अगर विवादित अंश का, रविकर करे स्पर्श |
गिनते वे दुष्कर्म सा, प्रिय जिनको संघर्ष |
प्रिय जिनको संघर्ष, गिरेबाँ खुद का झांके |
बीता पूरा वर्ष, मिले कबहूँ न आके |
खुदके बंद कपाट, अखाडा यहाँ बनाते |
होंय कहाँ के लाट, कहाँ के रिश्ते-नाते ??
"रविवार की चर्चा" (चर्चा मंच-९३४)
मेरी टिप्पणी
लक्ष्मी प्राप्ति का दिवस, रविकर अब मत चूक |
सुबह सुबह दर्शन मिले , छाया है उल्लूक ||
मायावती को "सुप्रीम" राहत ..
चाहत पूरी हो रही, चलती दिल्ली मेल |
राहत बंटती जा रही, सब माया का खेल |
सब माया का खेल, ठेल देता जो अन्दर |
कर वो ढील नकेल, छोड़ता छुट्टा रविकर |
पट-नायक के छूछ, आत्मा होती आहत |
मानसून में पोट, नोट-वोटों की चाहत ||
ram ram bhai
वो जगहें जहां पैथोजंस
(रोग पैदा करने वाले ज़रासिमों ,जीवाणु ,विषाणु ,का डेरा है )
बीरुभाई के विषय, सदा रहें उत्कृष्ट |
स्वास्थ्य समस्या कर खतम, उन्नत करते सृष्ट ||
अजित गुप्ता का कोना
अभिव्यक्ति को मार्ग दो, नहीं तो वह विष्फोट में बदल जाएगी
टोका-टाकी व्यर्थ की, करता रहे दिमाग |
अंतर होता उर दहन, दिखे लपट न आग |
दिखे लपट न आग, दगेगी बम सी काया |
बुद्धिजीवी जाग, घूमता क्यूँ भरमाया |
चलो कहें दो बात, जबरदस्ती जो रोका |
कुछ न कहे समाज, बताओ किसने टोका |
अभिव्यक्ति को मार्ग दो, नहीं तो वह विष्फोट में बदल जाएगी
टोका-टाकी व्यर्थ की, करता रहे दिमाग |
अंतर होता उर दहन, दिखे लपट न आग |
दिखे लपट न आग, दगेगी बम सी काया |
बुद्धिजीवी जाग, घूमता क्यूँ भरमाया |
चलो कहें दो बात, जबरदस्ती जो रोका |
कुछ न कहे समाज, बताओ किसने टोका |
श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (२०वीं-कड़ी)
Kashish - My Poetry
रहे नियंत्रित देहरी, राग द्वेष से दूर |
प्रस्तुत पोस्ट में सखे, ज्ञान भरा भरपूर ||
बरस रे मेघा
संस्कार कविता संग्रह
काले मेघों ने किया, रीना जी को मस्त |
झूमें, भीगे चीख लें, पर होती न पस्त ||,
@मनोज
फ़ुरसत में ... दिल की उलझन-
कथा प्रभावित कर गई, मुकुनी रोटी स्वाद |
जिभ्या आनंदित हुई, पाया सरल प्रसाद |
पाया सरल प्रसाद, पेट भी भरा-भरा सा |
दिल को भाया साथ, खुला पट किन्तु जरा सा |
जीवन जद्दो-जहद, दिमागी खुराफात ने |
दिया अडंगा डाल, सरल सी मुलाक़ात में ||
उच्चारण
"दोहा पच्चीसी"
दोहे चर्चा मंच से, चोरी हुवे पचीस ।
दर्ज करता हूँ रपट, दोहे बड़े नफीस ।
दोहे बड़े नफीस, यहाँ न फीस दे गया ।
शामिल धीर-सुशील, छोड़ते हैं शरम - हया ।
रविकर करे अपील, मिले दोहा पच्चीसी ।
मत दे देना ढील, काढ़ कर पढ़िए खीसी ।।
नैनीताल भाग 10 कौसानी 2
मेरे अरमान.. मेरे सपने..
छायांकन खुबसूरती, है मनभावन साथ |
ताल शिखर घाटी सड़क, सब कुछ प्रभु के हाथ ||
रविकर
ReplyDeleteसागर है गागर ले कर नहीं जाउंगा
वो तो भर लेता है गागर में सागर
मैं गागर के साथ ही बह जाउंगा ।
Nice post.
ReplyDeleteनाम देखकर न्याय की परिभाषा बदल दी जाती है हिंदी ब्लागिंग में।
झटका लगा है तो कुछ न कुछ लोग जागे भी ज़रूर होंगे। जो जागेगा वही पाएगा।
'उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्यवरान्निबोधत' उठो, जागो और श्रेष्ठ वस्तुओं को प्राप्त करो .
वाह: मन भावन प्रस्तुति..
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति.आभार.
ReplyDeleteधिक्कार तुम्हे है तब मानव ||