Friday 13 July 2012

घृणित-मानसिकता गई, असम सड़क पर फ़ैल-


घृणित-मानसिकता गई,  असम सड़क पर फ़ैल ।
भीड़ भेड़ सी देखती, अपने मन का मैल ।
अपने मन का मैल, बड़ा आनंद उठाती ।
करे तभी बर्दाश्त, अन्यथा शोर मचाती ।
भेड़ों है धिक्कार, भेड़िये सबको खाये  ।
हो धरती पर भार , तुम्हीं तो नरक मचाये ।।
 बेनामी
बेनामी कुछ चिट्ठियां, वेद ज्ञान भरपूर ।
अन्सुय्या माँ की कृपा,  रायचूर अति दूर ।
रायचूर अति दूर,  देख "कर-नाटक" देवा ।
नंगे हैं त्रिदेव, कराये मातु कलेवा ।
शर्माए त्रिदेव , जान न जाँय  पत्नियाँ ।
गर कह दोगी बात, हंसी हो जाय शर्तिया ।।  


जंतर मंतर दिल्ली से 

जमी हुई संतोष हैं , जंतर मंतर आय |
अनशन पर बैठे हुवे, है जिन्दा बतलाय |
है जिन्दा बतलाय, बड़े जालिम ससुरारी |
मृत घोषित कर हड़प, रहे संपत्ति हमारी |
राहुल सुनो गुहार,  करो शादी बेटी से |
दूंगी तुम्हें दहेज़, करोड़ चौदह पेटी से || 


 टिप्पणियां ही टिप्पणियां 

सूर्पनखा की नाक का, था उनको अफ़सोस

कविता : बारिश, किताब और गुलाब

धर्मेन्द्र कुमार सिंह

 एक दूसरे का विषय , भाव जानते मित्र ।
 इसीलिए प्रोफेसरों, सही खिंचा है चित्र ।।

सावन के इस मौसम में

विचार

बारिश की सजती रहे, रंगोली हर शाम ।
धरती की शोभा बढे, कृषक कर सके काम ।।

"निविदा खुलने का समय है आया "

सुशील at "उल्लूक टाईम्स "
आज खिंचाई हो गई, पति की क्यों उल्लूक |
निविदा को कर दो विदा, भरी चूक ही चूक |
भरी चूक ही चूक, पार्टी एक अकेली |
तीन लिफ़ाफ़े डाल, छीनता सत्ता डेली |

बड़े बड़े संस्थान, खुले विद्वानों खातिर |
रहें उसी में कैद, नहीं तो होंगे शातिर ||  

5 comments:

  1. वाह ...बहुत बढिया।

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  2. बारिश की सजती रहे, रंगोली हर शाम ।
    धरती की शोभा बढे, कृषक कर सके काम ।।
    वाह बढ़िया कलेवर की पोस्ट और संदर्भित कुंडलियाँ .बधाई .

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  3. aapka andaaje bayaan wakai nirala hai...sadar bahdhayee ke sath

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  4. सुशील जी कमेंट्स पर,,,,,

    निविदा को कर बिदा,समझे पति उल्लूक
    निविदा के इस खेल में, हो जायेगी चूक,,,,,,

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  5. बहुत सुन्दर..

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