकिन होय, मास्टरनी हड़काती ।
किये कौन सा काण्ड, भीड़ काहे घर आती ??
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यह तो ऐसा ही सखे, मगर मच्छ से बैर |
मानसून में बच गई, मछली की कुल खैर |
मछली की कुल खैर, सैर पर वह भागेगी |
नदी नदी हो पर, समंदर तक लांघेगी |
ऐसा अंतर्जाल, मगर भी फंस जायेगा |

राजनीति जंजाल, नहीं वह खा पायेगा ||

ललित शर्मा
ललितडॉटकॉम

कर्मकांड सोद्देश्य है, गाँव-राँव खुशहाल ।
बेंगा के नेतृत्व में, कटते सकल बवाल ।
 कटते सकल बवाल, चेतना भी आती है ।
एक लक्ष्य कल्याण, धरा तब मुस्काती है ।
काँवरिया जल ढार, पूज भोले भंडारी ।
भरे सकल भण्डार, मने ऐसे इतवारी  ।।

ZEALatZEAL -

कोदों-सावाँ  बेंच के, डिग्री लिया बटोर |
लाख रुपैया टेट में, सर्विस रहा अगोर |

सर्विस रहा अगोर, खेत के नहीं काम का |
ढूंढ़ रहा है रकम, काम भी मिला नाम का |

पिच-पिच खैनी खाय, वसूले दिया रुपैया |
ढूंढे दिया जलाय, नौकरी मेधा भैया ||

राम राम भाई!
वीरू भाई
मेरा फोटो

उनके चेहरे की रंगत, आकर्षण यह काया का |
कॉफ़ी-बेरी से आया या, तरकारी रविकर की खाई ||
फल जैसा पहले धोई थी, छिलके के संग ही काट दिया-
कांटे से टुकड़े फंसा फंसा , तब तो यह रौनक पाई || 

बहुत कठिन है डगर पनघट की .....

संजय @ मो सम कौन ?
मो सम कौन कुटिल खल ...... ?

 कर्तव्यों की इतिश्री, बच्चे बनते बोझ ।
तन की खुजली यूँ बढ़ी, रिंग-कटर ली खोज ।
रिंग-कटर ली खोज, पुरानी हुई अंगूठी ।
दिखा रास्ता सोझ, गजब अपनों से रूठी ।
किन्तु रास्ता ख़त्म, सामने लम्बी खाईं ।
विवाहेत्तर कोढ़, समझ में किसके आई ?? 

बस यूँ ही….

Maheshwari kaneri 

 चाँद आज धरती पर उतरा, रहा चांदनी कबसे खोज ।
तारे बंधते इक गठरी में, उठा रहा अनजाना बोझ ।
सूरज से  रज कण तक जल कर,  आर्तनाद जल-धर से करते 
सवाशेर सावन बन जाता, कर देता सूरज को सोझ ।।

शान्ति की खोज


 सदाचारियों की अगर,हो विवाद से भेंट |
करे बेवजह बहस या, खुद को रखे समेट  |
खुद को रखे समेट, प्रेम-प्रभु में रम जाए |
सहे सुने सौ बात, एक ना किन्तु सुनाये |
रविकर पथ यह नीक, किन्तु सामाजिक जीवन |
ईर्ष्या द्वेष प्रपंच, घेरता है सज्जन मन ||



 मोहब्बतनामा -आमिर दुबई
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कुच्छो न बदला सखे, ए बी पी की न्यूज ।
पहले जो स्टार था,  आज अभी महफूज ।
आज अभी महफूज, भला आमिर न सल्लू ।
इक जाता दो पाय,  दूसरा बनता उल्लू ।
औसत का परनाम, आज सलमान कुंवारा ।
फैन बड़े हैरान, कैट का कैसा चारा ??

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