Wednesday, 25 July 2012

कर कुर्सी कुर्बान, बड़ी पावर पा जाती-रविकर

  आज के कुछ और लिंक 

आँख फाड़ कर देखना, ठंडी करना आँख - रविकर


स्मृति शिखर से – 18 : सावन

करण समस्तीपुरी 

विवरण मनभावन लगा, सावन दगा अबूझ |
नाटक नौटंकी ख़तम, ख़तम पुरानी सूझ |
ख़तम पुरानी सूझ, उलझ कर जिए जिंदगी |
अपने घर सब कैद, ख़तम अब दुआ बंदगी |
गुड़िया झूला ख़त्म, बची है राखी बहना |
मेंहदी भी बस रस्म, अभी तक गर्मी सहना ||

"कबूतर कबूतर "


 कोई चारा ना बचा, बेचारी यह कैट |
राजनीति की टोपियाँ, लगा हटा के हैट |
लगा हटा के हैट, रही विश्वास जगाती |
कर कुर्सी कुर्बान, बड़ी पावर पा  जाती |
आज कबूतर भक्त, बड़ी इज्जत करते हैं |
अनुशासन है सख्त, कई पानी भरते हैं ||

महामहिम का घोड़ा

Sanjay Mahapatra
फुरसतनामा 

यह घोडा बंदूक का, करे आर या पार ।
लेकिन ढाई घर चला, घर के लिए सवार ।
घर के लिए सवार, मौन मन कर बेगारी।
ढोया सारा भार, रहा बनकर व्यवहारी ।
रविकर जैसे गधे, सधे बन बड़े खिलाड़ी ।
पांच साल घुड़साल, ताकिये बैठ अगाड़ी ।।




टिपण्णी कैसे करनी चाहिए ?

आमिर दुबई 

पूरे विषय को पढ़कर, विभिन्न ब्लॉग पर, 10-12 अच्छी टिप्पणी  
करने के बाद एक आभार भी वापस  नहीं मिलता तब दुःख होता है ।।

अर्थ टिप्पणी का सखे, टीका व्याख्या होय ।
ना टीका ना व्याख्या, बढ़ते आगे टोय ।
बढ़ते आगे टोय, महज कर खाना पूरी ।
धरे अधूरी दृष्टि, छोड़ते विषय जरुरी ।
पर उनका क्या दोष, ब्लॉग पर लेना - देना ।
यही बना सिद्धांत, टिप्पणी चना-चबैना ।।


सावन आये सुहावन (शनिवार - फुर्सत में...) … करण समस्तीपुरी

मनोज

तरसे या हरसे हृदय, मास गर्व में चूर |
कंत हुवे हिय-हंत खुद, सावन चंट सुरूर |
सावन चंट सुरूर, सुने न रविकर कहना |
राखी में मगरूर, पिया की जालिम बहना |
लेती इन्हें बुलाय, वहाँ पर खुशियाँ बरसे |
मन मेरा अकुलाय, मिलन को बेहद तरसे ||

राहुलजी आगे बढ़ो !!


हमरा-हुल्लड़ जात का , हम राहुल लड़ जात |
मसला टूटी खाट का, खा के जूठा भात |
खा के जूठा भात , रात खटिया पर जागा |
माया को औकात, बताने खातिर भागा |
भाग-दौड़ सब व्यर्थ, फेल पप्पू हो जाता |
राहुल जी मजबूत, हृदय हमरा दहलाता ||

9 comments:

  1. बहुत बढिया ।

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  2. वाह: बहुत बढिया ।..

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  3. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
    सभी को टिपिया दिया!

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  4. बढ़िया रविकर जी...बहुत बढ़िया...

    सादर
    अनु

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  5. बिना फाडे़ भी तो
    करवा सकते थे
    आँख को ठंडा आप
    फाड़ना क्यों जरूरी है जी
    अच्छा जरूरी है
    तो फाड़ लेंगे !

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  6. यह घोडा बंदूक का, करे आर या पार ।
    लेकिन ढाई घर चला, घर के लिए सवार ।
    घर के लिए सवार, मौन मन कर बेगारी।
    ढोया सारा भार, रहा बनकर व्यवहारी ।
    रविकर जैसे गधे, सधे बन बड़े खिलाड़ी ।
    पांच साल घुड़साल, ताकिये बैठ अगाड़ी ।।
    बहुत बढ़िया है .

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  7. टिप्पणी करना सच में एक कला है और बहुत कठिन भी पर यदि इससे किसी को खुशी मिलाती है तो इसमें बुराई क्या है ? आशा

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  8. दिनेश की दिल्लगी
    कहाँ अंत में होती है
    जहाँ होती है उस
    जगह का अंत होती है
    कुछ भी लिख ले जाये
    कोई इसकी नजर से
    कहाँ बच पाती है
    दिख गया रविकर को
    फिर चीर फाड़ करके
    पोस्ट मार्टम कर के
    कलम ले ही जाती है
    रविकर की लेखनी
    छू गयी जिस लिखे को
    फिर ना दिल होता है
    ना लगी होती है
    दिल की लगी होती है
    दिल्लगी हो जाती है !

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  9. हाय, टिप्पणी व्यथा बन गई
    ब्लॉग जगत में जबसे आया
    कुछ न कुछ लिखता ही आया
    मन आनन्दित हो जाता है,जब कोई टिप्पणी मिल गई
    हाय टिप्पणी व्यथा बन गई
    कविता,गीत,लेख,लिख पाता
    सौ-सौ बार ब्लॉग पर जाता
    एक टिप्पणी ढूढ़ रहा हूँ ,गैरो की दस बीस हों गई
    हाय ,टिप्पणी व्यथा बन गई
    जिन ब्लागों पर मै हूँ जाता
    और टिप्पणी करके आता
    गणना उनकी करता रहता ,बीस किया उन्नीस मिल गई
    हाय, टिप्पणी व्यथा बन गई,,,

    विक्रम जी की रचना,,,,

    RECENT POST,,,इन्तजार,,,

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