"ब्लॉग ट्राफिक बढ़ाने के लिए" ( चर्चा मंच - 940 )
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फटा पड़ा दिल शर्ट फटी है अलबेली ।
उलट पुलट कर रात कटी है अलबेली ।
हाथ जोड़कर पैर पड़ा पर वो न माने-
ताल ठोक ललकार डटी है अलबेली ।
तीनों बच्चों को लेकर के भाव दिखाए-
सन अस्सी, चुपचाप पटी थी अलबेली ।
एक छमाही दिल्ली रहती पुत्र पास वो-
दूजा पुत्री संग बटी सी अलबेली ।
घटी शक्ति अब रोटी को मुहताज हुआ-
रविकर के संग करी घटी है अलबेली ।
भाई बहिनों पुत्र-पुत्रियों को ही माने-
गुरुभाई की पोस्ट पर, आकर होता धन्य ।
गुरु बिन हो सकता नहीं, मानव मन चैतन्य ।
"निविदा खुलने का समय है आया "
सुशील at "उल्लूक टाईम्स "
आज खिंचाई हो गई, पति की क्यों उल्लूक |
निविदा को कर दो विदा, भरी चूक ही चूक |
भरी चूक ही चूक, पार्टी एक अकेली |
तीन लिफ़ाफ़े डाल, छीनता सत्ता डेली |
निविदा को कर दो विदा, भरी चूक ही चूक |
भरी चूक ही चूक, पार्टी एक अकेली |
तीन लिफ़ाफ़े डाल, छीनता सत्ता डेली |
बड़े बड़े संस्थान, खुले विद्वानों खातिर |
रहें उसी में कैद, नहीं तो होंगे शातिर ||
![](http://4.bp.blogspot.com/-S5bDjVwEGp0/T_UFXK5JUBI/AAAAAAAAQ5U/H3qZogY-Lqk/s200/165000_1515160724959_4306985_n.jpg)
करे प्रगट कृतज्ञता, कुसुम चढ़ाए भाव ।
हृदय-पटल पर आज भी, अंकित अमित प्रभाव ।।
शातिर मोटी खाल का, रोम-रन्ध्र हो बंद |
जो विहीन है रीढ़ से, वही करे आनंन्द |
जो विहीन है रीढ़ से, वही करे आनंन्द |
वही करे आनंन्द , घड़े सा चिकना होकर |
पद के मद में अंध, लगा जन-गण को ठोकर |
रिसर्च-स्टडी केंद्र , श्रेष्ठ-विद्वानों खातिर |
खाते-पीते-मौज , अन्यथा होते शातिर |
विचारों के बादल
(प्रवीण पाण्डेय)न दैन्यं न पलायनम्
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आपके इस ललित लेख ने मुझे फिर से अपनी उस बहु उद्धृत बात को कहलाने को प्रेरित किया है -
श्रेष्ठ रचनाएं खुद को लिखवा लेती हैं -कोई सुयोग्य लेखक बस माध्यम बन जाता है -
Replyश्रेष्ठ रचनाएं खुद को लिखवा लेती हैं -कोई सुयोग्य लेखक बस माध्यम बन जाता है -
बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteबहुत धमाकेदार प्रस्तुति...
ReplyDelete...आभार रविकर भाई :-)
बहुत बढ़िया रचनाएं भी और प्रस्तुति भी।
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