सिलवट पर पिसता रहा, याद वाद रस प्रेम ।
ऐ लोढ़े तू रूठ के, भाँड़ रहा है गेम ।
भाँड़ रहा है गेम, नेम शाश्वत अब टूटे ।
वासर ज्यूँ अखरोट, नहीं तेरे बिन फूटे ।
पाता था नित चैन, लुढ़क जो बदले करवट ।
बिन तेरे दिन रैन, तड़पता रहता सिलवट ।।
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कब भीगता हूँ 'अकेला'शिवनाथ कुमारमन का पंछी
मन का पंछी दूर तक, उड़ उड़ वापस आय ।
सावन की मनहर छटा, फिर भी मन तड़पाय ।
फिर भी मन तड़पाय, साथ यादें ही आती ।
सुन लो तुम चितलाय, झूल सावन जो गाती ।
भीगे भीगे शब्द, करे हैं ठेलिमठेला ।
रहा अधर में झूल, भीगता नहीं अकेला ।।
""बहुत है झूलने वाले "' |
मेरे गांव की शाम
lokendra singh rajput
अपना पंचू
सकारात्मक सोच का, प्रगटीकरण सटीक ।
गाँव आज भी बढ़ रहे, पकड़ सभ्यता लीक ।
पकड़ सभ्यता लीक, नियत में भलमनसाहत ।
भाई चारा ठीक, सदा खुशहाली चाहत ।
किन्तु जरूरत आज, सही सरकारी नीती ।
भ्रष्टाचारी बाज, छोड़ ना पाता रीती ।। |
खुदा भी आसमाँ से जब ज़मी पर देखता होगा....ZEAL at ZEAL -
खड़ी खुदाई मंत्रमुग्ध, सकल देवगण व्योम ।
एक बार दिल्ली तकें, ताक रहे फिर रोम ।
ताक रहे फिर रोम, सकल कुल नेहरु गाँधी ।
ब्रह्मलोक हथियाय, नियन्ता बुद्धि बाँधी ।
किंकर्तव्यविमूढ़ , देव गौड़ा की नाई ।
आँख मूंद मन मौन, नशे में खड़ी खुदाई ।। |
व्यंग्य का शून्यकालव्यंग काल के शून्य सम, ना मौनी सम्मोह | इक करता कल्याण-जन, दो करता जन द्रोह || |
"मान भी जाया कर इतना मत पकाया कर "
सुशील
"उल्लूक टाईम्स "
लम्बे लम्बे फेंकते, लम्बी लम्बी भाँज ।
आज उन्हीं को खल गई, शिकायती अंदाज ।
शिकायती अंदाज, करे सब वायदे लम्बे ।
बिजली गुल हो जाय, दीखते लम्बे खम्बे ।
मलिका लम्बी भली, खले पर कविता लम्बी।
लम्बे से बीमार, खाइए छिली मुसम्बी ।।
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वाह .. बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteहमेशा की तरह
ReplyDeleteउम्दा और लजीज
दिल अजीज !
बहुत सुन्दर रविकर जी..
ReplyDeleteएज़ आल्वेस :-)
सादर
अनु
बेहद खूबसूरत ,बहुत बढ़िया प्रस्तुति!आभार .
ReplyDeleteसादर
आपका सवाई
ऐसे नबंरो पर कॉल ना करे. पढ़ें और शेयर
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!आभार .
ReplyDeleteमोहन भैया अपना अब पूडल कहलाय ,
ReplyDeleteबलिहारी उस रोम की जिन पूडल लियो अपने ,गोद में बिठाय खड़ी खुदाई मंत्रमुग्ध, सकल देवगण व्योम ।
एक बार दिल्ली तकें, ताक रहे फिर रोम ।
ताक रहे फिर रोम, सकल कुल नेहरु गाँधी ।
ब्रह्मलोक हथियाय, नियन्ता बुद्धि बाँधी ।पूडल अपना भैया विदेशों में कहलाय ...इस पर लिखो रविकर भाय .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
शुक्रवार, 20 जुलाई 2012
क्या फर्क है खाद्य को इस्ट्यु ,पोच और ग्रिल करने में ?
क्या फर्क है खाद्य को इस्ट्यु ,पोच और ग्रिल करने में ?
कौन सा तरीका सेहत के हिसाब से उत्तम है ?
http://veerubhai1947.blogspot.de/
जिसने लास वेगास नहीं देखा
जिसने लास वेगास नहीं देखा
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
सुंदर लिंकों का संयोजन
ReplyDeleteसादर आभार !!
रविकर के हाथ लग गया
ReplyDeleteकिसी जिन्न का चराग
घिसता चला जा रहा है
पैन लगता है लिखती
जा रही है उसके लिये
सब कुछ अपने आप !!
सुशील जी , मेरे हाथ में होता तो रविकर जी को, साहित्य का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार देती। ऐसी विलक्षण प्रतिभा हर किसी के पास नहीं होती।
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