मानस में नारी विमर्श:समापन पोस्ट!
(Arvind Mishra)
क्वचिदन्यतोSपि
क्वचिदन्यतोSपि
बेनामी नामी कई, रखें राय बेबाक |
मुद्दे को समझे बिना, गजब घुसेड़ें नाक |
गजब घुसेड़ें नाक, तर्क पर बड़ी पकड़ है |
थी कालेज में धाक, तभी तो दंभ अकड़ है |
गुरुवर का आभार, बना रविकर अनुगामी |
घूँघट में व्यभिचार, करे ब्लॉगर बेनामी ||
मुद्दे को समझे बिना, गजब घुसेड़ें नाक |
गजब घुसेड़ें नाक, तर्क पर बड़ी पकड़ है |
थी कालेज में धाक, तभी तो दंभ अकड़ है |
गुरुवर का आभार, बना रविकर अनुगामी |
घूँघट में व्यभिचार, करे ब्लॉगर बेनामी ||
का न करै अबला प्रबल?.....(मानस प्रसंग-7)
(Arvind Mishra)
क्वचिदन्यतोSपि...
क्वचिदन्यतोSपि...
(1)
अब रहस्य कुछ भी नहीं, नहीं छुपाना प्रेम ।
कंधे से कन्धा मिला, करे कुशल खुद क्षेम ।
करे कुशल खुद क्षेम, मिली पूरी आजादी ।
कुछ भी तो न वर्ज्य, मस्त आधी आबादी ।
का न करे अबला, प्रबल यह पक्ष चुपाओ ।
राम चरित का पाठ, कभी फिर और पढाओ ।।
बिगत युगों की परिस्थिति, मुखर नहीं थी नार ।
सोच-समझ अंतर रखे, प्रगटे न उदगार ।
प्रगटे न उदगार, लांछित हो जाने पर ।
यह बेढब संसार, जिंदगी करता दूभर ।
रहस्यमयी वह रूप, किन्तु अब खुल्लमखुल्ला ।
पुरुषों को चैलेन्ज, बचे न पंडित मुल्ला ।
(2)सोच-समझ अंतर रखे, प्रगटे न उदगार ।
प्रगटे न उदगार, लांछित हो जाने पर ।
यह बेढब संसार, जिंदगी करता दूभर ।
रहस्यमयी वह रूप, किन्तु अब खुल्लमखुल्ला ।
पुरुषों को चैलेन्ज, बचे न पंडित मुल्ला ।
अब रहस्य कुछ भी नहीं, नहीं छुपाना प्रेम ।
कंधे से कन्धा मिला, करे कुशल खुद क्षेम ।
करे कुशल खुद क्षेम, मिली पूरी आजादी ।
कुछ भी तो न वर्ज्य, मस्त आधी आबादी ।
का न करे अबला, प्रबल यह पक्ष चुपाओ ।
राम चरित का पाठ, कभी फिर और पढाओ ।।
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waah waah :-)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteवाह प्रांजल काव्य प्रस्तुति!
ReplyDeleteकुछ भी तो न वर्ज्य, मस्त आधी आबादी ।
ReplyDeleteati uttam .aabhar
ReplyDeleteलाजबाब कुंडलिया,,,,
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति,,,,,
सुन्दर प्रस्तुति..हमें आप पर गर्व है कैप्टेन लक्ष्मी सहगल
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