दो मुल्लाओं में हुई, मुर्गी आज हराम ।
छुरी फिराते ही रटी, राम राम श्री राम ।
राम राम श्री राम, गिरी संता के घर पर।
बैठा बोतल खोल, मारता उसे झटक कर ।
झटका और हलाल, दौड़ कर मुल्ला आया ।
दोनों ठोकें ताल, देख रविकर घबराया ।।
(1)
अक्ल खरचना बंद कर, शक्ल करे जब काम |
ड्योढ़ी पर पानी भरें, पंडित कई गुलाम |
अक्ल खरचना बंद कर, शक्ल करे जब काम |
ड्योढ़ी पर पानी भरें, पंडित कई गुलाम |
पंडित कई गुलाम, गजब का आकर्षण है |
बिके सभी बेदाम, यही सच्चा कारण है |
(रचना जी ने यौन-शोषण का आरोप लगाने की धमकी दी है, इसलिए उस शब्द को बदल दिया जिसका अर्थ, शब्दकोश में खाल, चर्म या चमड़ा लिखा है )
रविकर खुद बदनाम, पुरानी गड़बड़ रचना |
कुत्सित नजर हटाय, बंद कर अक्ल खरचना ||
(2)
हथिनी पागल हो गई, अंकुश करे न काम ।
इक पत्नी व्रत धार के, मुश्किल में श्री राम ।
मुश्किल में श्री राम, लुभाती राक्षसनी है ।
जाय गलत पैगाम, सुन्दरी भली बनी है ।
गोरी गोरी चर्म, कर्म से चुड़ैल भुतनी ।
रचना प्रभु की व्यर्थ, घूमती पागल हथिनी ।।
(3)
रविकर खुद बदनाम, पुरानी गड़बड़ रचना |
कुत्सित नजर हटाय, बंद कर अक्ल खरचना ||
(2)
हथिनी पागल हो गई, अंकुश करे न काम ।
इक पत्नी व्रत धार के, मुश्किल में श्री राम ।
मुश्किल में श्री राम, लुभाती राक्षसनी है ।
जाय गलत पैगाम, सुन्दरी भली बनी है ।
गोरी गोरी चर्म, कर्म से चुड़ैल भुतनी ।
रचना प्रभु की व्यर्थ, घूमती पागल हथिनी ।।
(3)
फटीचरों की बात कर, खुलवाते हैं पोल ।
टीचर चर रविकर फटी, बाजे ढम ढम ढोल ।
बाजे ढम ढम ढोल, फटीचर संबंधों से ।
पत्नी पुत्री पुत्र , फ्री अब सब बंधों से ।
एक काम अविराम, ताक दीवार घरों की ।
पटक पटक सिर फोड़, बात कर फटीचरों की ।
अभिव्यक्ति का गला घोटती मारी रचना ।
जाति धर्म पर, यौन कर्म पर हारी रचना ।
देवदासियां रही हकीकत, दुनिया जाने -
कब से भारी जुल्म सह रही नारी रचना ।
यौन-कर्म सी समलैंगिकता यहाँ हकीकत-
खुद ईश्वर पर भारी है अय्यारी रचना ।
हिन्दू मुश्लिम सिक्ख इसाई जैन पारसी
बौद्धों पर भी आज पड़ रही भारी रचना ।
शास्त्र तर्क से जीत न पाए खम्भा नोचे-
हथियारों की धमकी देती हारी रचना ।
आंसू नहीं पोंछने वाले इस दुनियां में-
बड़ी बड़ी तब देने लगती गारी रचना ।
श्रैन्गारिकता सुन्दरता पर छंद लिखो न
हास्य व्यंग उपहास कला पर सारी रचना ।।
रक्षाबंधन आने वाला है सावन में-
कृष्ण कन्हैया की भी आये बारी रचना ।।
अगर आप इस रचना के शुभचिंतक हैं तो यह लिंक जरुर देखें -
मिर्ची आये हाये मिर्ची !!
ReplyDeleteआपकी अकल खरचाना बंद करने के बार यह कह सकता हूं कि आज कविता में आए शुष्क एवं रुक्ष गद्य की बाढ़ के विरुद्ध ये कविता बेहद सुकून देती है।
ReplyDeleteआधी se adhik samajh se bahar.
ReplyDeleteअक्ल खरचना बंद कर, शक्ल करे जब काम |
ReplyDeleteड्योढ़ी पर पानी भरें, पंडित कई गुलाम |
गुद्दी में जब अक्ल हो ,समझ कैसे आए ,
बहुत बढ़िया व्यंग्य है आज के यथार्थ पर .
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ReplyDeleteअरहर-चना संभाल के,सदा वापरो यार |
ReplyDeleteजब अदहन कसके लगे,स्वाद होय तैयार ||
स्वाद होय तैयार, लगाओ घी का तड़का |
Deleteपर हो जाये मार, पडोसी जाता भड़का |
इ मुंह दाल मसूर, खाय न पावे रविकर |
रचता फिर षड्यंत्र, डालके मुट्ठी कंकर ||
चाम में आकर्षण हैं
ReplyDeleteकह कर
अपनी मानसिकता की
खुद खोल दी हैं पोल
चमार को चाम
सबसे ज्यादा हैं भाता
उसकी रोजी रोटी
चाम ही चलता
बाकी सब के लिये
ये कहना
अब कानूनन
यौन शोषण में हैं आता
"रचना रची जब नार की
सत्यम , शिवम् , सुन्दरम से
शोभा बढ़ी संसार की "
बदल दिया है-
Deleteपर उसका शाब्दिक अर्थ शब्दकोष में- खाल, चमड़ा ही दिया है-
कुछ और नहीं |
आप को मेरी सब रचना में दोष ही नजर आता है-
ReplyDeleteकहीं न कहीं कोई न कोई शब्द आप को अखर ही जाता है-
पुरे ब्लॉग-वर्ल्ड को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी ले राखी है आपने-
अभी तक आपने इस पर कुछ नहीं कहा ताज्जुब है http://rhytooraz.blogspot.in/
आप कभी यहाँ भी नहीं आई- जबकि मेरा खंड काव्य आपका कबसे इंतजार कर रहा है-
http://dcgpthravikar.blogspot.in/
या यहाँ भी नहीं-
http://terahsatrah.blogspot.in/
http://chitrayepanne.blogspot.in/
यह सारे ब्लॉग मैं ही मैनेज करता हूँ-
हर जगह आप को कुछ न कुछ केस करने लायक मिल ही जायेगा -
आप ब्लॉग पुलिस का रोल करना बंद करें तो कृपा होगी |
आप के भय से मेरी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन हो रहा है-
कृपया मेरे ब्लॉग पर आकर मेरा समय न बर्बाद करें |
खुद तो अपना ब्लॉग आमंत्रित पाठकों के लिए और दुसरे के ब्लॉग पर बिना बुलाये आ जाती हैं मानसिक उत्पीडन करने-
सबसे पहली भर आप को आभार और बधाई केवल इस लिए दी थी की मेरे ब्लॉग पर आकर आपने ८-९ टिपण्णी की थी-
यह एक सामान्य शिष्टाचार है-
जो आप नहीं समझती-
आपको हर जगह धर्म जाती नारी और न जाने क्या क्या दीखता है -
अगर आप शाल्लिन टिपण्णी कर सकते हैं तो ठीक अन्यथा मैं भी अपने ब्लॉग को प्रोटेक्ट करने की कोशिश करूँगा |
आपका नाम अगर एक रचयिता की कृति से मिलता है तो उस रचयिता का क्या दोष |
आपका इतना असर हुआ है दिमाग पर की
यह शब्द स्वयं आकर अपनी जगह ले लेता है-
सादर
आप व्यर्थ दोष न लगाये,-
अगर यह कविता सदोष है तो न जाने कितने कवी और कवियत्री यह दोष पहले कर चुके हैं -
yae haen satya jo aap kae man me thaa
Deleteujaagar hua
dhanywaad
isiiko bahar laanae mera kaam thaa
aur
mae tab aayii jab mera kament aap ne apane blog par diyaa
uskae baad aap likhatae gaye mae jawaab daeti gayii
kyaa karun khaali hun kaam koi haen nahin
आपका नाम अगर एक रचयिता की कृति से मिलता है तो उस रचयिता का क्या दोष |
Deleteyae aap bhi soch saktae haen nahin socha
ravi to suraj ko kehtae haen
kar sae kartvya bhi hotaa
so itna kyaa bhadkanaa mitr
tumhari bhi kavita meri bhi kavita
aur blog ko nimantrit kaeliyae kholna
wahii to kitna mazaa haen naa
फटीचरों की बात कर, खुलवाते हैं पोल ।
ReplyDeleteटीचर चर रविकर फटी, बाजे ढम ढम ढोल ।
बाजे ढम ढम ढोल, फटीचर संबंधों से ।
पत्नी पुत्री पुत्र , फ्री अब सब बंधों से ।
एक काम अविराम, ताक दीवार घरों की ।
पटक पटक सिर फोड़, बात कर फटीचरों की ।
बाजे ढम ढम ढोल, फटीचर संबंधों से ।
ReplyDeleteghar ghar ki yahii kehani haen
aap ki jubani haen
satya haen smaaj kaa
शास्त्र तर्क से जीत न पाए खम्भा नोचे
ReplyDeletewahii to aap kar rahey haen
एक पुरुष को लगातार उकसाने का काम कर रही हैं आप ||
ReplyDeleteबहुत शरीफ बन्दा हूँ-
कहीं और माथा पटकते तो अनुकूल परिणाम मिलते ||
मैंने अपने यहाँ ब्लॉग को सभी की टिपण्णी के लिए फ्री कर रखा है पर अब आप से तंग आकर madration लागु कर रहा हूँ-
जय श्री राम ||
एक पुरुष को लगातार उकसाने का काम कर रही हैं आप ||
ReplyDeletehaa haa haa
purush aur stri kaa vibedh sae upar uthae
purush wo hota haen jisae stri purush samjhae
आप सरे-आम नहीं कह सकती यह बात |
Deleteआप क्यूँ नहीं समझती हैं पुरुष, यह मत बता देना ||
रचना ने जो कहा हैं उसको समझा तो होता
Deletepurush wo hota haen jisae stri purush samjhae
ये पालने में त्रिदेव / अनुसुइया प्रकरण पर हैं
जी -
Deleteअफ़सोस है,
मुझे शब्दों के भाव पर और छुपे अर्थ पर |
सन्दर्भ अलग है यह भी |
ध्यान रखना चाहिए था |
आप सचमुच विद्वान है |
हे अन्तर्यामी ||
ब्रह्मा -विष्णु महेश की पत्नियों से मत बता देना |
Deleteयही भावार्थ था -मेरी पंक्तियों का ||
मेरे विद्वान दोस्त |
आशा है आपकी शिकायत जरुर दूर हो गई होगी |
प्रत्यक्ष मुलाक़ात हो -तो अच्छा ||
बेनामी कुछ चिट्ठियां, वेद ज्ञान भरपूर ।
Deleteअन्सुय्या माँ की कृपा, रायचूर अति दूर ।
रायचूर अति दूर, देख "कर-नाटक" देवा ।
नंगे हैं त्रिदेव, कराये मातु कलेवा ।
शर्माए त्रिदेव , जान न जाँय पत्नियाँ ।
गर कह दोगी बात, हंसी हो जाय शर्तिया ।।
आखिर किस तरह आप इस नरकगामी काव्य (पता नहीं हैं क्या है ) को लिख पाए ???????
ReplyDeleteसरस्वती की कृपा को चाम की बजाये राम में लगाते तो आज छंद इस प्रकार त्राहिमाम ना कर रहा होता .
पिछले एक सप्ताह से हो रही टिप्पणियां भी देखें-
Deleteशालीनता हमेशा बनाये रखी है मैंने-
यह लिंक हैं
अगर समय हो तो मूल
विवाद भी देख लें-
आभार-
डा।. अनवर विवाद / रविकर क्षमा-प्रार्थी : मेरे द्वारा डाला गया घी देखिये, जिसने आग भड़काई