Wednesday, 4 July 2012

वाचस्पति पति-राष्ट्र, तभी तो हो पाओगे

Blogger रविकर फैजाबादी said...
@ लोक संघर्ष 
अपराजेय योद्धा ब्रिगेडियर उस्मान 
कबाइली का वेश दोगला, पाकिस्तानी सैनिक आये |
ग्यारह हजार थे, नौसेरा में,  मार-काट आतंक मचाये |
कुशल नीति बन गई तुरत ही, उस्मान वीर झट-पट धाये |
मार भगाया दुश्मन को फिर, नौशेरा के शेर कहाए |

July 5, 2012 9:19 AMDelete
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Blogger रविकर फैजाबादी said...
@मेरा आशियाना 
सुरेन्द्र शर्मा का जुमला - लोकतंत्र से है देश को खतरा 
शर्मा जी अब बिन शरमाये, सरमाये पर सही कह रहे |
फैला पड़ा रायता नेता, जिसे हर जगह दही कह रहे |
"लोक" शोक में डूबा भटका, रविकर बातें कही कह रहे |
प्रश्न उठे है लोकतंत्र पर, व्यर्थ हुई "बड़-बही" कह रहे |

July 5, 2012 9:28 AM
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Blogger रविकर फैजाबादी said...
@ मधुर गुंजन 
यहाँ पर है नम्बर का चक्कर 
मधुर लगा नंबर का गुंजन, दश नम्बरी सचिन तेंदुलकर |
तेरह नंबर के राष्ट्रपति का, है चुनाव अब आया नंबर |
बिन नंबर के टिकट मिले न, ट्रेन लगा न पाती चक्कर |
बारी बारी प्रभु रहे बुलाते, पूछ रहा निज नंबर रविकर ||

July 5, 2012 9:38 AMDelete
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Blogger रविकर फैजाबादी said...
@ बाला जी 
मिलें पढ़े-लिखे अनपढ़ों  से 
डेली पैसेंजर के धंधे , सन्डे को ही पड़ते मंदे |
जानबूझकर ट्रेन पकड़ते, रखे इरादे गंदे गंदे |
पढ़े-लिखे हैं इसीलिए तो, मूर्ख समझते हैं दूजे को-
गली में खुद को शेर समझते, खता खुदा से करते बन्दे ||

July 5, 2012 9:51 AM
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Blogger रविकर फैजाबादी said...
@ आब्जेक्शन मी लार्ड 
थर्ड जेंडर 
दुखद परिस्थिति किन्नर जीवन, सहते रहते कष्ट अजीब |
नहीं स्वर्ग का नरक नहीं फिर, लटक रहा त्रिशंकु सलीब |
पुरुष रूप में अंश नारि के, या नारी मन पुरुष शरीर --
इनपर थोड़ी कृपा कीजिये, रखिये दिल के तनिक करीब ||

July 5, 2012 10:00 AM
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Blogger रविकर फैजाबादी said...
@ मैं आपसे मिलना चाहता हूँ 
वाचस्पति से राष्ट्रपति बनना चाह रहे हैं अविनाश जी 
आम आदमी खाकपति, पाले पतित विचार |
प्रस्तावक कैसे मिलें, अरबों का व्यापार |
अरबों का व्यापार, करो सेवा मैया की |
धरो धकेल पहाड़, कृपा भी हो भैया की |
वाचस्पति पति-राष्ट्र, तभी तो हो पाओगे |
बट टाइम इज लास्ड, ग्रेप्स खट्टे खाओगे ??

July 5, 2012 10:15 AM
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Blogger रविकर फैजाबादी said...
@ उल्लूक टाइम 
खाता लायन आदमी, आदमखोर कहाय |
रक्त चूसते जो फकत, रक्तग्रीव बन जायँ |
रक्तग्रीव बन जायँ, राक्षस हो जाते हैं |
पर मानव का भेष, बदल वे ना पाते हैं |
सत्ता शासन शक्ति, भक्त उसका हो जाता  | 
 ले मरियल कुछ पाल, वही जयकार लगाता  ||



प्रसून 
देखिए  , पढ़िए राजनीति की काली कुतिया 



सब सितार गंज में जमे, काली पीली भीत |
पर प्रसून तो शूल से, नहीं पा रहा जीत ||

4 comments:

  1. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति

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  2. सुन्दर प्रस्तुति..

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  3. बहुत बढ़िया!
    अभी नाइस की हाजिरी नहीं लगी यहाँ पर!

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  4. गुड़ हैं जी शब्‍द

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