एक तरफ दुनिया भली, भलटी रविकर ओर।
भलमनसाहत गैर हित, मुझको मार-मरोर ।।
बहुत बहुत आभार है, नहीं हमसफ़र आप ।
साथ अगर मिलता कहीं, रस्ता लेता नाप ।।
पोर्नोग्राफी विकृती, बड़ा घिनौना कर्म ।
स्वाभाविक जो कुदरती, कैसे सेक्स अधर्म ?
कैसे सेक्स अधर्म, मानसिक विकृत रोगी ।
होकर के बेशर्म, अनधिकृत बरबस भोगी ।
नर-नारी यह पाप, जबरदस्ती का सौदा ।
शादी सम्मति बिना, जहाँ मन-माफिक रौंदा ।।
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सूखे के आसार हैं, बही नहीं जलधार ।
हैं अषाढ़ सावन गए, कर भादौं उपकार ।।
कुत्ते जैसा भौंकना, गिरगिट सा रंगीन ।
गिद्ध-दृष्टि मृतदेह पर, सर्प सरिस संगीन ।
सर्प सरिस संगीन, बीन पर भैंस सरीखा ।
कर्म-हीन तन सुवर, मगर अजगर सा दीखा ।
निगले खाय समूच, हाजमा दीमक जैसा ।
कुर्सी जितनी ऊंच, चढ़ावा चाहे वैसा ।।
"धरती आज तरसती है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सूखे के आसार हैं, बही नहीं जलधार ।
हैं अषाढ़ सावन गए, कर भादौं उपकार ।।
लड़की को दुनिया में आने ही मत दो
सलीम अख्तर सिद्दीकी
बजे बाँसुरी बेसुरी, काट फेंकते बाँस ।
यही मानसिकता करे, कन्या भ्रूण विनाश ।
कन्या भ्रूण विनाश, लाश अपनी ढो लेंगे ।
नहीं कहीं अफ़सोस, कुटिल कांटे बो देंगे ।
गर इज्जत की फ़िक्र, व्याह करते हो काहे ?
यही मानसिकता करे, कन्या भ्रूण विनाश ।
कन्या भ्रूण विनाश, लाश अपनी ढो लेंगे ।
नहीं कहीं अफ़सोस, कुटिल कांटे बो देंगे ।
गर इज्जत की फ़िक्र, व्याह करते हो काहे ?
नारी पर अन्याय, भरोगे आगे आहें ।।
घर की मुर्गी दाल बराबर, मुँह में मरी मसूर नहीं है ।
"आज बस मुर्गियाँ "
सुशील at "उल्लूक टाईम्स "घर की मुर्गी दाल बराबर, मुँह में मरी मसूर नहीं है ।
आमलेट की बात करें क्या, दाल मिले न तूर कहीं है ।
नई पुरानी लियें मुर्गियां, पंडित जी दड़बे में रक्खें-
लेकिन जब एडजस्ट करें न, मुर्ग-मुसल्लम पके सही है ।
शरीर की धातुएं असंतुलित हों तो वात, पित्त और कफ़ दोष उत्पन्न हो जाते हैं और आज अक्सर आदमी किसी न किसी दोष की चपेट में हैं. इसी तरह अगर मन के विचार असंतुलित हो जाएँ तो मन विकार का शिकार हो जाता है. मानसिक विकृति का शिकार नर नारी अपने जीवन के अहम फैसले भी ग़लत लेता है और दूसरों को भी ग़लत सलाह देता है. आज आम मज़दूर से लेकर ऊंचे ओह्देदारान तक वैचारिक असंतुलन के शिकार देखे जा सकते हैं. इन में से ज़्यादातर लोग बच सकते थे अगर उनकी परवरिश के वक़्त उनके माता पिता ने उनके मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा होता. माँ की ज़िम्मेदारी बाप के मुक़ाबले थोड़ी ज्यादा है . सभी मर्द बचपन में अपनी माँ के प्रशिक्षण में रहते हैं. अगर माँ अपनी गोद के लाल को सही-ग़लत की तमीज़ दे और हमेशा इन्साफ़ करना सिखाये तो औरतों पर होने वाले ज़ुल्मों को रोका जा सकता है.
ReplyDeleteबहुत अच्छे लिक्स..आभार
ReplyDeleteबहुत अच्छे !
ReplyDeleteनिगले खाय समूच, हाजमा दीमक जैसा ।
ReplyDeleteकुर्सी जितनी ऊंच, चढ़ावा चाहे वैसा ।।
बहुत अच्छे रविकर !
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