"बहुत कम होते हैं "
सुशील at "उल्लूक टाईम्स "
चश्मे का पड़ता फरक, दरक जाएगा चित्र ।
हरे रंग का है अगर, भागे भगवा मित्र ।
भागे भगवा मित्र, छीन कर कागज़-कूँची ।
हालत बड़ी विचित्र, सोंच दोनों की ऊंची ।
किन्तु संकुचित दृष्टि, दिखाए खूब करिश्मा ।
कितना भी बदरंग, बदल पाते ना चश्मा ।।
मौन और मौन !
रेखा श्रीवास्तव at hindigenमौन रहे निर्दोष गर, दोष सिद्ध कहलाय ।
अपराधी खुब जोर से, झूठे शोर मचाय ।
झूठे शोर मचाय, सुने जो हल्ला गुल्ला ।
मौन मान संकेत, फैसला देता मुल्ला ।
पर काजी की पहल, शर्तिया करे फैसला ।
मौन तोड़ ऐ सत्य, तोड़ मत कभी हौसला ।।
दो ब्लॉगर, दो कवि और एक काव्य गोष्ठी।
देवेन्द्र पाण्डेय
बेचैन आत्मा
बेचैन आत्मा
आदमी की आँख में बनता जहर ।
पान पर भी टूटता जुल्मी कहर-
अंदाज बदला आज चूना यूँ लगा -
पानी पिला के कैंचियाँ दें पर क़तर ।
हास्य-रस जैसा बना रस था मगर
स्वाद सड़ते सोरबे सा हर शहर ।
प्रेम रस में व्यस्तता का लवण ज्यादा
बस पसीने से हुवे सब तर-बतर ।।
अब इसी में खोजना है जिंदगी-
चारो दिशाओं ने दिया उलझा मगर ।।
waah...:-)
ReplyDeleteमुबारक हो झंडा फहराने के लिए !
Deleteबहुत बढ़िया...
ReplyDeleteसादर
अनु
उल्लूक टाइम्स,,,,
ReplyDeleteबना रहे है पोस्टर, बिना भरे ही रंग
बिन चश्मे के देखते,लगते है बदरंग,,,,,,
मत कर मत कर किसी दिन धर लिया जायेगा
ReplyDeleteआदमी नहीं उल्लू के साथ एक पकड़ लिया जायेगा ।
अच्छी तुकबंदी
ReplyDeleteजी |
Deleteबस आदत सी पद गई है-
कोई पोस्ट पढ़ी बस झट से कर दी तुक बंदी-
आपको पसंद आई-
आभार-
अच्छी रचनाओं के लिए कृपया-
http://dcgpthravikar.blogspot.in/