Tuesday, 3 July 2012

आ जाएँ इक साथ, पूर्वज एक हमारे-

 
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१७ प्रतिशत हैं खरे, २२ बड़े मुलायम |
३५ प्रतिशत दोगले, शेष धर्म पर कायम |

शेष धर्म पर कायम, थाम के झंडा बैठे
शक्ति करे संगठन, प्रेम से कान उमेठें |

आ जाएँ इक साथ, पूर्वज एक हमारे |
उच्च देश का भाल, दिखाएँ आदर सारे || 

अपना अपना आनंद

मनोज कुमार
विचार -
  

1
कोलकाता की गर्म से, कुछ तो मिला निजात ।
मंसूरी सह दून की, गर्मी भी मन-भात ।
गर्मी भी मन-भात, मुबारक फुर्सत के दिन ।
मौसम किन्तु सुहात, कहाँ अर्धांगिन बिन ।
रहिये तनिक सचेत, यहाँ मौसम गर्माता ।
बरसे सावन घोर, घूम के आ कोलकाता ।

 2
माहिर हैं हम स्वांग में, अपने ही आनंद ।
नहीं पर्यटक आज के, नीति नियम पाबन्द ।
 नीति नियम पाबन्द, छोड़ न पावें वृत्ती ।
वहाँ वही छल छंद, फर्क न दीखे  रत्ती ।
प्राकृतिक सौन्दर्य, मगन मन करते जाहिर ।
ताके चीजें वर्ज्य,  दवा दारु के माहिर ।।

गंगा चित्र-8 (गंगा घाट के खेल)

देवेन्द्र पाण्डेय
बेचैन आत्मा  

अकल रही पगुराय, निगल के काला पैसा ।
हड़बड़ करके खाय, शुरू में काला भैंसा ।
हल न पाय चलाय, फील्ड में हल हो जाता।
युवा आज का आय, फील्ड में रंग जमाता।
 गंगा तट पर खुब जमाते, गुल्ली-डंडा लाय  के ।
मोबाइल के गेम भूलता, जाता मन बहलाय के ।।

Life is incomplete without Plastic. प्लास्टिक बिना जीवन सूना

  दीपक बाबा की बक बक -
काफी है गंभीरता,  बाबा बातें गूढ़ ।
छोड़ प्लास्टिक दीजिये, सुन ले मानव मूढ़ ।
सुन ले मानव मूढ़, प्लास्टिक  कचड़ा कप का।
रैपर कई प्रकार, पैक करता हर तबका ।
दारू पानी दूध, मसाला बिस्कुट टाफी ।
करते खड़े पहाड़, प्रदूषण बढ़ता काफी ।

  (प्रवीण पाण्डेय)
(1) गूढ़ प्रश्न ।
संजीवनी कहीं तो होगी, खड़ी व्यवस्था हो जाएगी  ।
धरे हाथ पर हाथ रहे तो, दिशा स्वयं को भटकाएगी ।।
 
(2) संसय 
लीक छोड़ कर वीर चले हैं, शंकाओं को दूर भगाते ।
झंझावातों में भी अपनी, करनी से इतिहास बनाते ।।
 
(3) आशा 
सूरज निकले आसमान में, विश्वास-धूप चमकाए धरती ।
प्रकृति स्वयं में बड़ी नियामक, सब कुछ सही संतुलित करती ।।

(4) स्वार्थ 
नीति दोगली स्वार्थ सिद्धि में, वैसे हरदम लगी रही है ।
सच्चाई का जोर लगेगा,  देखोगे सब सही सही है ।।

बेड़ा गर्क हो आमिर खान का

Arunesh c dave
अष्टावक्र

आमिर बेडा गर्क हो, तुझे पड़े क्या फर्क |
सत्ता का खर्चा चले, जाय व्यवस्था दर्क |
जाय व्यवस्था दर्क, अर्थ बिन सत्ता कैसी |
बिना पिए ही दर्प, उठा ली लाठी भैंसी |
सरकारी व्यापार, ज़रा ठप तो करवाना |
बहुत बहुत आभार, हमें आकर समझाना ||

बीबी की सहते रहो, हरदम हरदिन धौंस |
आफत आमिर दे बढ़ा, कह रविकर बेलौस |
कह रविकर बेलौस, कतरनी किच किच करती |
रहूँ अगर मदहोश, तभी वह थोडा डरती |
अल्कोहल एब्यूज, दिया है नंबर जबसे |
कर दी पूरा फ्यूज, डराती रहती तबसे ||

दवे दलित दारू दवा, पीता कम्बल ओढ़ |
अंग्रेजी आमिर अमर, धन दौलत से पोढ़ |
धन-दौलत से पोढ़, तोड़ते हाड़ खेत में |
फटे बिवाई गोड़, निकाले तेल रेत में |
दर्द देह चित्कार, रात में सो न पाए  |
 
कैसा पैसा प्यार, देह के काम न आये ||

आज 'नैशनल दुनिया' में हम....

अंतरमन अंतर पड़ा, न पहले सी बात |
लोग खोखले हो चुके, जाते नित हलकात |
जाते नित हलकात, आत्मा हलकानी है |
फुर्र करे उड़ जात, जात में बेइमानी है |
आती न आवाज, लुकाये अंतरात्मा |
आत्मीय की मौज, मनुजता मौत खात्मा || 

5 comments:

  1. शक्ति करे संगठन'
    शाश्वत सत्य

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  2. वाह ... बहुत ही बढिया ।

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  3. वाह: बहुत सुन्दर...

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  4. प्रसंगानुकूल काव्यात्मक टिप्पणियाँ हैं आपकी .बढिया ,बहुत बढ़िया .बड़े फलक की बढ़िया प्रस्तुति .

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  5. .

    १७ प्रतिशत हैं खरे, २२ बड़े मुलायम |
    ३५ प्रतिशत दोगले, शेष धर्म पर कायम..

    बहुत सटीक लिखते हैं आप। गजब की टिप्पणियां...

    .

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