कौशलेन्द्र
अपने घर के लिए हम, देते उन्हें उजाड़ |
ठोकर लग जाये तनिक, देते मिटा पहाड़ |
ठोकर लग जाये तनिक, देते मिटा पहाड़ |
देते मिटा पहाड़, स्वार्थ में होकर अंधे |
रहे धरा नभ फाड़, चलाते जाते धंधे |
रतनजोत का तेल, साइकिल काजू सपने |
महानदी छिपकली, बचाते जीवन अपने ||
अगला जीवन
गाना गाना भोर का, संध्या बेला पास |
मन का पाखी नासमझ, नहीं आ रहा रास |
नहीं आ रहा रास, आस का झूला झूले |
करे हास-परिहास, हकीकत शाश्वत भूले |
दीदी की यह बात, नये परिधान पहन कर |
नया देश परिवेश, देखना है जी भरकर ||
"उल्लूक टाईम्स "
ढूँढ़ ढूँढ़ के पा गया, आखिर एक-स्थान |
महाशांति नीरव महल, चाहे कहो मकान |
चाहे कहो मकान, कुंवारा भी पा जाता |
किन्तु करे अफ़सोस, नहीं जो लड्डू खाता |
अंधियारे में लैम्प, श्वेत कपडे में घूमे |
चले पैर उलटाय, फ़्लैट छ: फुट का चूमे ||
"ढूँढ सके तो ढूँढ"
Sushil"उल्लूक टाईम्स "
ढूँढ़ ढूँढ़ के पा गया, आखिर एक-स्थान |
महाशांति नीरव महल, चाहे कहो मकान |
चाहे कहो मकान, कुंवारा भी पा जाता |
किन्तु करे अफ़सोस, नहीं जो लड्डू खाता |
अंधियारे में लैम्प, श्वेत कपडे में घूमे |
चले पैर उलटाय, फ़्लैट छ: फुट का चूमे ||
खूबसूरत |
ReplyDeletegreat poetic comments..
ReplyDeleteये जब कमेंट दे जाते हैं
ReplyDeleteतो कविता कमेंट हो जाती है
और इनके कमेंट कविता ।