बढती उम्र का असर न पड़े बीनाई (विजन )पर
veerubhai at ram ram bhai -
आँख फाड़ कर देखना, ठंडी करना आँख |
आँख नचाना डालना, चार करो तुम लाख | चार करो तुम लाख, शाख पर बट्टा लागे | ग्लूकोमा कांट्रेक्ट, बिगाड़े काम अभागे | खान-पान का ढंग, जांच नियमित करवाओ | धूम्र-पान कर बंद, सुरक्षा ग्लास लगाओ || |
बादल को किसने देखा है ?
संतोष त्रिवेदी
बैसवारी baiswari
बचपन में भोगा दिखा, टपका का भय खूब ।
वर्षा ऋतु में रात दिन, टप टप जाए ऊब ।
टप टप जाए ऊब, आज भी टपका लागा ।
बिन बादल की उमस, पसीना टपक अभागा ।
करता है बेचैन , नैन टकटकी लगाए ।
ताकें जल के सैन, और कुछ भी ना भाये ।।
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ZEAL
ZEAL
एजेंडा सरकार का, पछुवा बहे बयार ।
संस्कृति भाषा सभ्यता, सब कुछ मिले उधार ।
सब कुछ मिले उधार, पियो घी भरा कटोरा ।
अंग्रेजी गुणगान, बके हिंदी गर छोरा ।
इक झन्नाटे दार, मैम से थप्पड़ खाता ।
माई कंट्री बेस्ट, यही फिर गीत सुनाता ।।
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शिखा कौशिक
भारतीय नारी
उबटन से ऊबी नहीं, मन में नहीं उमंग ।
पहरे है परिधान नव, सजा अंग-प्रत्यंग ।
सजा अंग-प्रत्यंग , नहाना केश बनाना ।
काजल टीका तिलक, इत्र मेंहदी रचवाना ।
मिस्सी खाना पान, महावर में ही जूझी ।
करना निज उत्थान, बात अब तक ना बूझी ।।
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मूंह से निकली बात , कमान से निकला तीर और सर के उड़े बाल -- कभी वापस नहीं आते ?डॉ टी एस दराल
बाल बाल बचता रहा, किन्तु बाल की खाल ।
बालम के दो बाल से, बीबी करे बवाल ।
बीबी करे बवाल, बाल की कीमत समझे ।
करती झट पड़ताल , देख कंघी को उलझे ।
दो बालों में आय, हमारी साड़ी सुन्दर ।
बचे कुचे सब बाल, हार की कीमत रविकर ।। |
पुस्तक पहुंच रही है उसतक ?
नुक्कड़
नुक्कड़ ![]() पुश्तैनी *पुस परंपरा, पीती छुपकर दुग्ध |*बिल्ली पाठक पुस्तक पी रहे, होकर के अति मुग्ध | होकर के अति मुग्ध, समय यह शून्य काल का || गूढ़ व्यंग से दंग, मोल है बहुत माल का | वाचस्पति आभार, धार है तीखी पैनी | पूरा है अधिकार, व्यंग बाढ़े पुश्तैनी || |
वाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteआपने अपने ही अंदाज़ की दिलचस्प चर्चा ... लाजवाब ..
ReplyDeleteGreat comments.
ReplyDeleteवाह...!
ReplyDeleteआपकी कुण्डलियों को कोई सानी नहीं है!
.बहुत सराहनीय प्रस्तुति.ब्लॉग जगत में ऐसी आती रहनी चाहिए.आभार हमें आप पर गर्व है कैप्टेन लक्ष्मी सहगल
ReplyDeleteदराल जी के पोस्ट पर,,,,
ReplyDeleteबालों की फिकर छोडिये,मश्वरा दे रहा हूँ मुफ्त
विग लगा कर देखिये,हमेशा दिखे चुस्त दुरुस्त,,,
संतोष त्रिवेदी जी पोस्ट पर,,,,
कही जोर से बादल फटते,कही होती बरसात
सावन सूखा उमस से, कटते नहीं दिन रात,,,,,,,