दो मुल्लाओं में हुई, मुर्गी आज हराम ।
छुरी फिराते ही रटी, राम राम श्री राम ।
राम राम श्री राम, गिरी संता के घर पर।
बैठा बोतल खोल, मारता उसे झटक कर ।
झटका और हलाल, दौड़ कर मुल्ला आया ।
दोनों ठोकें ताल, देख रविकर घबराया ।।
1. पटक पटक सिर फोड़, बात कर फटीचरों की
2. दोनों पट चिपकाय, मारती धक्का दिल पर
3. यौन-कर्म सी समलैंगिकता यहाँ हकीकत
4. पूरा जमा कबाड़, पुरानी सीढ़ी पायी
5. जख्मों की तब नीलिमा, कागद पर छा जाय
6. इक पत्नी व्रत धार के, मुश्किल में श्री राम
सन्दर्भ :
चाम में आकर्षण हैं कह कर अपनी मानसिकता की खुद खोल दी हैं पोल चमार को चाम सबसे ज्यादा हैं भाताRead more »... |
फटीचरों की बात कर, खुलवाते हैं पोल ।
टीचर चर रविकर फटी, बाजे ढम ढम ढोल ।
बाजे ढम ढम ढोल, फटीचर संबंधों से ।
पत्नी पुत्री पुत्र , फ्री अब सब बंधों से ।
एक काम अविराम, ताक दीवार घरों की ।
पटक पटक सिर फोड़, बात कर फटीचरों की ।
आमंत्रित करते रहो, लगा पोस्टर खूब ।
दरवाजा क्यों बंद फिर, जा चुल्लू में डूब ।
जा चुल्लू में डूब, हमारी वाणी तेरी ।
कर टिप्पणी पचास, आय जब बारी मेरी ।
दोनों *पट चिपकाय, मारती धक्का दिल पर ।*किंवाड़
आय आय पछताय, नहीं अब आये रविकर ।।
रैदासी बनकर हमें, हुआ श्रेष्ठतम गर्व ।
गोरखनाथ कबीर से , आते ग्यानी सर्व ।
आते ग्यानी सर्व, यौन शोषण पर मुखरित ।
बड़ा पुजारी जान, आन पर रविकर विचलित ।
जातिवाद की बू, इधर मछली सम आती ।
जाकर के अन्यत्र, नहीं क्यूँ दिल बहलाती ।।
अभिव्यक्ति का गला घोटती मारी रचना ।
जाति धर्म पर, यौन कर्म पर हारी रचना ।
देवदासियां रही हकीकत, दुनिया जाने -
कब से भारी जुल्म सह रही नारी रचना ।
यौन-कर्म सी समलैंगिकता यहाँ हकीकत-
खुद ईश्वर पर भारी है अय्यारी रचना ।
हिन्दू मुश्लिम सिक्ख इसाई जैन पारसी
बौद्धों पर भी आज पड़ रही भारी रचना ।
शास्त्र तर्क से जीत न पाए खम्भा नोचे-
हथियारों की धमकी देती हारी रचना ।
आंसू नहीं पोंछने वाले इस दुनियां में-
बड़ी बड़ी तब देने लगती गारी रचना ।
श्रैन्गारिकता सुन्दरता पर छंद लिखो न
हास्य व्यंग उपहास कला पर सारी रचना ।।
रक्षाबंधन आने वाला है सावन में-
कृष्ण कन्हैया की भी आये बारी रचना ।।
खा बीबी की झाड़, चढूं न चना झाड़ पर-
किसी ने बताया कि
उसे सीढी के रूप में इस्तेमाल करने का फंडा
बड़ा पुराना है ।
बड़ा पुराना है ।
प्रत्युत्तर कुंडली में
अलंकार भी देखें-
मतलब पेंट कर दिया है-
कभी झाड़ पर न चढूं, चना होय या ताड़ |
बड़ा कबाड़ी हूँ सखे, पूरा जमा कबाड़ |
पूरा जमा कबाड़, पुरानी सीढ़ी पायी |
पूरा जमा कबाड़, पुरानी सीढ़ी पायी |
जरा जंग की मार, तनिक उसमे अधमायी |
झाड़-पोंछ कर पेंट, रखा है उसे टांड़ पर |
झाड़-पोंछ कर पेंट, रखा है उसे टांड़ पर |
खा बीबी की झाड़, चढूं न चना झाड़ पर ||
दोहे
पीड़ा बेहद जाय बढ़, अंतर-मन अकुलाय ।
जख्मों की तब नीलिमा, कागद पर छा जाय । 1।
शत्रु जान से मार दे, आन रखूं महफूज ।
लांछन लगे चरित्र पर, तो उपाय क्या दूज ??
रविकर पूंजी नम्रता, चारित्रिक उत्कर्ष ।
दुर्जन होवे दिग्भ्रमित, समझ दीनता *अर्श ।।
*अश्लील
गलती पर मांगे क्षमा, वह अच्छा इन्सान ।
बिन गलती जो माँगता, पाये वह अपमान ।।
चबवाये नाकों चने, लहराए हथियार ।
चनाखार था पास में, देता रविकर डार ।।
हथिनी पागल हो गई, अंकुश करे न काम ।
इक पत्नी व्रत धार के, मुश्किल में श्री राम ।
मुश्किल में श्री राम, लुभाती राक्षसनी है ।
जाय गलत पैगाम, सुन्दरी भली बनी है ।
गोरी गोरी चर्म, कर्म से चुड़ैल भुतनी ।
रचना प्रभु की व्यर्थ, घूमती पागल हथिनी ।।
अगर आप इस रचना के शुभचिंतक हैं तो यह लिंक जरुर देखें -
मेरी रचनाएँ हमारी वाणी पर प्रकाशित नहीं हो रही हैं |
ReplyDeleteक्या कोई मदद करेगा ??
कृपया अपने ब्लॉग पर जगह दे दो-
मानसिक उत्पीडन से बचा लो -
सादर ||
जरुर रविकर जी |
Deleteआपकी रचना छाप कर धन्य हो जायेगा मेरा ब्लॉग ||
अभी लीजिये ||
वाह ... बहुत बढिया।
ReplyDeleteबहुत बढिया।...
ReplyDeleteक्या हो गया दिनेश जी ... आप किस झमेले में पड़ गए ...
ReplyDeleteरविकर झमेले में नहीं पड़ता
ReplyDeleteझमेला उसको बुलाता है
सोचता है झोला बनाने की
पर रविकर हुआ वो
कहां झोला बन पाता है
झोल ही झोल के बीच
पता नहीं लगता है
कि कब कहाँ खिसक जाता है
ये बात सिर्फ रविकर
ही समझ पाता है
और जो रविकर
को नहीं समझता
रविकर उसी को ही
जा जा के बताता है ।