(1)हरे रंग का है अगर, भागे भगवा मित्र-
(2)एक छमाही दिल्ली रहती पुत्र पास वो- दूजा पुत्री संग बटी है अलबेली ।
(3)
दो ब्लॉगर, दो कवि और एक काव्य गोष्ठी।
देवेन्द्र पाण्डेय
बेचैन आत्मा
बेचैन आत्मा
आदमी की आँख में बनता जहर ।
पान पर भी टूटता जुल्मी कहर-
अंदाज बदला आज चूना यूँ लगा -
पानी पिला के कैंचियाँ दें पर क़तर ।
हास्य-रस जैसा "बना रस" था मगर
स्वाद सड़ते सोरबे सा हर शहर ।
प्रेम रस में व्यस्तता का लवण ज्यादा
बस पसीने से हुवे सब तर-बतर ।।
अब इसी में खोजना है जिन्दगी
चारो दिशाओं ने दिया उलझा मगर ।।
अब इसी में खोजना है जिन्दगी
चारो दिशाओं ने दिया उलझा मगर ।।
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पूरब में अब बाढ़ ने , ढाया कहर अजीब |
वर्षा रानी से हुआ, ज्यादा त्रस्त गरीब |
पश्चिम में सावन घटा , ठीक ठाक संतोष |
कवि हृदयों में है बढ़ा, ज्यादा जोश-खरोश ||
मेरे यहाँ अथाह जल, जल ना दिल्ली वीर |
दिल ही की तो है कही, तेरी मेरी पीर ||
निर्झर झरने गिर रहे, नीचे नीचे नीच ।
फिर भी निर्मल कर रहे, सब कुछ आँखें मीच ।
सब कुछ आँखें मीच, सींचते हैं जीवन को ।
जाते सबके बीच, खींच मन-कलुष मगन हो ।
बाँध अगर शैतान, रास्ता रोके उसका ।
ऊर्जा करे प्रदान, तनिक रो-के फिर मुस्का ।।
मौन रहे निर्दोष गर, दोष सिद्ध कहलाय ।
अपराधी खुब जोर से, झूठे शोर मचाय ।
अपराधी खुब जोर से, झूठे शोर मचाय ।
झूठे शोर मचाय, सुने जो हल्ला गुल्ला ।
मौन मान संकेत, फैसला देता मुल्ला ।
पर काजी की पहल, शर्तिया करे फैसला ।
मौन तोड़ ऐ सत्य, तोड़ मत कभी हौसला ।।
सरहद पे आज आँखों का तारा चला गया
Dr.Ashutosh Mishra "Ashu"
My Unveil Emotions
देश के अन्दर सुख-शान्ति
सब मगन हैं अपने धंधों में-
चरण बंदना करता रविकर-
नमन करे वह तरुणाई ||
उनके चेहरे की रंगत, आकर्षण यह काया का |
कॉफ़ी-बेरी से आया या, तरकारी रविकर की खाई ||
फल जैसा पहले धोई थी, छिलके के संग ही काट दिया-
कांटे से टुकड़े फंसा फंसा , तब तो यह रौनक पाई ||
सरहद पर हुवे शहीदों का
यूँ मातम न करते माई |
हर हिदुस्तानी एहसान मंद
पूजे तुझको माँ की नाईं ||
यूँ मातम न करते माई |
हर हिदुस्तानी एहसान मंद
पूजे तुझको माँ की नाईं ||
देश के अन्दर सुख-शान्ति
सब मगन हैं अपने धंधों में-
चरण बंदना करता रविकर-
नमन करे वह तरुणाई ||
नुस्खे सौन्दर्य के
veerubhai at ram ram bhai
उनके चेहरे की रंगत, आकर्षण यह काया का |
कॉफ़ी-बेरी से आया या, तरकारी रविकर की खाई ||
फल जैसा पहले धोई थी, छिलके के संग ही काट दिया-
कांटे से टुकड़े फंसा फंसा , तब तो यह रौनक पाई ||
सुन्दर प्रस्तुति .
ReplyDeleteचित्रों संग , कवितायेँ बहुत कुछ कह रही हैं .
सामायिक प्रस्तुति .
निर्झर राग सुना रहे ये सुन्दर सा चित्र
ReplyDeleteबाधाओं से मत घबराओ बता रहेहै मित्र,,,,,,,
क्या बात है वाह!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि दिनांक 16-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-942 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteआपकी ग़ज़ल बहुत पसंद आयी।
बहुत बढ़िया ..
ReplyDeleteसुंदर संकलन ....
साभार !!
हास और परिहास का, संगम है बेजोड़।
ReplyDeleteबनारहे इतिहास ये, सारे मानक तोड़।।
सबसे कठिन काम होता है
ReplyDeleteइस गुरु के चेले के ब्लाग पर जाना
टिप्पणी लिखने के लिये कुछ सोच पाना
लिखता है क्या धमाल का रविकर
मन करता है बस पढ़ते ही चले जाना !!!!
गुरुवर का परताप है, पर सुशील अंदाज |
Deleteकरें टिप्पणी गजब की, है क्या इसमें राज |
है क्या इसमें राज, रात भर जागा जागा |
देता चर्चा साज, सुबह ही आता भागा |
रविकर यह हड़बड़ी, आजकल क्यूँ भरमाये |
घटा सूर्य का तेज, घटा सावन की छाये ||
लाजबाब टिप्पणियों की,बेजोड बनी ये पोस्ट
ReplyDeleteइसी तरह लिखते रहो, करते रहो तुम रोस्ट,,,,