बिस्मिल को सादर नमन, बड़े शहीद दबंग |
नए दबंगों से परन्तु, अब होता कुल तंग |
अब होता कुल तंग, भूमि का पट्टा पाया ।
नव-दबंग कब्जाय, कोर्ट में खुब उलझाया |
तब तो थे अंग्रेज, दबंगों के हत्यारे ।
लेकिन नए दबंग, चलाते अब सरकारें ।।
" सुझाव "
Sushil at "उल्लूक टाईम्स " -अन्दर का बन्दर जबर, उछल कूद में तेज |
तोड़-फोड़ के फेंकता, जो भी रखो सहेज |
जो भी रखो सहेज, हुई सब शोक वाटिका |
खेलो पर्यावरण, सार्थक एक नाटिका |
रविकर का जब स्वार्थ, करे कुल बाग़ सफाचट |
करे अन्यथा वाद, धूप-पत्ता पर खटपट ||
तब तो थे अंग्रेज, दबंगों के हत्यारे ।
ReplyDeleteलेकिन नए दबंग, चलाते अब सरकारें ...सही बात
दबंग पिटाई भी कर देते हैं जरा संभल के !
ReplyDeleteअभी तो बचा हूँ पिटते पिटते |
Deleteक्षमा हे दबंग |
बगैर गलती के भी प्राय: क्षमा मांग लेने की आदत हो गई है |
भगवान बचाए दबंगों से, नए नंगो से-
वाह: बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteतब तो थे अंग्रेज, दबंगों के हत्यारे ।
ReplyDeleteलेकिन नए दबंग, चलाते अब सरकारें ।।
क्या बात है ,रविकर भाई .
ब्लॉग-जगत में भी दबंगई चल रही है...!
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