हिंदी तो उनका कुत्ता भी लिख लेता है .,फ़ेसबुक .....चेहरों के अफ़साने
हिंदी को दी गालियाँ, उर्दू पर क्या ख्याल ।
लिपि का अंतर है मियाँ, करते अगर बवाल ।
करते अगर बवाल, भूल जाते मक्कारी ।
रहते ना महफूज, डूब जाती मुख्तारी ?
अंग्रेजी में छपो, हमेशा फेरो माला ।
तन-मन का ये मैल, निगल खुद बना निवाला ।।
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अनशन: टीम अन्ना का टीवी प्रेम ...
महेन्द्र श्रीवास्तव
मुखिया की निंदा करें, तोड़े घर परिवार ।
ऐसे लोंगों की यहाँ, हर घर में भरमार ।
हर घर में भरमार, मार दम भर अब इनको ।
पूज राष्ट्रपति रूप, नहीं अब ज्यादा बहको ।
करो देश बदनाम , आज दे दे के गाली ।
मर्यादायें भूल, सड़क के बने मवाली ।। अब वे हमारे राष्ट्रपति हैं ।। |
काव्य मंजूषा
चाह संग हमराह जहाँ, हैं वहीँ निकलती राहें |
डाह मगर गुमराह करे, बस बरबस बाहर आहें ||
प्रतिस्पर्धी नही युगल ये, पूरक अपने सपने के-
पले परस्पर प्रीति पावनी, नित आगे बढ़ें सराहें || |
खुशियों की बरसात सदा हो, नव-विहान मंगलमय होवे |
समय-माल में यह विहान नित, उपलब्धि के पुष्प पिरोवे | प्रथम जन्म-दिन आज मनाकर, ब्लॉगर सभी ख़ुशी से फूले- चिरंजीव आनंद बांटता, अभ्युदय भाई में खोवे || |
कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 6 :राकेश कुमार ‘अयोध्या’ की कहानी - आहुति
पती पुरोहित पाप को, वह स्त्री नादान ।
कायर सा क्यूँ भोगती, यह सारा अपमान ।
यह सारा अपमान, जुबाँ पर जड़ के ताले ।
सह ली धुर अपमान, पका के पाप निवाले ।
द्रुपद-सुता तो द्यूत, भागवत का यह मसला ।
पापी पंडित दुष्ट, पती शंकालू पगला ।।
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बहुत अच्छी कुण्डलियों से टिीपियाया है आपने।
ReplyDeleteआपने अद्भुत समां बांधा है।
ReplyDeleteपती पुरोहित पाप को, वह स्त्री नादान ।
ReplyDeleteकायर सा क्यूँ भोगती, यह सारा अपमान ।
यह सारा अपमान, जुबाँ पर जड़ के ताले ।
सह ली धुर अपमान, पका के पाप निवाले ।
द्रुपद-सुता तो द्यूत, भागवत का यह मसला ।
पापी पंडित दुष्ट, पती शंकालू पगला ।।
कुण्डलियाँ कहती रहीं सभी बात बे -बाक ,...
बहुत अच्छे !
ReplyDeletevaham ek vimari hai, chahe purush ya fir stri kisi ka ho,"shanka shapin kahi n khawa"panditya aur pap ka rista" kafi purana hai.kabile tarif bhi aur kabile gaur bhi.
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