Wednesday, 25 July 2012

हिंदी को दी गालियाँ, उर्दू पर क्या ख्याल- रविकर

हिंदी तो उनका कुत्ता भी लिख लेता है .,


फ़ेसबुक .....चेहरों के अफ़साने


 हिंदी को दी गालियाँ, उर्दू पर क्या ख्याल ।
लिपि का अंतर है मियाँ, करते अगर  बवाल ।

करते अगर बवाल, भूल जाते मक्कारी ।
रहते ना महफूज,  डूब जाती  मुख्तारी ?

अंग्रेजी में छपो, हमेशा फेरो माला ।
तन-मन का ये मैल, निगल खुद बना निवाला  ।।

अनशन: टीम अन्ना का टीवी प्रेम ...

महेन्द्र श्रीवास्तव 
 
 मुखिया की निंदा करें, तोड़े  घर परिवार ।
ऐसे लोंगों की यहाँ, हर घर में भरमार ।
हर घर में भरमार, मार दम भर अब इनको ।
पूज राष्ट्रपति रूप,  नहीं अब ज्यादा बहको ।
करो  देश बदनाम , आज दे दे के गाली ।
मर्यादायें भूल,  सड़क के बने मवाली ।।
अब वे हमारे राष्ट्रपति हैं ।।




काव्य मंजूषा

चाह संग हमराह जहाँ, हैं वहीँ निकलती राहें  |
डाह मगर गुमराह करे, बस बरबस बाहर आहें ||


प्रतिस्पर्धी नही युगल ये, पूरक अपने सपने के-
पले परस्पर प्रीति पावनी, नित आगे बढ़ें सराहें ||


खुशियों की बरसात सदा हो, नव-विहान मंगलमय होवे |
समय-माल में यह विहान नित, उपलब्धि के पुष्प पिरोवे |
प्रथम जन्म-दिन आज मनाकर, ब्लॉगर सभी ख़ुशी से फूले-
चिरंजीव आनंद बांटता, अभ्युदय भाई में खोवे ||







कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 6 : 

राकेश कुमार ‘अयोध्‍या’ की कहानी - आहुति


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पती पुरोहित पाप को, वह स्त्री नादान ।
कायर सा क्यूँ  भोगती,  यह सारा अपमान  ।
यह सारा अपमान, जुबाँ पर जड़ के ताले ।
सह ली धुर अपमान, पका  के पाप निवाले ।
द्रुपद-सुता तो द्यूत, भागवत का यह मसला ।
पापी पंडित दुष्ट, पती शंकालू पगला ।।

5 comments:

  1. बहुत अच्छी कुण्डलियों से टिीपियाया है आपने।

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  2. आपने अद्भुत समां बांधा है।

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  3. पती पुरोहित पाप को, वह स्त्री नादान ।
    कायर सा क्यूँ भोगती, यह सारा अपमान ।
    यह सारा अपमान, जुबाँ पर जड़ के ताले ।
    सह ली धुर अपमान, पका के पाप निवाले ।
    द्रुपद-सुता तो द्यूत, भागवत का यह मसला ।
    पापी पंडित दुष्ट, पती शंकालू पगला ।।
    कुण्डलियाँ कहती रहीं सभी बात बे -बाक ,...

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  4. vaham ek vimari hai, chahe purush ya fir stri kisi ka ho,"shanka shapin kahi n khawa"panditya aur pap ka rista" kafi purana hai.kabile tarif bhi aur kabile gaur bhi.

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