Wednesday, 11 July 2012

कन्फ्यूजन अपने लिए, समलैंगिक सामान्य-

बीता जनसंख्या दिवस ( चर्चा - 938 )




नई  कलम - उभरते हस्ताक्षर 
 लेकिन उस आधुनिकता का क्या , जो इसको ही बोझा समझे ।
एकाकी काकी न बनती, माँ की झंझट में क्या उलझे?
स्वार्थ पूरिता सुख अपना ही, जब जीवन का बने उसूल -
कैसे उस जीवन की मुश्किल, कठिन समय पर भ्राता सुलझे ।
झटके सहने की ताकत भी, होना बहुत लाजिमी है ।
दोहे लगते *दोहली , गुरुवर का आभार ।
शोक मिटे इस वाटिका, आओ  बारम्बार  ।
*अशोक वृक्ष 
कन्फ्यूजन अपने लिए, समलैंगिक सामान्य |
धीरे धीरे ही सही, कई जगह पर मान्य |
कई जगह पर मान्य, एक से दोनों हमदम |
महिलाओं का जोड़, गर्भ-धारण में सक्षम |
कर खुद का एहसास, करें बच्चे का सृजन |
अगर हुवे दो मर्द, करे क्या है कन्फ्यूजन |

विज्ञान ने यह भी संभव कर दिया है वैसे तो || 


बेगाने बैगनी को, नीला भी समुदाय ।
लाल रक्त से खेलता, पीला को अपनाय ।
पीला को अपनाय, भला जीवन नारंगी ।
आसमान का रंग, हरा भगवा भी संगी ।
मेरे तेरे स्वप्न, चले जो सरपट चक्का ।
निर्मल शुद्ध सफ़ेद, सहे न भारत धक्का ।।
ये भारत है मेरे दोस्त
अच्छी बुरी - हमारी मान्यताएं 

इक अच्छा उद्देश्य है, लेखक का आभार ।
नई चेतना के लिए,  होना है तैयार ।
होना है तैयार, मिटाना है यह शंका ।
पर्यावरण अन्यथा, फूंक देगी यह लंका ।
चलो करें शुरुवात, नई पीढ़ी तो जागे ।
आदत से मजबूर, जागते नहीं अभागे ।।।

स्वास्थ्य
खाइए चाकलेट , बढ़ाइए याददाश्त 


हरी सब्जियों में होती है फोलिक एसिड की भरमार ।
पागलपन से दूर रखे यह, कमी से दिखते  हैं आसार ।
दुहराना रात्रि बेला में, किये और करणीय  काज को 
आयु बाधा से निपटेगा, ढल जाओ  इनके अनुसार ।।

चिट्ठी आंसू से भीग गई , लालटेन से तप्त हुई फिर ।
समय सड़ाता गया खाद सा, उर्वरा शक्ति तुमने पाई ।
कर गए किन्तु तुम अधमाई ।
यह कसक मौत सी रास आई ।

जो मेरा मन कहे 
रात दिन चमके ये चाँद 
फिकरे बजी की फिकर, नहीं करे यशवंत |
किस सर का सर है सखे, कौन चाँद श्रीमंत ||


देने खातिर अन्न उगाता, रक्त पसीने से सींचे है ।
खुद की बिगड़ी हुई दशा पर, होंठ स्वयं के जब भींचे है-
कैसे देगा श्राप जगत को, अपनी कठिनाई को झेले -
खुला गगन है बिन बादल का, सूखी धरती जब नीचे है । 

सोने पे सुहागा 
जानिए ब्लागिंग को 
इंटरवल के बाद लोग जब, कथा समझने आते हैं ।
एक पक्ष की बातें अक्सर, नहीं समझ वे पाते हैं ।
खलनायक नायक से केवल, पिक्चर आगे नहीं बढ़े है -
कुछ पात्र सकारण आ जाते, मुश्किल में घिर जाते हैं ।

आधा सच 
 
आइस मिलती फ्री में, चिदंबरम को रोज ।
व्हिस्की का पैसा लगे, दो हजार का भोज ।
दो हजार का भोज, गरीबी वो क्या जानें ।
आइसक्रीम का रेट, प्रेस में खूब बखाने ।

पानी बोतल अगर, गरीबी ले पंद्रह में ।
राशन कैसे आय, बताओ फिर सत्तरह में ??

7 comments:

  1. वाह: बहुत खूब..

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  2. आपका निराला अंदाज़ लाजवाब लाजवाब ... शुक्रिया मुझे भी शामिल करने का ...

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  3. चर्चा सार सब सेतुओं का ढाले जो कुंडलियों में रविकर कहलाए .बेहतरीन चर्चा सार .

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  4. चर्चा सार सब सेतुओं का ढाले जो कुंडलियों में रविकर कहलाए .बेहतरीन चर्चा सार .
    ज़रूर रहें आशावादी लेकिन खामख्याली में न जिएँ

    ज़रूर रहें आशावादी लेकिन खामख्याली में न जिएँ



    राम राम भाई
    खामख्याली में न रहना जनाब
    सरकारें तो आती जाती, यह किस्सा बड़ा आलमी है |
    सकारात्मक रहें हमेशा, खाम -ख्याल जालिमी है ||
    संसाधन जोखिम की कुव्वत , हो निवेश मुस्तैद दिमाग-
    झटके सहने की ताकत भी, होना बहुत लाजिमी है ।

    -दिनेश फैजाबादी उर्फ़ कुंडली माहिर .

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  5. प्रणाम शत शत कुंडली माल को .

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  6. प्रणाम शत शत कुंडली माल को .

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