भीड़ बढ़ी है बाजारों में
अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)भीड़ बढ़ी है बाजारों में, यार जरा सा आ जाना |
गम खाया है बहुत दिनों तक, इक मुस्कान खिला जाना |
मंहगाई बेजार किये जब, तू विरह गीत बेजा गाई-
दूरभाष बेतार किये पर , तार तार अरमान मिटाई-
पिछली मुलाक़ात मंहगी अति, सालों ने क्या करी धुलाई -
नजर बचा आ मन्दिर पीछे, घूम रहे हैं वो दंगाई -
सावन भी प्यासा का प्यासा, मन-मयूर हरसा जाना |
गम खाया है बहुत दिनों तक, इक मुस्कान खिला जाना ||
"योगी लोग"
Sushil
बुद्धि बिलासी शहर में, विलासिता का रोग |
कूड़ा पानी प्रवृत्तियां, धर्म निभाएं लोग |
कूड़ा पानी प्रवृत्तियां, धर्म निभाएं लोग |
धर्म निभाएं लोग, भोग की आदत ऐसी |
करते प्रतिदिन ढोंग, पडोसी बड़े हितैषी |
अल्मोड़ा के बोल, भरे हैं जगत-उदासी |
बदल गया भूगोल, धन्य हैं बुद्धि-विलासी ||
-:चाय:-
dheerendra
चाय वाय करवा रही, चांय-चांय हर रोज |
सुबह सुबह तो ठीक है, दिन में बारह डोज |
सुबह सुबह तो ठीक है, दिन में बारह डोज |
दिन में बारह डोज, खोज अब दूजी लीजै |
यह मित्रों की फौज, नवाजी बाहर कीजै |
हुई एक दिन शाम, मिले व्यवहारी आला |
इंतजाम छ: जाम, हुआ अंजाम निराला ||
प्यार का नाम लेना , अब अच्छा नहीं लगता ...
छीके अब मुंह खोल के, कै मीठे-पकवान ।जगह-जगह खाता रहा, कम्बल ओढ़ उतान।
कम्बल ओढ़ उतान, तपन की आदत डाले ।
रहा बहुत मस्तान, आज मधुमेह सँभाले ।
उच्च दाब पकवान, करे अब Point फ़ीके ।
बदल गया इंसान, खोल में बैठा छींके ।।
कोल्हू के बैलों का पत्र एन बी टी संपादक के नाम
कमल कुमार सिंह (नारद ) at नारद
बिना बुलाये बहकता, गोबर करके जाय |
हुआ मार का हक़ ख़तम, बैल नधा अकुलाय |
हुआ मार का हक़ ख़तम, बैल नधा अकुलाय |
बैल नधा अकुलाय, हुआ था बधिया पहले |
कोल्हू-रहट चलाय, कलेजा अब तो दहले |
बैल मुझे आ मार, नहीं तेली बोलेगा |
जब तक करे बेगार, पगहिया ना खोलेगा ||
sir ji ye bhi kamal hai ....jarur padhuga ........
ReplyDeleteबेहतरीन कुण्डलियाँ!
ReplyDeleteआभार,,,,रविकर जी,
ReplyDeletegazab....:-)
ReplyDeleteक्या बात है!!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 02-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-928 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
भीड़ बढ़ी है बाजारों में
ReplyDeleteअरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)
भीड़ बढ़ी है बाजारों में, यार जरा सा आ जाना |
गम खाया है बहुत दिनों तक, इक मुस्कान खिला जाना |
भीड़ बढ़ी है बाजारों में
अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)
भीड़ बढ़ी है बाजारों में, यार जरा सा आ जाना |
गम खाया है बहुत दिनों तक, इक मुस्कान खिला जाना | बहुत बढ़िया प्रस्तुति .. .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
रविवार, 1 जुलाई 2012
कैसे होय भीति में प्रसव गोसाईं ?
डरा सो मरा
http://veerubhai1947.blogspot.com/
सावन भी प्यासा का प्यासा, मन-मयूर हरसा जाना |
ReplyDeleteगम खाया है बहुत दिनों तक, इक मुस्कान खिला जाना ||
.. .बहुत सुन्दर है . बहुत बढ़िया प्रस्तुति .. .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
रविवार, 1 जुलाई 2012
कैसे होय भीति में प्रसव गोसाईं ?
डरा सो मरा
http://veerubhai1947.blogspot.com/
लाजवाब!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कवी वर, आपकी टिप्पणिय भी आपकी कवितावो के तरह दिलचस्प और सुन्दर होती है :) आभार
ReplyDeleteशानदार टिप्प्णी जानदार रसगुल्ला
ReplyDeleteपानी वाले दूध पर मलाई जमा दे बिल्ला ।
क्या बात है।
ReplyDeleteरोज पड़ोसी पूजिये,ढोंग करे या प्यार
ReplyDeleteमांगे कोई चीज तो मत कीजे इनकार
मत कीजे इनकार,चाय-पत्ती या शक्कर
लेन देन से ही बढ़ता है प्रेम परस्पर
देख सहजता नाम आपका बहुत गुनेगा
वरना इस युग रवि कविता कौन सुनेगा ?
क्षमा याचना सहित.....