Monday, 9 July 2012

रचना पर जो खींचते, मार कुंडली चित्र-


मंगलवारीय चर्चा --(936) खामोश दिल की सुगबुगाहट



मेरी भी धीरेन्द्र को, परम बधाई मित्र |
रचना पर जो  खींचते, मार कुंडली चित्र |
मार  कुंडली  चित्र, आज चर्चा के तेवर |
गरम जलेबी साथ, कचौड़ी  मिष्टी घेवर |
दीदी दूँ आभार , परिश्रम साफ झलकता |
एक एक कर पेज, अभी मैं चला पलटता ||

 प्रोफ़ेसर लेता गया, लम्बी लम्बी क्लास |
लेजर में भी है जमा, आये रविकर रास |
आये रविकर रास, "आस्था ग्राम-देवता" |
महत्त्वपूर्ण अभिलेख, "प्रदूषण" श्रेष्ठ "अमृता" | 
सब को पढता जाय, बड़ा जोशीला "गुंजन" |
रविकर करे सलाम, परिश्रम का भी वंदन ||



अनुराग और अभिषेक की , मनभावन आवाज है |
दीदी के सुन्दर गीतों का , यह भी तो इक राज है

भाव अनोखे स्वर लहरी भी , सरल सरस बहती जाती -
शब्दों का सु-तारतम्य है , इसीलिए सरताज है ||



जब अन्दर की बात भी, सार्वजनिक हो जाय ।
विश्वस्तों की कमी से, रानी मन अकुलाय ।
रानी मन अकुलाय, पूत तो प्यारा लागे ।
चूक निशाना जाय, देर से दादा जागे ।
रविकर की कामना, राष्ट्रपति पद की गरिमा ।
अक्षुणता बढ़ जाय, बढे भारत की महिमा ।।

अन्दर का बन्दर जबर, उछल कूद में तेज |
तोड़-फोड़ के फेंकता, जो भी रखो सहेज |


जो भी रखो सहेज, हुई सब शोक वाटिका |
खेलो पर्यावरण, सार्थक एक नाटिका |


रविकर का जब स्वार्थ, करे कुल बाग़ सफाचट |
करे अन्यथा वाद, धूप-पत्ता पर खटपट ||

नाख़ून गड़ा के  चलें, चिकनी मिटटी खूब ।
कीचड़ में फिर भी सनें, मैया जाती ऊब ।
मैया जाती ऊब , नालियाँ नहर बनाते ।
छींक-खाँस  हलकान, फिर भी बाज न आते ।
तालाब किनारे जाय, खाय भैया का झापड़ ।
 वापस आ के खाय, पकौड़ी हलुआ पापड ।। 
प्याज और प्यार
दिव्य साम्यता दिख रही, सब्ज-बाग़ सद-प्यार ।
सूक्ष्म-दर्श कर लीजिये, परतें-परत उतार ।
परतें-परत उतार, चलो क्यारी में बो लें ।
धरा जरा उर्वरा, गाँठ बण्डल का खोलें ।
प्रेम-नीर से सींच, प्याज फिर बड़ा उगेगा ।
दूर करो पतवार, बहुत ही नीक लगेगा ।।

रे-चना ; ज्वार से तू जल


इस मन्दी के दौर में, ले मंडी का भाव |
जींस ख़रीदे जा रहे, किन्तु मुझे न चाव |
किन्तु मुझे न चाव, मुकदमें तुम्हें मुबारक |
हार होय या जीत, जानिये बेहद मारक |
रविकर का संताप, नया दांतों का डाक्टर |
है क्या कहो इलाज, चने जो खाएं डटकर ||


बोल बच्चन- मनोरंजक है, देख सकते हैं

मनोज कुमार at विचार

मिल्क नंबर सिक्स गजब है, बुनी पटकथा हास्य पर ।
बोल बचन आगाज है- गोलमाल इतिहास पर ।

खलनायक कमजोर दीखता, हीरोइन शो पीस सरीखी -
रख दिमाग घर पर ही अपने, जाय देखने पिक्चर रविकर ।।


4 comments:

  1. अपनी कुंडली चित्र में मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार..

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  2. दिमाग है तभी तो रख के जाता है
    हमारी तरह हवा ना लाता है ना ले जाता है ।

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