Thursday 5 July 2012

जब डंडा पुरजोर, भांजते संगी-साथी-

(1)


 पंथ-प्रचारक ले मरे, झंडा डंडा तेग   |
हुई कयामत उठ पड़े, रहे धरा पर रेंग |

रहे धरा पर रेंग, भेंग माथे में बैठा |
भय का कर व्यापार, बाँध के चले मुरैठा |

जब डंडा पुरजोर, भांजते संगी-साथी  |
युग के सब मुंहजोर, मरें पगलाए हाथी  ||

(2)

सोना चढ़ा सुहाग पर, रेकी करके चित्र  |
खींच लुटेरे भेज दें, हरकत करें विचित्र |

हरकत करें विचित्र , आँख न लगने पाए |
साबरमती कुटुंब, दुबारा जल न जाये  |

रविकर पहरेदार, पढ़े मंतव्य घिनौना |
रहे सुरक्षित हिंद, नहीं तुम फिर से सोना ||




4 comments:

  1. बहुत अच्छे मित्र-

    जब डंडा पुरजोर, भांजते संगी-साथी |
    युग के सब मुंहजोर, मरें पगलाए हाथी ||

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    1. आज ही यह भी पढ़ा |
      क्या बात है भाई सभी डंडे के पीछे लगे हुवे हैं |

      झंडे का रंग कोई भी हो, डंडा हमारा ही चलेगा.
      Dr. Ayaz Ahmad at सोने पे सुहागा - 19 hours ago
      दोस्त का काम है मिलना . सो वो मिले. हमने कहा कि अगर झंडे का रंग भगवा हो जाए तो कैसा रहेगा ? बोले, अच्छा रहेगा. हमने कहा कि हमारे लिए कोई डरने वाली बात तो नहीं है न ? बोले, डरने वाली बात उस दिन होगी जब डंडे का साइज़ और उसका रंग डिस्कस किया जाएगा. हमने कहा तब कोई डर नहीं है. दोस्त ने हैरत से पूछा, क्यों ? भाई, आजकल अपने डंडे की बड़ी डिमांड है. झंडे का रंग कोई भी हो. डंडा हमारा ही लिया जाता है. हमारे डंडे में जान है न ! अतः झंडे का रंग कोई भी हो, डंडा हमारा ही चलेगा.

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  2. काफी दिनों बाद ब्लॉग जगत का बोझिलपन कुछ कम होता हुआ लग रहा है.

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